बाल-बाल बच गए वरना मोदी और जेटली के नाम से रो रहा होता देश, अब तो बिल वापस ले लो

नई दिल्ली : अगर केन्द्र सरकार लेट न हुई होती तो हो सकता था कि नीरव मोदी जो पैसा लेकर भागा है, वो खाताधारकों की जेब से जाता. नीरव मोदी पंजाब नेशनल बैंक में जमा धन का 30 फीसदी लेकर भागा है. इसके बाद बैंक का लड़खड़ाना पक्का था अब सरकार इसे मदद करके बचाएगी लेकिन अगर जेटली सरकार का बिल आ गया होता तो खाते में जमा लोगों की रकम नीरव मोदी की जेब में चली गई होती . बैंकों को उबारने के लिए खाते में जमा लोगों का पैसा ले लिया गया होता और उन्हें उसी डूबते बैंक के शेयर पकड़ा दिए जाते. इस बिल का नाम था फाइनैंशियल रेजॉल्युशन ऐंड डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल (एफआरडीआई).

जी हां ये बिल किसी किसी नाकाम बैंक के जमाकर्ता से उम्मीद करता था कि वो जो पैसे बैंक में जमा किए थे उन्हें भूल जाइए और बदले में दिवालिया हुए बैंक के कुछ शेयर रख लीजिए. अगर इन शेयरों की कीमत सुधरती है तो आपको अपना पैसा वापस मिल जाएगा. यानी पीएनबी के खाते में आपके जो पैसे रखे हैं उसके बदले आपको डूबते हुए बैंक के शेयर मिलते.

अगर आप कोर्ट भी जाएंगे तो अदालत भी ऐसा ही फैसला देती कि बैंक कुछ गलत नहीं कर रहा. सबसे न्यारी मोदी सरकार के सबको सुधार देने की इच्छा रखने वाले वित्त मंत्री अरुण जेटली जनता से दुश्मनी निकालने वाला येही बिल लाना चाहते हैं. ये बिल अगस्त में आने वाला था फिर टल गया उसके बाद बजट सत्र में आने वाला था. अगर बिल टला न होता तो ये बिल अब तक लागू हो चुका होता और पीएनबी की 30 फीसदी रकम लेकर भागे नीरव मोदी के कारण बैंक लड़खड़ाता और जनता को जमा पैसे की जगह मिलते शेयर.

अबतक ऐसा नहीं होता था. सरकार ऐसे बैंकों की मदद के लिए पैसे देती थी . क्योंकि सरकार बैंक चला रही है और मुनाफा भी वही कमाती है तो ये फर्ज भी उसका था . लेकिन सरकार ने एफआरडीआई बनाकर एकदम यही करने का काम किया है.

यह विधेयक इस बात की तैयारी है कि अगर हम वर्ष 2008 में अमेरिका और यूरोप में आए संकट जैसे हालात में फंस जाएं तो क्या करें. उस वक्त उन देशों के शेयर बाजार ध्वस्त हो गए थे और कुछ बैंक तथा बीमा कंपनियां दिवालिया हो गए थे. उस संकट से निपटने और उसे थामने के लिए यूरोप और अमेरिका ने बड़े और अप्रत्याशित कदम उठाए थे. इसमें अधिग्रहण, पूरी गारंटी, नकदी बहाल करना और निजी बैंकों तथा बीमा कंपनियों के जमा बीमा में विस्तार करना शामिल हैं.