चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग पर सुनवाई टॉप-5 जजों को नहीं

नई दिल्ली : भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के  खिलाफ महाभियोग मामले में याचिका की सुनवाई पांच जजों की पीठ करेगी. यह नोटिस कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों की ओर से दिया गया था, जिसे राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया था.

छठे नंबर के जज करेंगे अध्यक्षता

इस विशेष पीठ की अध्यक्षता वरिष्ठता क्रम में छठे जस्टिस अर्जन कुमार सीकरी करेंगे. इनके अलावा जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस एनवी रमणा, जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस आदर्श कुमार गोयल पीठ में शामिल रहेंगे. ये पीठ मंगलवार को होने वाली सुनवाई में ये तय करेगी कि आखिर इस मुकदमे में संविधान किन लीगल सवालों को लेकर मौन है.

चेलमेश्वर के पास आया था मामला

कांग्रेस के दो राज्यसभा सांसदों ने राज्यसभा सभापति के महाभियोग प्रस्ताव को खारिज करने की प्रक्रिया को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की है. सोमवार को इस याचिका का उल्लेख वरिष्ठता क्रम में नंबर दो जस्टिस जे चेलमेश्वर की अदालत में किया था. जस्टिस चेलमेश्वर ने इस मामले की सुनवाई मंगलवार को रखी थी, लेकिन लगता है कि मास्टर ऑफ रोस्टर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने समय रहते ही संविधान पीठ का गठन कर मामला सुनवाई के लिए उसके हवाले कर दिया.

जस्टिस चेलमेश्वर, गोगोई, लोकुर और जोसेफ इसलिए नहीं

संविधान के जानकारों के मुताबिक इस मामले में कानूनी पेंच तो पहले भी यही था कि आखिर चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग का मामला है लिहाजा वो तो इसे सुन नहीं सकते. इसके अलावा वरिष्ठता क्रम में नंबर दो यानी जस्टिस चेलमेश्वर, नंबर तीन जस्टिस  रंजन गोगोई, नंबर चार जस्टिस मदन बी लोकुर और नंबर पांच जस्टिस कुरियन जोसफ ने प्रेस कांफ्रेंस कर चीफ जस्टिस के खिलाफ अपने पद और अधिकारों का दुरुपयोग करने के आरोप लगाए थे. इस वजह से वो सभी इस मामले में पक्षकार बन चुके हैं. ऐसे में नंबर छह से ही बात शुरू हुई.

क्या है कांग्रेस का तर्क

कांग्रेस का कहना है कि राज्यसभा के सभापति को कानून और संविधान की एक जानी-मानी हस्ती सहित कम से कम तीन लोगों की कमेटी बना कर महाभियोग प्रस्ताव की जांच करानी चाहिए थी. लेकिन उन्होंने ये फैसला कमेटी बनाने

या उसकी ओर से रिपोर्ट आने से पहले ही ले लिया. अदालत में इसी बात को चुनौती दी गई है.

नजीर बन सकता है फैसला

कांग्रेस से राज्यसभा सांसद और इस मामले में याचिकाकर्ता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि प्रक्रिया में इस खामी को चुनौती दी गई है. क्योंकि ये साफ होना जरूरी है. चूंकि इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है लिहाजा कोर्ट का फैसला भविष्य की सनद भी रहेगा. खैर संविधान पीठ इस मामले को सुनेगी तो कई और भी चीजें स्पष्ट होंगी. संविधान और राजनीति का घालमेल भी साफ होगा.

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