टूट गया बरखा दत्त के सब्र का बांध, एनडीटीवी और बीजेपी के नाजायज रिश्ते की खोल दी पोल

नई दिल्ली : एनडीटीवी की असलियत अब धीरे धीरे सामने आने लगी है. बरखा दत्ता का दावा है कि प्रणय रॉय और उनका एनडीटीवी बीजेपी की पूरी तरह जकड़ में है. एनडीटीवी से काफी पहले नौकरी छोड़ चुकी बरखा दत्त ने अपने फेसबुक पोस्ट में कई ऐसी बातें कही हैं जो एनडीटीवी के बारे में गलत फहमी दूर करती है.. बरखा ने बताया है कि किस तरह टैक्स चोरी के आरोपों में घिरे चैनल के मालिक प्रणय रॉय खबरों को रुकवा दिया करते हैं. बरखा का कहना है कि एन डी टी वी को पत्रकारिता का मसीहा समझना सबसे बड़ी गलत फहमी है. ऐसा कुछ नहीं है. वहां खबरे बदतर तरीके से रुकवाई जाती है. चैनल बीजेपी को खुश करने में लगा रहता है.

बरखा के मुताबिक बीजेपी विरोधी होने का और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने या सरकार से लोहा लेने का जो नाटक एनडीटीवी और उसके मालिक कर रहे हैं वो महज सिर्फ दिखावा भर है. सच्चाई इससे कोसों दूर है. अपने फेसबुक पेज में बरखा ने आरोप लगाते हुए कहा है कि प्रणय रॉय ना सिर्फ अपने फायदे के हिसाब से खबरों को चलाने और रोकने का आदेश देते थे बल्कि प्रबंधन के इस फैसले का विरोध किए जाने पर रिपोर्टिंग तक रोक दी जाती थी.

इससे पहले दरअसल एनडीटीवी के मैनेजिंग एडिटर श्रीनिवासन जैन ने भी अमित शाह के बेटे जय शाह की कंपनी को दिए गए लोन की गई एक स्टोरी को वैबसाइट से हटाने का विरोध किया था. श्रीनिवासन जैन ने लिखा कि ‘एनडीटीवी के वकीलों ने कहा कि इसकी कानूनी वजह से स्टोरी को हटाना पड़ेगा. ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि रिपोर्ट पूरी तरह सार्वजनिक रूप से मौजूद तथ्यों पर आधारित है. इसमें किसी तरह का निराधार या अवांछित आरोप नहीं लगाया गया है. ऐसे हालत में पत्रकारों के लिए काफी मुश्किल है. अभी मैं इसे एक परेशानी भर मान रहा हूं और फिलहाल हमेशा की तरह एनडीटीवी पर पत्रकारिता जारी रखूँगा. मैंने ये बातें एनडीटीवी को भी बता दी है.’

एनडीटीवी के मैनेजिंग एडिटर श्रीनिवासन जैन की स्टोरी हटाए जाने के बाद एनडीटीवी की पूर्व कर्मचारी बरखा दत्त ने सोशल मीडिया पर एनडीटीवी की पोल खोलकर रख दी. बरखा दत्त ने लिखा कि सर्जिकल स्ट्राइक के वक्त वो कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम का इंटरव्यू लेकर आई थी. इंटरव्यू में चिदंबरम ने मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा था. हालांकि चिदंबरम ने उतना ही कहा था जितना कोई विपक्ष का नेता आमतौर पर सरकार पर बोलता है. लेकिन चैनल प्रबंधन ने उस इंटरव्यू को ऑनएयर होने से रोक दिया.

इंटरव्यू रोके जाने के बाद प्रबंधन की तरफ से एक इंटरनल मेल जारी किया गया जिसमें चैनल में काम कर रहे सभी पत्रकारों को ये हिदायत दी गई थी कि किसी भी नेता को जरूरत से ज्यादा स्क्रीन टाइम ना दिया जाए. इससे पहले मैंने रॉबर्ट वाड्रा को लेकर भी एक स्टोरी कवर की थी. जिसपर प्रबंधन का ऐसा ही रुख रहा था. इस बात का मैंने विरोध किया था. लेकिन जबतक मैं एनडीटीवी के साथ काम कर रही थी उस वक्त मैं पब्लिकली बहुत ज्यादा कुछ कह नहीं सकती थी. हालांकि प्रबंधन के सामने मैंने अपना विरोध दर्ज कराया था. प्रबंधन के फैसले का विरोध करने का नतीजा ये हुआ कि मुझे दो महीने तक बड़ी खबरों को कवर करने से रोका जाने लगा.

पूछे जाने पर कहा गया कि आपका विरोध प्रबंधन की नजरों में बगावत है. खबर को लेकर आपने प्रबंधन से कुछ ज्यादा ही बहस कर ली थी. बाद में मुझसे कहा जाने लगा कि मैं मेन स्ट्रीम की खबरों को छोड़ नॉन न्यूज स्टोरी करूं, क्योंकि मालिक प्रणय रॉय नहीं चाहते की आगे खबरों को लेकर फिर बहस हो. ऐसे में रिपोर्टिंग से दूर रहना वो भी तब जब चुनाव का माहौल हो मेरे लिए काफी मुश्किल था. मैंने प्रबंधन के कहा कि इससे बेहतर तो यही होगा कि मैं इस्तीफा दे दूं. हालांकि तबतक मेरे विरोध की खबरें ज्यादातर लोगों तक पहुंच चुकी थी. मैं नहीं चाहती थी कि मेरे इस्तीफा देने के बाद भी ऐसे सवाल मेरा पीछा करते रहे. इसलिए मैंने एक महीने बाद चैनल से इस्तीफा देने की बात कही. जिसपर चैनल के मालिक और प्रबंधन राजी हो गए.

चैनल के मालिकों द्वारा खबर को रोके जाने का विरोध मैंने किया जिसकी मुझे सजा मिली. चैनला का रुख सिर्फ बीजेपी ही नहीं कांग्रेस को लेकर भी एक जैसा ही रहता था. एनडीटीवी के मालिक ने मुझे खबरें करने से इसलिए रोका क्योंकि आगे कोई उनसे खबरों को लेकर सवाल ना कर सके. हो सकता है कि मुझे चैनल से किनारे कर के चैनल के मालिक बीजेपी से समझौता करने की फिराक में हो. चैनल में बिताए अपने आखरी दिनों में मुझे पता चला कि मेरे कुछ वरिष्ठ सहयोगी सरकार के मंत्रियों से सहयोग (एनडीटीवी टैक्स मामले में) चाहते थे. ये वही सहयोगी थे जो वक्त प्रेस क्लब में बीजेपी के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे.

NDTV की कथनी और करनी में बहुत फर्क और विरोधाभास है. ये कहना की चैनल के मालिक प्रणय रॉय बहुत बड़े कांतिकारी है गलत होगा. सच तो ये है कि चुनाव के बाद से लगातार प्रणय रॉय लगातार बीजेपी से मदद ही मांगते रहे. खबरों के रोके जाने का जो विरोध मैंने किया उसकी कीमत मुझे नौकरी गंवा कर चुकानी पड़ी. लेकिन मेरे कुछ पुराने साथी ऐसा नहीं कर पा रहे हैं. एक बात तो सच है कि ना तो एनडीटीवी विक्टिम हैं और ना ही क्रांतिकारी.