देश में अब प्लास्टिक कचरे से बनेगा डीजल, अगले साल तक चलने लगेंगी गाड़ियां

देश में प्लास्टिक कचरे से डीजल बनाने की तैयारी चल रही है. यानी ज़मीन से काला सोना निकालने की ज़रूरत नहीं है. भारत की निर्भरता विदेशों पर भी बढ़ेगी. इससे बिना खनिज तेल के ही डीजल मिल जाएगा. इस डीजल में और पेट्रोलियम वाले डीजल में कोई फर्क नहीं होगा. सिर्फ दोनों का स्रोत अलग-अलग है. इसलिए यह भविष्य में एक बेहतरीन वैकल्पिक ईंधन साबित हो सकता है.

संस्थान के निदेशक अंजय रॉय ने हिन्दुस्तान को बताया कि वैज्ञानिकों ने दस किलोग्राम प्लास्टिक कचरे से आठ लीटर डीजल बनाने में सफलता हासिल की है. अब संस्थान बड़ा प्लांट स्थापित कर रहा है जिसमें एक हजार किलोग्राम प्लास्टिक कचरे से 800 लीटर डीजल रोज तैयार होगा.

वाहनों में परीक्षण के सफल होने के बाद इस तकनीक को उद्योग जगत को हस्तांतरित कर दिया जाएगा. जिसका बाद में लाभ आम जनता को मिलने लगेगा.

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) अगले साल जनवरी में प्लास्टिक से बने डीजल का वाहनों में परीक्षण शुरू करेगा. सीएसआईआर की देहरादून स्थित प्रयोगशाला इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम (आईआईपी) ने कुछ समय पूर्व प्लास्टिक कचरे से डीजल बनाने की तकनीक विकसित की है.

इसके बाद जनवरी में इस डीजल से परीक्षण के तौर पर वाहनों को परीक्षण के तौर पर चलाना शुरू करेंगे. कुछ अन्य संस्थान भी इसमें आईआईपी को सहयोग कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इसके लिए वाहनों के इंजन में कोई बदलाव नहीं करना होगा और सौ फीसदी प्लास्टिक डीजल को वाहनों में इस्तेमाल करना संभव होगा.

रॉय के अनुसार इस डीजल में और पेट्रोलियम वाले डीजल में कोई फर्क नहीं होगा. सिर्फ दोनों का स्रोत अलग-अलग है. इसलिए यह भविष्य में एक बेहतरीन वैकल्पिक ईंधन साबित हो सकता है. वाहनों में परीक्षण के सफल होने के बाद इस तकनीक को उद्योग जगत को हस्तांतरित कर दिया जाएगा. जिसका बाद में लाभ आम जनता को मिलने लगेगा.

इस वैकल्पिक ईंधन के मौजूदा डीजल की तुलना में सस्ता होने की भी उम्मीद है. साथ ही इसके इस्तेमाल से देश में पर्यावरण की भी सुरक्षा होगी. बता दें कि आईआईपी में विकसित जैव डीजल से हाल में हवाई जहाज उड़ाए गए हैं.

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