भारत में मानवाधिकार पर भड़का UNHRC, गौरक्षा, गौरी लंकेश और रोहिंग्या पर सख्त निंदा

नई दिल्ली : रोहिंग्या मुसलमानों को देश से बाहर निकालने के भारत सरकार के फैसेल की संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संगठन ने कड़ी आलोचना की है. संगठन के उच्चायुक्त जीद राद अल हुसैन ने बाकायदा अपने बयान में रविवार को कहा- “मैं ऐसे समय में रोहिंग्या मुसलमानों को उनके देश वापस भेजे जाने के लिए भारत द्वारा उठाए जा रहे कदमों की कड़ी निंदा करता हूं, जब उनके देश (म्यांमार) में उन पर जुल्म हो रहे हों.”
इसके साथ ही अल हुसैन ने भारत में धार्मिक एवं अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ असहिष्णुता पर भी निराशा व्यक्त की.

उन्होंने कहा, “हिंसा का मौजूदा दौर तथा गोरक्षा के नाम पर भीड़ द्वारा लोगों पर हमला किया जाना भायवह है. मौलिक मानवाधिकारों की हिमायत करने वाले लोगों को भी धमकाया जा रहा है. सांप्रदायिकतावाद और घृणा के विनाशक प्रभाव के बारे में लगातार आवाज उठाने वाली पत्रकार गौरी लंकेश की पिछले सप्ताह ही हत्या कर दी गई. भारत में सर्वाधिक वंचित तबके के अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले लोगों को भारत में एक मजबूत और समावेशी समाज स्थापित करने में सहयोगियों की तरह समझा जाना चाहिए.”

अल हुसैन ने कहा कि भारत में 40,000 रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी हैं, जिनमें से 16,000 रोहिंग्या ने संयुक्त राष्ट्र से शरणार्थी प्रमाण-पत्र ले लिए हैं.
उन्होंने कहा, “भारत के विदेश राज्यमंत्री ने हाल ही में कहा था कि चूंकि भारत ने अंतर्राष्ट्रीय शरणार्थी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इसलिए भारत इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय कानून से बाहर जा सकता है और मानवीय अनुकंपा से बंधा हुआ नहीं है.” गौरतलब है कि विदेश राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने हाल ही में कहा था कि शरणार्थियों के मामले में अंतर्राष्ट्रीय संगठन भारत को लेक्चर न दें. रिजिजू ने यह भी कहा था कि रोहिंग्या मुसलमान भारत में अवैध प्रवासी हैं और कानून के मुताबिक उन्हें वापस जाना ही होगा.

रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार वापस भेजने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बीते सप्ताह ही सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को अवैध तरीके से रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों की पहचान करने के लिए एडवाइजरी जारी की. एडवाइजरी में रोहिग्या मुसलमानों से खतरे की बात भी कही गई है. ज्ञात हो कि एडवाइजरी जब जारी हुई उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी म्यांमार दौरे पर थे.

अल हुसैन ने आगे कहा, “लेकिन व्यावहारिक धरातल पर, अंतर्राष्ट्रीय नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार संधि का हिस्सा होने के चलते वह पूरी प्रक्रिया का पालन करने और शरणार्थियों को मौत के मुंह में न धकेलने के यूनिवर्सल प्रिंसिपल का पालन करने के लिए बाध्य है. और इसलिए भारत सामूहिक निर्वासन नहीं कर सकता या शरणार्थियों को ऐसी जगह वापस नहीं भेज सकता, जहां उन पर जुल्म होने या अन्य गंभीर प्रताड़नाएं मिलने का खतरा हो. ”