भारत की चारों तरफ से घेरा बंदी, चीन के नज़दीक जा रहे हैं पाक, नेपाल और श्रीलंका

नई दिल्ली : मोदी सरकार के अमेरिका से नज़दीकियां बढ़ाने का फैसला अब भारत की घेराबंदी में बदलने लगा है. चीन और पाकिस्तान अब अच्छे दोस्त बनने लगे हैं. पहले पाकिस्तान की अमेरिका से नज़दीकियों के कारण चीन उससे दूर रहता था. अब हालात ये हैं कि भारत के दोनों दुश्मन और प़ड़ोसी एकजुट हो रहे हैं और हम धरती के दूसरे किनारे पर बैठे अमेरिका के लिए अपने आसपास दुश्मनों को बढ़ावा देने लगे हैं.

चीन पहले ही हिंद महासागर में दक्षिण अमेरिका में डिजबाऊटी में अपना मिलीट्री बेस बना चुका है. इसके अलावा चीन ने 99 साल के लिए श्रीलंका के हंबानटोटा पोर्ट को भी लीज पर लिया है. नेपाल में भी चीन समर्थक सरकार आ चुकी है. ऐसे में अमेरिका से नज़दीकिओं ने भारत के लिए हालात मुश्किल कर दिए हैं. वो उस अमेरिका के साथ गठबंधन कर रहा है जो खुद अपने नागरिकों की नौकरियां बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है और दूसरों की मदद करने की हालत में नहीं है. अमेरिका के पास भारत की मदद के लिए आने का कोई सीधा रास्ता तक नहीं है.

ट्रंप के बवाल के बाद हमारे दुश्मन नज़दीक आ रहे हैं और पेइचिंग और इस्लामाबाद आर्थिक और रक्षा समझौते करने में जुट गए हैं. चीनी मीडिया के मुताबिक चीन ईरान के चाबहार पोर्ट के पास पाकिस्तानी मिलिटरी बेस का अधिग्रहण कर रहा है. हालांकि पाकिस्तान की तरफ से इस तरह की खबरों को पूरी तरह खारिज किया जा चुका है कि बलूचिस्तान प्रांत में सामरिक महत्व के ग्वादर बंदरगाह के पास चीन एक सैन्य अड्डा बनाने जा रहा है. यह बात चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कही है. इतना ही नहीं कि इस्लामाबाद ने द्विपक्षीय व्यापार में चीन की करंसी को मान्यता दे दी है. यानी चीन से आर्थिक नज़दीकियां पाकिस्तान की आर्थिक कमज़ोरी को भी दूर करेंगी.

ग्लोबल टाइम्स ने वॉशिंगटन टाइम्स की एक खबर का हावाला देते हुए कहा गया है कि चीन पाकिस्तान में अपना दूसरे विदेशी मिलिटरी बेस बनाने की तैयारी कर रहा है. इस मिलिटरी बेस के जरिए चीन रणनीतिक समुद्री रास्तों पर अपनी पकड़ को और मजबूत करने की कोशिश कर रहा है. बताया जा रहा है कि यह जगह ईरान के चाबहार पोर्ट के पास है. बलूचिस्तान के ग्वादर से यह जगह बेहद नजदीक है. चाबहार भारत, ईरान और अफगानिस्तान द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है. इसका मकसद अफगानिस्तान और भारत के बीच सीधा व्यापार करना है.

चीन की ग्लोबल मौजूदगी का अंदाज़ा इस बात से भई लगा सकते हैं कि चीन ने अपना पहला विदेशी मिलिटरी बेस अफ्रीका में हिंद महासागर  डिजबाउटी में बनाया. इसके अलावा चीन ने 99 साल के लिए श्रीलंका के हंबानटोटा पोर्ट को भी लीज पर लिया.