अथॉरिटी की स्कीम से बिल्डर्स की किस्मत खुली, खरीदारों को अब सरकार ने भी लगा दिया चूना

नई दिल्ली: एक तरफ करीब किसी छोटे मोटे शहर के बराबर आबादी अपनी ज़िंदगी की सारी कमाई, सारी सेविंग्स, मां बाप की ज़मीनें और भविष्य की कमाई तक दांव पर लगाकर फंसी हुई है और दूसरी तरफ आज भी उत्तर प्रदेश की सरकार की चिंता बिल्डर्स को बचाने की है. हालात ये हैं कि जब मकान खरीदने वाले सड़कों पर उतरने लगे हैं तो यूपी का पूरा सिस्टम बिल्डरों और बैंकों की चिंता में हैं. इतना ही नहीं सरकार के काम बायर्स की एकता को भी खत्म करने की कोशिश करते दिखाई देते है.अब नोएडा के 20 हजार घर खरीदारों को राहत देने वाला बड़ा ऐलान हुआ है. नोएडा अथॉरिटी बकाया राशि का 10 फीसदी जमा कराने के बाद बिल्डरों को आधे प्रोजेक्ट का ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट जारी करेगा. नोएडा अथॉरिटी का कहना है कि इससे सीधे तौर पर नोएडा के 20 हजार प्रॉपर्टी बायर्स को राहत मिलेगी. लेकिन इस मामले में राहत तो खरीदारों की बताई जा रही है लेकिन दरअसल ये बिल्डरों की मदद का प्रोग्राम है और बायर्स के आंदोलन की कमर तोड़ने की कोशिश.

अब इस स्कीम की बिल्डर के नज़रिए से समीक्षा करते है
बिल्डरों का फंसा हुआ पैसा प्रोजेक्ट से निकालने में दी गई ये सरकारी मदद है. बिल्डर करोड़ों और आम्रपाली जैसे मामले में अरबों रुपये फंसाकर बैठे थे. बिना प्रोजेक्ट कंप्लीट किए कानूनन वो फ्लैट नहीं बेच पाते. प्रोजेक्ट पूरे करने के लिए लोगों पर से पैसा मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी . अभी तक की हरकतों के कारण बिल्डरों को कोई बैंक भी लोन देने वाला नहीं था ऐसे में उनका डूबना पक्का था. अब बिल्डर बड़े आराम से आधे अधूरे प्रोजेक्ट में भी फ्लैट बेच देना. यानी आपका प्रोजेक्ट आपने पूरा नही किया लेकिन आप फिर भी फ्लैट रजिस्ट्री करके निकल सकते हैं. इतना ही नहीं अधूरे प्रोजेक्ट में जितने फ्लैट होंगे उनके ऊपर बकाया राशि का 65 फीसदी पैसे को डिवाइड कर प्रति फ्लैट बिल्डर से वसूला जायेगा. अगर बिल्डर 10 फ्लैट की रजिस्ट्री कराने आता है तो उसे बकाया राशि के अनुसार 10 फ्लैट पर अथॉरिटी की जितनी रकम बनती है उतना जमा कराना पड़ेगा. उसके बाद 10 फ्लैटों की रजिस्ट्री कर दी जायेगी. यानी बिल्डरों को एक तो आधे अधूरे प्रोजेक्ट बेचने की अनुमति मिल गई ऊपर से नोएडा अथॉरिटी ने पैसे निकालने का भी मौका दे दिया. इससे बिल्डर दीवालिया होने से भी बच जाएंगे

अब बताते हैं कि बायर्स को क्या मिला
मान लीजिए एक प्रोजेक्ट में 500 लोगों ने फ्लैट बुक किया है. बिल्डर 200 को फ्लैट दे देता है . वो 200 लोग आंदोलन से बाहर निकल जाएंगे. इन 200 लोगों को भी ज़रूरी नहीं की ठीक ठाक घर ही मिल जाए. लोग भागते भूत की लंगोटी के तौर पर थोड़ी कमी के साथ भी फ्लैट ले लेंगे. प्रोजेक्ट की कॉमन सुविधाएं भी बायर्स के हाथ से जाती रहेंगी. जितनी बिल्डर दे देगा उसे भी बायर्स प्रसाद समझ लेंगे. लेकिन बाकी बचे हुए 300 बायर्स के पास कोई उम्मीद ही नहीं बचेगी. वो मुट्ठी भर होंगे और उनकी आवाज़ भी कमज़ोर पड़ जाएगी. इस बात की भी व्यवस्था अथॉरिटी ने नही की है कि रजिस्ट्री से आया पैसा वो बाकी का आधा प्रोजेक्ट तैयार करने में करेंगे. यानी वो पैसे लेकर बाकी बायर्स को लटका भी सकते हैं.

बैंकों की मौज
जैसे ही फ्लैट की रजिस्ट्री होगी बैंक सीधे उस पैसे को वसूल लेंगे. यानी बैंकों के पास अपना लोन वसूलने का मौका होगा. जिन लोगों को फ्लैट मिल जाएगा. उनकी किश्तें भी समय पर आने लगेंगी.

नोएडा अथॉरिटी की मौज
रजिस्ट्री से पहले हर फ्लैट का अलग से कंप्लीशन सर्टिफिकेट मिलेगा जाहिर बात है इसमें कमियां भी होंगी. और इन कमियों को पास करने का मतलब है मोटी कमाई. काफी दिनों से रिश्वतखोरी के लिए जिन अफसरों के पास कोई ज़रिया नहीं बचा था. वो माल समेटने में लग जाएंगे. इस फैसले को लागू करने और स्कीम लाने में और बिल्डरों को बचा लेने में जो सेवा बड़े अफसरों नेताओं और मंत्रियों की हो सकती है उसका तो अनुमान ही लगाया जा सकता है.
कुल मिलाकर इस फैसले में सबकी मौज है. बिल्डर्स को बाहर निकलने का मौका मिल गया, बैंकों को बकाया मिल गया. अफसरों को रिश्वत मिल गई. लेकिन बायर्स टापता रह गया. फूट पड़ गई और जिन्हें फ्लैट मिले वो भी आधे अधूरे. जय योगी राज.