यूपी में योगी से ज्यादा किसी और की चलती है ! हो गया है केजरीवाल वाला हाल?

नई दिल्ली: क्या योगी आदित्यनाथ को यूपी का केजरीवाल बना दिया गया है? क्या योगी की मोदी से तुलना योगी पर भारी पड़ी है? क्या योगी को रिमोट कंट्रोल सरकार चलाने को मजबूर करने की कोशिश हो रही है?  क्या यूपी के आला अफसर योगी की जगह सीधे दिल्ली से कमांड ले रहे हैं ? क्या सांसद योगी सरकार को सहयोग नहीं कर रहे ?

ये कुछ सवाल हैं जो लगातार लखनऊ की चाय की दुकानों, पत्रकारों की जमातों और बीजेपी के कार्यकर्ताओं के बीच आम पूछे जा रहे हैं.

सबसे पहले बात करते हैं नौकरशाही की

यूपी में नौकरशाहों की तैनाती योगी की मर्ज़ी से नहीं हुई है खास तौर पर टॉप -10 नौकर शाह. कहा जा रहा है कि ये सभी और खास तौर पर इनके मुखिया सिर्फ दिल्ली की सुनते हैं. यही वजह है कि कोशिशों के बावजूद योगी प्रमुख जगहों पर क्षत्रिय ब्यूरोक्रेट को नहीं बिठा सके जिन्हें बिठाया भी है उनका ब्राह्मण लॉबी से रोज रोज टकराव हो रहा है.

ब्यूरोक्रेसी में बैठे दिग्गजों ने योगी के साथ आमने सामने के भी टकराव किए है.  योगी ने शपथ लेते ही हिदायत दी थी कि सभी नौकरशाह और कर्मचारी अपनी संपत्ति की घोषणा करें. लेकिन ज्यादातर नौकरशाहों ने इसके जवाब में ठेंगा दिखाया. 15 दिन का समय टलते-टलते महीनों हुआ तारीखें बढ़ाई गईँ और बाद में नयी तारीखें भी आना बंद हो गईं. कुछ लोगों ने संपत्ति की घोषणा ज़रूर की उनमें  अखिलेश सरकार के अहम अफसर ज़रूर हैं.

उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी जावीद अहमद ने अपनी कुल संपत्ति का ब्योरा दे दिया है. इसी तरह अखिलेश राज में मुख्यमंत्री की प्रिय आईएएस अधिकारी बी चंद्रकला ने भी अपनी संपत्ति का विवरण पेश कर दिया है. अखिलेश यादव के समय खनन माफिया पर कार्रवाई करने के कारण पद से हटाई गईं एक अन्य आईएएस अधिकारी दुर्गाशक्ति नागपाल ने भी अपनी संपत्ति घोषित कर दी है. मगर सूबे के मुख्य सचिव से लेकर मौजूदा डीजीपी और अन्य अधिकारियों तथा मंत्रियों ने अपनी संपत्ति की घोषणा अभी तक नहीं की है.  मुख्यमंत्री ने जब दोबारा इसे याद दिलाया तो किसी और का तो कुछ नहीं बिगड़ा मगर उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम के एमडी के रवींद्र नायक ने अपने विभाग के 450 कर्मचारियों के अप्रैल माह का वेतन रोक दिया. लेकिन बड़े लोगों ने योगी को ठेंगा दिखा दिया. योगी लाचारी की स्थिति में पहुंचे.

कुछ लोग सहारनपुर में दंगों की स्थिति न संभलपाने के लिए भी ब्यूरोक्रेसी के असहयोग को ही दोषी मान रहे हैं. माना जा रहा है कि सहारनपुर में हालात काबू करना इतना मुश्किल नहीं था कि करीब डेढ़ महीना बीत जाए और दंगे चलते रहें. लेकिन सहारनपुर के दंगों में राजपूतों के शामिल होने के कारण उन्हें खींचा जा रहा है. चूंकि योगी ठाकुर लॉबी के हैं और राजपूतों को पसंद करते हैं इसलिइ सबसे ज्यादा संदेश ये जा रहा है कि योगी राजपूतों का साथ दे रहे हैं.

नेताओं का खेल

यूपी के बीजेपी नेता किसी को कुछ समझ ही नहीं रहे हैं. आप के प्रवक्ता संजय सिंह कहते हैं कि हत्या, लूट, डकैती, बलात्कार जैसी वारदात में चार गुना की बढ़ोत्तरी हुई है. इसलिये अगर योगी सरकार को कानून-व्यवस्था ठीक करनी है तो सबसे पहले बीजेपी के नेताओं पर अंकुश लगाना पड़ेगा.

उन्होंने कहा, ‘‘बीजेपी में इस प्रकार की चर्चा है कि मोदी के करीबी लोग ही योगी सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन चला रहे हैं. बीजेपी के जो सांसद दिल्ली में मोदी के साथ राजनीति कर रहे हैं, वे खुद कानून को हाथ में ले रहे हैं. सांसद तो पूरी तरह प्रधानमंत्री के नेतृत्व में काम करता है.’’

संजय सिंह ने कहा कि सहारनपुर में पिछले करीब 37 दिनों से जातीय संघर्ष चल रहा है. बीजेपी सांसद राघव लखनपाल उसमें जाहिर तौर पर जिम्मेदार है. उनके नेतृत्व वाली भीड़ ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और उनके परिवार को जान से मारने की कोशिश की. मुरादाबाद में योगी की सभा से पहले बीजेपी सांसद ने एक अधिकारी को चप्पल मारी. आशंका है कि मोदी के करीबी इस सरकार के खिलाफ असहयोग कर रहे हैं.