NGT ने जंतर मंतर पर प्रदर्शन बंद करने का आदेश दिया, तत्काल प्रभाव से हटेेंगे धरने, ये कैसा लोकतंत्र ?

नई दिल्ली : राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को लगता है कि जंतर मंतर पर लोगों के धरने पर बैठने से प्रदूषण होता है. लेकिन एनजीटी इन लोगों को रामलीला मैदान में शिफ्ट करना चाहती है. एनजीटी ने दिल्ली सरकार, एनडीएमसी और दिल्ली पुलिस को ये निर्देश जारी किए हैं.

न्यायमूर्ति आर एस राठौर की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने नयी दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) को कनॉट प्लेस के निकट स्थित जंतर मंतर रोड से सभी अस्थायी ढांचों, लाउडस्पीकरों और जन उद्घघोषणा प्रणालियों को हटाने के भी निर्देश दिये. ये समझना अभी बाकी है कि कैसे जंतर मंतर पर लाउड स्पीकर से ज्यादा प्रदूषण होता है और कैसे रामलीला मैदान में कम.

पीठ ने कहा, प्रतिवादी दिल्ली सरकार, एनडीएमसी और दिल्ली के पुलिस आयुक्त जंतर-मंतर पर धरना, प्रदर्शन, आंदोलनों, लोगों के इकट्ठा होने, लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल आदि को तुरन्त रोकें.

अधिकरण ने प्रदर्शनकारियों, आंदोलनकारियों और धरने पर बैठे लोगों को वैकल्पिक स्थल के रूप में अजमेरी गेट में स्थित रामलीला मैदान में तुरन्त स्थानांतरित करने के अधिकारियों को निर्देश दिये.

अधिकरण ने कहा कि प्रदर्शनकारियों द्वारा इस क्षेत्र का लगातार इस्तेमाल वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 समेत पयार्वरणीय कानूनों का उल्लंघन है.

उसने कहा कि इसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को शांतिपूर्ण और आरामदायक ढंग से रहने का अधिकार है और उनके आवासों पर प्रदूषण मुक्त वातावरण होना चाहिए. शायद एनजीटी को अंदाज़ा नहीं है कि यहां आसपास रिहायशी इलाका नहीं है जबकि रामलीला मैदान घनी आबादी वाले क्षेत्र के बीच में है.

एनजीटी वरुण सेठ और अन्यों द्वारा दाखिल एक याचिका की सुनवाई कर रही थी. याचिका में आरोप लगाया गया था कि जंतर मंतर पर सामाजिक समूहों, राजनीतिक पार्टियों, एनजीओ द्वारा किये जाने वाले आंदोलन तथा जुलूस क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण का एक बड़ा स्रोत हैं. याचिका में कहा गया था कि नियमित रूप से प्रदर्शन, शांतिपूर्ण ढंग से और स्वस्थ वातावरण में जीने के अधिकार, शांति के अधिकार, नींद लेने के अधिकार और सम्मान के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन है.

यहां यह भी जानना जरूरी है कि जंतर-मंतर को अधिकृत किए जाने से पहले राष्ट्रपति भवन और संसद से कुछ ही दूरी पर दिल्ली का बोट क्लब मैदान धरना-प्रदर्शनों की स्थायी जगह थी. लेकिन कुछ बड़ी रैलियों में हुई हिंसा और सुरक्षा कारणों से प्रदर्शनों के अधिकृत रूप से जंतर मंतर के पास सड़क किनारे के फुटपाथ प्रदर्शनों और धरनों के लिए अधिकृत कर दिए गए.

बोट क्लब को धरना प्रदर्शन के लिए बैन किए जाने का तात्कालीन कारण 1993 में भारतीय किसान संघ का आंदोलन था. यह दिल्ली में अपने समय का सबसे बड़ा आंदोलन था. आंदोलन के नेता टिकैत के नेतृत्व में हजारों किसान इस जगह पर एकत्रित हुए. किसानों ने वहां कई दिनों तक डेरा डाल लिया था. किसान वहां अपने सैंकड़ों पशुओं को भी ले आए थे. अव्यवस्था फैलने के बाद आखिरकार सरकार को 1993 में ही धरना-प्रदर्शन के लिए बोट क्लब की जगह जंतर मंतर रोड को अधिकृत करना पड़ा.