हारने वालेे को दिला दी शपथ, जीतने वाले को 5 साल तक पता ही नहीं चला

नई दिल्ली: कल्पना कीजिए कि एक शख्स चुनाव लड़ता है. चुनाव में उसकी किस्मत में हार आती है और लोग सहानुभूति बताकर चले जाते हैं. 5 साल बाद उस शख्स को पता लगता है कि वो दरअसल चुनाव जीता था. अब कल्पना लोक से बाहर आ जाइए. इसमें कल्पना करने की ज़रूरत नहीं है ये हकीकत है. गाजियाबाद के कैलाश नगर इलाके में रहने वाला मनोज नगर निगम चुनाव में पार्षद पद के लिए जीत गया लेकिन हारा हुआ उम्मीदवार गद्दी पर बैठा, पूरे पांच साल तक उसने सत्ता सुख लिया

दरसल गाजियाबाद के मनोज विश्वकर्मा ने सन 2012 के नगर निकाय चुनाव में अपने वार्ड 13 (वर्तमान में वार्ड 23) कैलाश नगर इलाके से पार्षद का चुनाव लड़ा था. मनोज ने अपने वार्ड से निर्दलीय चुनाव लड़ा था. जब रिजल्ट आया तो मनोज को 2530 वोटों से हारा हुआ घोषित कर दिया गया. मनोज को उम्मीद थी कि वो चुनाव हार नहीं सकता इसलिए 2017 में चुनाव जीतने की फिर तैयारी करने लगा. लेकिन निर्वाचन आयोग की वैबसाइट पर जो दिखा उसके बाद वो चौंक गया.सरकारी रिकॉर्ड में वो विजेता था. निर्वाचन आयोग की साइट पर उसके वार्ड से विजयी पार्षद के नाम के तौर पर खुद मनोज का नाम था.

मनोज को लगा कि ये चुनाव आयोग की बड़ी भूल है. उसने आरटीआई से जानकारी मांगी लेकिन चुनाव आयोग ने आरटीआई में जो जवाब दिया उसके बाद मनोज संभल नहीं सका. आयोग का कहना था कि विजेता मनोज ही था. विजेता मनोज था लेकिन 5 साल से उस के वार्ड से पार्षद के नाम पर कोई दूसरा शख्स राज कर गया. उस शख्स का नाम शख्स  महेश यादव था. महेश यादव फिलहाल समाजवादी पार्टी से जुडे हुए है.

इस बात से मनोज इस कदर आहत हुआ कि वह डिप्रेशन में चला गया जिसके चलते एक प्राइवेट अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है. हालांकि इस सदमे से अभी भी उसकी तबीयत खराब ही है जिसके चलते वह आराम फरमा रहा है.

जब इस बारे में मनोज के परिजनों ने गाजियाबाद के आला अधिकारियों से बात करना चाहा और निर्वाचन आयोग के लोगों से बात करना चाहा तो उन्होंने उन्हें यह कह दिया कि जो बीत गया उसको छोड़ो. और आगे की चुनाव की तैयारी में लगे.

भारत के लोकतंत्र के इतिहास का ये अनूठा केस है. अब सवाल ये है कि पार्षद तो मनोज बन न सका लेकिन क्या पूर्व पार्षद के तौर पर उसका नाम कहीं दर्जहोगा. क्या उसे रिटायरमेंट के लाभ मिलेगे?