ये है मुंबई का सबसे सम्मानित ‘भिखारी’, हज़ारों की ज़िंदगी बनाई, सलमान भी हैं फैन

मुंबई: वो आदमी हर रोज़ मुंबई की बसों में भीख मांगता है ताकि किसी बच्चे को बड़े होकर किसी के आगे हाथ न फैलाना पडे. संदीप देसाई रोज़ मुंबई लोकल में भीख मांगते हैंं उससे मिलने वाले पैसों से कई स्कूल बना चुके हैं. वैसे इस महान काम के लिए पैसे मांगना ‘भीख’ तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन रेलवे पुलिस संदीप को भीख मांगने के जुर्म में ही पकड़ती है और उनके ऊपर केस हो जाता है.

मूल रूप से मुंबई के रहने वाले संदीप देसाई पहले मैरीन इंजिनियर थे. उसके बाद उन्होंने एक मैनेजमेंट कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया. वह एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट ऐंड रिसर्च में प्रोफेसर थे. उन्हें प्रॉजेक्ट के सिलसिले में ग्रामीण इलाकों का भ्रमण करना पड़ता था. तब वे देखते थे कि सुदूर ग्रामीण इलाकों में ज्यादातर बच्चे गरीबी के चलते स्कूल का मुंह नहीं देख पाते हैं. इस स्थिति से वे बेहद दुखी हुए और 2001 में श्लोक पब्लिक फाउंडेशन के नाम से एक ट्रस्ट का गठन किया.

ट्रस्ट बनाने के बाद संदीप देसाई मुंबई के स्लम इलाकों में गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम करने लगे. इस ट्रस्ट के जरिए उन्होंने अपने साथियों की मदद से मुंबई के गोरेगांव (ईस्ट) में 2005 में एक स्कूल स्थापित किया. इस इलाके में स्लम इलाके के कई सारे बच्चे स्कूल नहीं जा पाते थे. उनके लिए आसानी से शिक्षा की व्यवस्था उपलब्ध हो गई थी. धीरे-धीरे स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 700 से ज्यादा हो गई और क्लास 8वीं तक पढ़ाई होने लगी. हालांकि यह स्कूल 2009 में बंद हो गया, क्योंकि उस साल शिक्षा का अधिकार कानून पास हुआ था और इस कानून के तहत प्राइवेट स्कूलों को गरीब बच्चों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने की व्यवस्था कर दी गई थी.

सभी प्राइवेट स्कूलों को गरीब बच्चों को एडमिशन देने के साथ ही फ्री में एजुकेशन उपलब्ध कराना था. शुरू के कुछ सालों तक देसाई और उनके साथियों ने प्राइवेट स्कूलों में गरीब बच्चों की जगह सुनिश्चित कराने के लिए काफी काम किया. क्योंकि गरीब परिवार के पैरेंट्स को मालूम ही नहीं होता था कि सरकार ने उनके लिए ऐसी कोई व्यवस्था शुरू की है. इसके बाद उन्हें लगा कि जहां प्राइवेट स्कूल नहीं हैं वहां के बच्चों के लिए भी कुछ किया जाए औऱ उन्होंने महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित जिले यवतमाल में पहला स्कूल खोला.

पहले तो संदीप देसाई को कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के तहत कई कंपनियों ने पैसे दिए लेकिन धीरे-धीरे उनके स्कूल का दायरा बढ़ता गया और उन्होंने राजस्थान के उदयपुर और बिहार में भी ऐसे ही स्कूल खोले. जिसके लिए संदीप को और पैसों की जरूरत पड़ने लगी. इस जरूरत को पूरा करने के लिए संदीप मुंबई की लोकल ट्रेनों में यात्रियों से मदद मांगने लगे. वह बताते हैं कि यहां से उन्हें अच्छे-खासे पैसे मिल जाते हैं. संदीप कहते हैं कि अगर आप किसी को स्कूल भेजकर शिक्षित करते हैं, तो आप उसे जिंदगी भर के लिए अपने पैरों पर खड़ा करते हैं.

आज उन्हें हर महीने 5 लाख रुपये मिल जाते हैं. संदीप कहते हैं कि देश के नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने उनकी कोई सहायता नहीं की है. ग्रामीण इलाकों में स्कूल चलाने के लिए उन्हें किसी तरह की मदद नहीं मिली. यहां तक कि स्कूल बनवाने के लिए पानी भी उन्हें खुद से खरीदना पड़ा. आज भी वह स्कूल में बिजली लगवाने के लिए सरकारी विभाग के चक्कर काटते हैं. संदीप के स्कूल में बच्चों को मुफ्त शिक्षा के साथ ही खाने और कपड़े भी मिलते हैं. महाराष्ट्र के यवतमाल में सदाकड़ी, नईझर गांवों में उनके स्कूल हैं.

संदीप कहते हैं, ‘मेरे स्कूल में पानी और बिजली का पानी कनेक्शन भी नहीं मिला. हमने जेनरेटर के लिए खुद से व्यवस्था की.’ फिल्म अभिनेता सलमान खान ने संदीप का काम से प्रभावित होकर उनसे संपर्क किया और कहा कि जब तक वे एक्टिंग करियर में हैं उनकी मदद करते रहेंगे.

ट्रेनों में भीख मांगने के चलते संदीप को कई बार मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा. शुरू में भिखारी कह कर उनका खूब मजाक उड़ाया गया. रेलवे सुरक्षा बल ने एक बार उन्हें ट्रेन में भीख मांगने के जुर्म में पकड़ भी लिया था. हालांकि बाद में उन्हें फाइन जमा कर छोड़ दिया गया. लेकिन उन्हें फिर से एक बार रेलवे पुलिस ने पकड़ा तो वे कोर्ट चले गए. अभी मामला कोर्ट में ही है.

संदीप ने कहते हैं, कि उन्होंने समाज को शिक्षित करने के लिए एक एनजीओ बनाया है और वे उस एनजीओ के लिए कहीं से भी पैसे मांग सकते हैं. अब मुंबई की लोकल ट्रेन में लोग संदीप को अच्छे से पहचानने लगे हैं और इनके मिशन के लिए उन्हें सैल्यूट भी करते हैं. (ये लेख your story डॉट कॉ़म से लिया गया है. अच्छे लेख और अच्छी पहल के लिए उनका आभार)