चुनाव को बाद कपड़े न फट जाएं, इसलिए परेशान हैं मोदी 

वाराणसी: पीएम मोदी वाराणसी में कैंप किए हुए हैं. एक के बाद एक रोड शो हो रहे हैं. जनसभाएं हो रही हैं. पूरा केन्द्रीय मंत्रिमंडल वाराणसी में कैंप कर चुका है. प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह इस दौर में अपनी पूरी जान क्यों लगा रहे हैं. मेरी जानकारी में ये कोशिश चुनाव के लिए नहीं है. मोदी की रैलियां चुनाव के लिए नहीं हैं. बल्कि उनका मकसद चुनाव के बाद के हालात हैं.

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि इस चुनाव में अमित शाह ने सबसे बड़े राज्य के नेताओं की जबरदस्त अवहेलना और उपेक्षा की. अमित शाह पार्टी नेताओं के साथ तानाशाह की तरह व्यवहार करते रहे . ज्यादातर असरदार नेताओं को कैंपेन से तो दूर रखा ही गया टिकट भी बड़ी संख्या में काटे गए. खुद वाराणसी में 6 बार के विजेता विधायक श्यामदेव राय चौधरी का टिकट अमितशाह ने सिर्फ कथित अकड़ के चलते काट दिया. बाद में मोदी उन्हें मनाने घूमते रहे. इसके आलावा मुरली मनोहर जोशी और योगी आदित्यनाथ को सीएम प्रोजेक्ट न करने से भी कार्यकर्ता नाराज़ है.

इसके अलावा अमित शाह का पार्टी के पुराने नेताओं के साथ रवैया बेहद रूखा और तानाशाही वाला होता था. वो सीधे मुंह बात नहीं करते थे और जितना कहा जा रहा है उतना करो जैसी बातें पुराने धुरंधर नेताओँ को आम बोल दिया करते थे.

जैसे जैसे पार्टी को अंदाज़ा होने लगा कि यूपी में हालात पक्ष में नहीं हैं मोदी के नज़दीकी केन्द्रीय नेताओं ने जान लगानी शुरू कर दी. भाजपा अध्‍यक्ष अमित शाह खूंटा गाड़कर बनारस में बैठ गए. वो जाटों के सामने करीब करीब गिडगिड़ाते नजर आए. इसका ऑडियो भी इसी साइट पर उपलब्ध हैं. ये वीडियो वायरल भी हुआ था. उधर अरुण जेटली भी वाराणसी पहुंचे और व्यापारियों को मनाया.

कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद स्थानीय वकीलों को समझाते नज़र आए.से बात की थी. अन्य केंद्रीय मंत्रियों की बात करें तो पीयूष गोयल, स्मृति ईरानी और महेश शर्मा समेत भाजपा के टॉप नेता शहर के अलग-अलग हिस्सों में वोटरों के बीच पहुंचे और वोटरों को रिझाने की कोशिश की.

सोचने वाली बात ये हैं कि यूपी के स्थानीय नेता यहां तक कि राजनाथ सिंह जैसे कद्दावर नेताओं की भूमिका भी चुनाव में सीमित रखी गई.

माना जा रहा है कि इससे लोग तपे हुए हैं. यूपी में हार होती है तो सीधा हमला मोदी और अमित शाह पर होगा. ज्यादातर पार्टी के स्थानीय नेता पार्टी पर व्यक्ति विशेष का कब्जा होने का आरोप भी लगा सकते हैं.

जानकारों का कहना है कि मोदी का वाराणसी में रोडशो दिल्ली वाले बीजेपी के छत्रपों के लिए राहत देने वाला हो सकता है. मोदी का ये तमाशा हार के बाद पार्टी के दिल्ली वाले नेताओं और गुजरात के बंधुओं के लिए बचाव का काम करेगा. नेता विरोध के हालात में कह सकेंगे कि उन्होंने पार्टी को बचाने की पूरी कोशिश की. अगर पार्टी जीत भी जाती है तो भी नेताओं के माथे पर जीत का क्रेडिट लिखा जाएगा.

जो भी हो इन हालात में एक चीज़ तय है बीजेपी दो हिस्सों में बंटने जा रही है. या यूं कहें कि पूरी तरह बंट चुकी है. जाहिर बात है एक गुट यूपी के भजपापियों का है और दूसरा दिल्ली वाले. दोनों में से कोई भी गुट जीते बीजेपी की एकता तो हार ही जाएगी.