क्या अब चुनाव में वो होगा जो अब तक नहीं हुआ. क्या सरकार कोई रोकने वाला नहीं?

चुनाव आयोग कह रहा है कि वोटर कार्ड के लिए आधार जरूरी नहीं.
चुनाव आयोग के अधिकारी तरह तरह से आपके वोटर कार्ड से आधार को जोड़ना चाहते हैं
भारत में तीस करोड़ माइग्रेन्ट वर्कर है यानी वो अपने शहर में नहीं रहते
वो कहीं भी रहते हों उन्हे अधिकार है कि वो अपने शहर में जाकर मतदान कर सकें
रिपरिजेन्टेशन आफ पिपुल एक्ट में जो हाल में बदलाव किया गया है वो कहता है कि आधार जोड़ना ऐच्छिक है
भारत में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन का कोई कानून नहीं है
ड्राइविंग लायसेंस, जाति प्रमाण पत्र, बगैरह वोटर आईकार्ट के डेटाबेस से जुड़े रहते हैं
इसके जरिए हासिल की गई जानकारी से वोटर को टारगेटेड विज्ञापनों के जरिए प्रभावित करने का काम हो सकता है और तकनीकी जुगत से लोगों को मताधिकार से रोकने की कोशिश भी हो सकती है
आप कहेंगे ऐसा कैसे संभव है तो इसके उदाहरण हैं.
आंध्र प्रदेश में करीब पांच लाख परिवारों की लोकेशन राज्य सरकार की एक वेबसाइट से ट्रैक की गई
इसके लिए जाति और धर्म का क्राइटेरिया अपनाया गया.
इतना ही नहीं वोटरलिस्ट के शुद्धिकरण के नाम पर 22 लाख वोटरों के नाम तेलंगाना की वोटर लिस्ट से उड़ा दिए गए.
14 बार की नेशनल चैंपियन ज्वाला गुट्टा का नाम भी वोटरलिस्ट से गायब था.
तेलंगाना चुनाव आयोग ने वोटरआईडी कार्ड आधारित साफ्टवेयर का इस्तेमाल किया था जिसके जरिए ये खेल हुआ
खुद आधार भी सुरक्षित नहीं कह जा सकता 2020 में UIDAI reported that it had cancelled 40,000 fake Aadhaar cards, the first time it admitted to fraud in its systems.
अगर आप आधार के जरिए वोटर आईकार्ड बनाते हैं तो ऐसे फ्राड आधार वाले लोगों को वैद्धता प्राप्त हो जाएगी
हमने देखा है कि कैसे पैन और आधार को लिंक करने का फायदता उठाकर कई लोगों ने बेनामी संपत्तियों की फ्राड हुए है और खुद यूआईडीएआई ने इसे स्वीकार किया था.
कई कोर्ट केसेज में ये यूआईडीआई ने ये स्वीकार किया है कि उसे एनरोलमेंट आपरेटर, एजेंसी और यहां तक कि उसकी लोकेशन तक के बारे में नहीं पता था.
विश्वबैंक समेत कई संस्थाओं की स्टडी में पता चला है कि सिंगल आईडेंटिफिकेशन सिस्टम लोगं को उनके आधिकारों से दूर कर देता है. उन्हें चुनाव के अधिकार से भी कई बार दूर कर दे ता है
लेटिन अमेरिका में वोटर आईडी को लेकर हुए अध्ययन में ये पाया गया कि सिंगल आईडी सिस्टम के कारण बड़ी संख्या में लोग वोट नहीं डाल सके क्योंकि वो आईडी दिखाने की हालत में नहीं ते
जस्टिस बीएन कृष्णा उस कमिटी के चेयरमेन थे जो पर्सनल प्राईवेसी बिल का ड्राफ्ट तैयार कर रही थी.
चुनाव आयोग ने जब जस्टिस कृष्णा को दोनों डेटाबेस को मर्ज करने की सलाह दी तो उन्होंने इसे बेहद खतरनाक बताया था

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शिक्षा , इतिहास , अर्थशास्त्र, राजनीति और अन्य समसामयिक विषयों पर पत्रकार गिरिजेश वशिष्ठ के विश्लेषण इस चनल पर लगातार मिलता है. आजाद, खुली और स्वस्थ पत्रकारिता को अपने अनुभव से लेकर आते हैं.
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