जानिए कब लगा था नितीश पर मर्डर केस, क्यों अदालत ने मान लिया था दोषी?

नई दिल्ली : बिहार के सीएम नितीश कुमार पर उनके कल तक के साथी लालू यादव ने हत्या का आरोप लगाया है. इसके साथ ही सबके दिमाग में ये सवाल उठ रहा है कि आखिर वो कौन था जिसकी हत्या का आरोप नितीश कुमार पर है.

हत्या का यह मामला बिहार के बाढ़ से जुड़ा है. नवम्बर 1991 में बाढ़ लोकसभा सीट के मध्यावधि चुनाव में सीताराम सिंह नाम के एक व्यक्ति की गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी. 1 सितम्बर 2009 को बाढ़ कोर्ट के तत्कालीन एसीजेएम रंजन कुमार ने इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को प्रथम दृष्ट्या दोषी मानते हुए उनपर इस मामले में ट्रायल शुरू करने का आदेश दिया था. इस मामले को लेकर उस समय ढीबर गांव निवासी अशोक सिंह ने नीतीश कुमार सहित कुछ अन्य लोगों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कराया था.

सीताराम सिंह हत्या मामले के एक गवाह अशोक सिंह ने अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में एक दरख्वास्त लगाई. दरख्वास्त में उन्होंने कहा कि 16 नवंबर वर्ष 1991 को वे सीता राम सिंह सहित अन्य लोगों के साथ मतदान करने गये थे तभी वहां जनता दल उम्मीद वार नीतीश कुमार, दुलारचंद यादव सहित अन्य लोगों के साथ पहुंचे और वोट देने से रोका.

अशोक सिंह ने अपने परिवाद पत्र में कहा था कि नीतीश कुमार के साथ उस समय तत्कालीन मोकामा विधायक दिलीप सिंह, दुलारचंद यादव, योगेंद्र प्रसाद और बौधु यादव थे और वे बंदूक, रायफल और पिस्तौल से लैस थे. अशोक सिंह ने अपने परिवाद पत्र में आरोप लगाया था कि इन लोगों ने वोट देने से मना किया तो सीताराम सिंह ने उनकी बात मानने से इनकार कर दिया. सीताराम ने उनकी बात नहीं मानी तो नीतीश ने अपनी राइफल से गोली चला दी, जिससे उनकी घटनास्थल पर ही मौत हो गयी.

जबकि उनके साथ आये अन्य लोगों द्वारा की गयी गोलीबारी से सुरेश सिंह, मौली सिंह, मन्नू सिंह एवं रामबाबू सिंह घायल हो गये थे. अशोक सिंह के परिवाद पत्र पर बाढ़ के अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी रंजन कुमार ने 31 अगस्‍त 2010 को सिंह के बयान और दो गवाहों रामानंद सिंह और कैलू महतो द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर अपराध दंड संहिता 202 के अंतर्गत नीतीश और दुलारचंद यादव को अदालत के समक्ष गत नौ सितंबर को उपस्थित होने का निर्देश दिया था.

बाद में इस मामले का हाईकोर्ट में स्‍थानांतरित करा दिया गया. वर्ष 2009 से लेकर अबतक यह मामला हाइकोर्ट में लंबित है. एक समय न्यायाधीश सीमा अली खान ने इस मामले में नीतीश की पैरवी कर रहे उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेंद्र सिंह की दलीलों को सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था.