ये है मोदी के बार-बार आपा खोने और गुस्से की वजह, फेसबुक पर सीनियर पत्रकार का विश्लेषण

30 साल में अनगिनत चुनाव देख चुके वरिष्ठ पत्रकार गिरिजेश वशिष्ठ का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी लगातार अपनी गरिमा के विपरीत खीझ निकालने की शैली में काम कर रहे हैं. वो विचलित हो जाते हैं और बात बात में उखड़ जाते हैं. उनके व्यवहार की शालीनता गायब हो गई है. पत्रकार ने इसके पीछे का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है….

मोदी जैसे भारी भरकम कद वाले नेता को सीधे हमले करने पड़ें. अखिलेश यादव के लिए कारनामेे जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना पड़े.राहुल गांधी के गूगल के चुटकुलों की बात करनी पड़े, संसद में रेनकोट वाले कमेंट करने पड़ें और लोगों की जन्मकुंडली खोलने की धमकी देनी पड़े. दूसरी तरफ उनके जवाब में अखिलेश और राहुल संयत और शांत दिखाई दें तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ये मनोविज्ञान गशा क्या इशारे कर रही है.
यूपी के चुनावों को लेकर नतीजे जो भी हों लेकिन बीजेपी और खुद मोदी उन्हें लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं दिखते.
उत्तर भारत में अपनी हालत से मोदी वाकिफ भी हैं लेकिन इस व्यग्रता, गुस्से और उतावले पन के पीछे वजह है चुनाव के बाद के पार्टी के अंदरूनी हालात. इस बार के चुनावों में अमित शाह ने एक शहंशाह के अंदाज़ में काम किया. पुराने धुरंधरों को एक तरफ डंप कर दिया गया. सबके लिए एक ही कमांड थी जो कहा जा रहा है वो करों. अब अगर परिणाम कमज़ोर आते हैं तो पार्टी के महत्वपूर्ण लेकिन अलग थलग कर दिए गए नेता हिसाब बराबर करेंगे . इससे अमितशाह के साथ साथ मोदी भी निशाने पर होंगे और बीजेपी पर गुजरात की पकड़ कमज़ोर होगी.
यही वजह है कि एक कमज़ोर सी भी बुरी खबर मोदी को उद्वेलित कर रही है. उनमें खीझ पैदा कर रही है और उन्हें गरिमा के विपरीत आचरण करने को मजबूर कर रही है.

इतना ही नहीं बीजेपी की तेज़ी से दक्षिण भारत में बढ़ती रुचि. एसएम कृष्णा का को पार्टी में शामिल करना, परम मित्र चो रामास्वामी नीकांत को राजनीति में आने का आमंत्रण भिजवाना और पनीर सेल्वम की मदद करना नॉर्थ ईस्ट में भी पैठ बढ़ने के लिए उतावला होना ये कुछ ऐसे संकेत हैं जो बताते हैं कि 2019 में मोदी उत्तरभारत की तरफ से ज्यादा आशा नहीं रख रहे हैं. इसकी तार्किक वजह भी है . पिछले चुनाव में बीजेपी को यूपी , बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान मैं जितनी सीटें मिलीं उनती सीटे दोबारा मिलने की उम्मीद पार्टी कर ही नहीं सकती. अगर सबकुछ ठीकठाक चला तो भी कम से कम 40-50 सीटों का नुकसान होगा. जाहिर बात है इसके लिए दक्षिण और उत्तरपूर्व भारत से ही उम्मीद है.