वायरल झूठ : जी हां! मोदी के बचपन में होता था वडनगर स्टेशन, ये रही पूरी पड़ताल

नई दिल्ली : देखो मित्रों, दिवाली का तोहफा दे रहा हूं. खास तौर पर मोदी से बीबी से भी ज्याद मोहब्बत करने वाले दोस्तों के लिए. ये पढ़ लो. दिल में तसल्ली के फव्वारे फूटने लगेंगे. खुशी से उछल भी सकते हैं लेकिन इतना न उछलें कि फर्नीचर को नुकसान हो, लेकिन ये खुशखबरी होने के साथ बुरी खबर भी है. क्योंकि फर्जी पोस्ट कांग्रेसी भी बनाना सीख गए हैं. पहले देखें वायरल पोस्ट …

इस खबर में एक वायरल झूठ की पड़ताल है जिसे सबने सच माना. पड़ताल करते करते पहले रेफरेंस मिला अच्युत याग्निक की किताब ‘शेपिंग ऑफ मॉडर्न गुजरात’ (Shaping Of Modern Gujarat) में. 2005 में ये किताब पेंग्विन पब्लिकेशंस ने छापी थी, जिसके पेज नंबर 119 पर लिखा है,

‘इस समृद्धि के बीच संवत 1935 (साल 1879) में अहमदाबाद से पालनपुर के बीच रेलवे लाइन बिछाई गई, जिससे विसनगर का पतन शुरू हुआ. बड़े पड़ोसी शहरों के साथ चल रहा व्यापार कम कर दिया गया और पाटन (Patan) इलाका अपने-आप ऊंझा (Unjha) स्टेशन से जुड़ गया, जिससे ऊंझा में व्यापार बढ़ने लगा. संवत 1943 (साल 1887) में मेहसाणा और रंदाला, विसनगर, वडनगर के बीच रेलवे लाइन बिछाई गई, जिसे संवत 1944 (साल 1888) में खेरालू तक बढ़ाया गया. संवत 1965 (साल 1909) तक इसे तरंगा हिल तक बढ़ा दिया गया. इससे आसपास के इलाकों तक यात्रा की सुविधा तो हो गई, लेकिन विसनगर का व्यापार बर्बाद हो गया.’

वडनगर गुजरात के मेहसाणा जिले में आता है. अच्युत की किताब से ये साफ हो गया कि वडनगर में रेलवे लाइन 1887 में आ गई थी. तब देश में ब्रिटिश हुकूमत थी. अपनी ज़रूरत पर उन्होंने इमारतें बनवाने से लेकर रेलवे लाइन बिछाने तक सब कुछ किया. ज़ाहिर है कि तब रेलवे लाइन बिछाने की ज़हमत उठाई थी, तो ट्रेनें भी चलाते ही थे. इस बात को और पुख्ता करने के लिए हमने रुख किया वडनगर का, जहां के हाटकेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी जयंत भाई 60 बरसों से यहां रह रहे हैं. उनकी बेटी ने फोन उठाया और अच्छी तरह तस्दीक कर लेने के बाद कि फोन के दूसरी तरफ कौन है, फोन अपने पापा को दे दिया. जयंत भाई बताने लगे,

‘हमारा परिवार 100 साल से पहले से यहां रह रहा है. पहले हमारे दादा रहते थे, फिर मामा भी यहीं रहे. यहां बहुत पहले से स्टेशन बना हुआ है. बराबर. मुझे याद है यहां रेलवे का एक गोदाम था. स्टेशन का वेटिंग रूम था और स्टेशन मास्टर का कमरा भी था. थोड़ा आगे जय हाटकेस ट्रांसपोर्ट सर्विस का ऑफिस था. थोड़ा आगे जाने पर तीन दुकानें बनी थीं. सरकारी दुकानें भी थीं. स्टेशन पर तारा भाई के नाम पर एक शेड भी बनाया गया था. उस पर पीले अक्षरों में तारा भाई का नाम लिखा हुआ था. ट्रांसपोर्ट की दुकान रामशंकर भाई जोशी और प्रेमशंकर भाई जोशी चलाते थे.’

अब यही बचा था कि रेलवे अधिकारी भी ये कन्फर्म कर दें. तो हमने फोन लगाया रेलवे के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर (PRO) प्रदीप शर्मा को. उन्होंने बताया कि 1887 में रेलवे लाइन बिछाने वाली बात सही है, लेकिन तब वहां बड़ा स्टेशन नहीं था. हाल्ट था. हाल्ट यानी स्टेशन का सबसे छोटा भाई, जहां बहुत ही कम ट्रेनें रुकती हैं. प्लेटफॉर्म के नाम पर एक-दो कमरे, टीन शेड और एकाध बेंच वगैरह होती है. हाल्ट सिर्फ पैसेंजर ट्रेनों का मुंह देखते हैं, वो भी हफ्ते में दो-तीन बार. वडनगर में मेन स्टेशन बना साल 1973 में. हालांकि, अब भी वहां एक ही प्लेटफॉर्म है.

तो प्रदीप शर्मा ने बताया कि 2003 से पहले वडनगर राजकोट डिविजन में आता था और अब ये अहमदाबाद डिविजन में आता है. अधिक जानकारी के लिए उन्होंने हमें वेस्टर्न रेलवे के हेडक्वॉर्टर में बैठने वाले चीफ PRO रवींद्र भाखड़ को रेफर किया. रवींद्र ने बताया कि 21 मार्च 1887 को हाल्ट बना था, लेकिन आज़ादी के बाद से वडनगर में कोई नई रेलवे लाइन नहीं बिछाई गई है. पहले नैरोगेज यानी छोटी लाइन का काम हुआ और अभी ब्रॉडगेज का काम चल रहा है.

यहां कब से ट्रेनें चलती हैं और कितनी चलती हैं, इस सवाल पर पुजारी जयंत भाई बताते हैं कि पहले यहां हफ्ते में एक-दो ट्रेनें ही रुकती थीं, लेकिन निकलती कई थीं. रवींद्र ने बताया कि पहले की ट्रेनों की डीटेल याद नहीं है, लेकिन ढूंढेंगे, तो मिल जाएगी. रेलवे के पास और भी बहुत काम है, तो हमने दोबारा रवींद्र को परेशान नहीं किया.

तो कार्टून आपके सामने है, असल जानकारी आपके सामने है. नरेंद्र मोदी 1950 में पैदा हुए थे. वडनगर में स्टेशन भले 1973 में बना हो, लेकिन रेलवे लाइन और हाल्ट पहले से था. ट्रेनें रुकती भी थीं. अब उन्होंने वहां चाय बेची या नहीं बेची, ये राम जाने. (courtsey- lallantop)