पिछड़ों के बीच फूट डालने की तैयारी में मोदी सरकार, उठाया ये कदम

नई दिल्ली : मुसलमानों में महिला पुरुष के बीच दरार डालने की कोशिशों के बाद अब केन्द्र सरकार की अगली राजनीति पिछड़ों के बीच दो फाड़ करने की है. सरकार पिछड़ों के लिए जो आरक्षण है उसके अंदर भी आरक्षण के लिए तैयारी में लग गई है. पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के आरक्षण पर अहम फैसला लेते हुए जहां ओबीसी कोटे में क्रीमी लेयर के मापदंड़ में बदलाव किया चा रहा है वहीं नैशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लासेस (एनसीबीसी) की सिफारिश के मद्देनजर एक नया पैनल गठित करने को मंजूरी दे दी है. . एनसीबीसी ने हाल में सिफारिश की थी कि देश में ओबीसी को तीन सब-कैटेगरी में बांट दिया जाए जिससे मंडल कमीशन की सिफारिशों से आरक्षण पाने वाले लोगों में उचित लोगों की पहचान की जा सके. अगर इस पर अमल होता है तो पिछड़ों की राजनीति करने वाले नेताओं के वोटबैंक में दरार डाली जा सकेगी.

इसके साथ ही केन्द्र सरकार ने अब एनसीबीसी के अन्य प्रस्ताव पर काम करने के लिए नए आयोग के गठन का ऐलान किया है. गौरतलब है कि एनसीबीसी ने पिछड़ी जातियों में सब-कैटेगराइजेशन की सिफारिश की है जिसके तहत पिछड़ी जातियों को 3 अलग-अलग कैटेगरी में बांटने की योजना है. लिहाजा इस कदम से सरकार की कवायद कोटे में कोटा देने की है सरकार का कहना है कि इससे आरक्षण का अवसर सभी पिछड़ी जातियों को मिल सके.

अन्य पिछड़ी जातियों को मंडल कमीशन कि रिपोर्ट के आधार पर दो दशक पहले सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण दिया गया. हालांकि हाल ही में आरटीआई के जरिए केन्द्र से जानकारी मिली कि 1 जनवरी 2015 तक केन्द्रीय कर्मचारियों में महज 12 फीसदी लोग अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) से आते हैं.

आंकड़ों के मुताबिक केन्द्र सरकार ने ग्रुप ए, बी, सी और डी श्रेडी में मिलाकर 79,483 पद हैं और इनमें महज 9,040 कर्मचारी अन्य पिछड़ी जातियों से आते है. वहीं केन्द्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग के आंकड़ों के मुताबिक इसके मंत्रालय में 12.91 फीसदी दलित, 4 फीसदी जनजाति और 6.7 फीसदी ओबीसी कर्मचारी हैं जिन्हें मंडल के तहत आरक्षण का लाभ मिला है. मंत्रालय में कुल कर्मचारियों की संख्या 6,879 है.

इन आंकड़ों से एक बात साफ है कि केन्द्र सरकार द्वारा अन्य पिछड़ी जातियों के लिए आवंटित अधिकांश नौकरियों में ओबीसी कैटेगरी के लोगों को भरा जाना बाकी है. इसका मतलब साफ है कि कोटे के अंदर कोटा करने से किसी को लाभ नहीं मिलने वाला . जब पिछड़ों की नौकरियों पर पूरे उम्मीदवार ही नहीं मिल रहे तो अंदर कोटा बनाने की ज़रूरत क्या है.

1990 में मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने के बाद भी सरकार समय-समय पर इसमे सुधार करने की कवायद करती रही है. 2015 में मोदी सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग की जगह नैशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लासेस (एनसीबीसी) की नींव रखी जिसे पिछड़े वर्ग में मौजूद सभी जातियों तक आरक्षण का लाभ पहुंचाने के लिए खाका तैयार करने के लिए कहा गया. इन्हीं कोशिशों के चलते केन्द्र सरकार ने पिछड़ी जातियों में क्रीमी लेयर की पहचान करने के मापदंड को 6 लाख रुपये प्रति वर्षिक आय से बढ़ाकर 8 लाख रुपये कर दिया.