सीआईए ने करवाई थी राजीव गांधी की हत्या ?

नई दिल्ली: क्या सीआईए ने राजीव गांधी की हत्या करवाई ? क्या सीआईए राजीव गांधी को हटाना चाहता था? क्या सीआईए को पता था कि राजीव गांधी की हत्या होगी या फिर वो इस्तीफा देंगे और दोनों ही हालात में वो इस बात का विश्लेषण करने में लगा था कि राजीव गाधी अगर नहीं रहते हैं तो भारत में क्या होगा. सीआईए की हाल में सार्वजनिक हुई रिपोर्ट्स में ऐसे ही कई सनसनी खेज सवाल खड़े करने वाली जानकारियां है. राजीव गांधी की हत्या से 5 साल पहले ही सीआईए इस आशंका के बारे में विश्लेषण कर रहा था कि अगर राजीव गांधी नहीं रहते हैं तो क्या होगा. हत्या होती है तो क्य होगा और नहीं होती तो क्या उन्हें हटाया जा सकता है. सवाल उठता है कि सीआईए के इरादे ठीक थे तो वो ऐसी जानकारियां इकट्ठा क्यों करा रहा था? क्यों अमेरिका राजीव गांधी की हत्या के बाद के हालात का विश्लेषण कराने में व्यस्त था?

सीआईए ने इस बेहद विस्तृत और संपूर्ण रिपोर्ट तैयार में यह अंदाजा लगाया था कि अगर राजीव गांधी की हत्या हो जाती है या फिर वह अचानक राजनीतिक परिदृश्य से चले जाते हैं तब क्या होगा. इसके लिए बाकायदा एक रिपोर्ट तैयार की गई थई जिस का शीर्षक था ‘राजीव के बाद भारत’.

वाली 23 पन्नों की इस रिपोर्ट को मार्च 1986 में दूसरे वरिष्ठ सीआईए अधिकारियों की टिप्पणियों के लिए उनके सामने रखा गया था. सीआईए ने हाल में इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया है. हालांकि इस रिपोर्ट के कुछ हिस्सों को हटा दिया गया है.

पीएम रहते उनपर होगा जानलेवा हमला: CIA

इस रिपोर्ट का पूरा शीर्षक उपलब्ध नहीं है, क्योंकि इसके कुछ हिस्से हटा दिए गए हैं. इस रिपोर्ट को जनवरी 1986 तक सीआईए के पास उपलब्ध जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया था. उपलब्ध रिपोर्ट (जो हिस्से हटाए नहीं गए) की सबसे पहली लाइन में कहा गया है, प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर 1989 में कार्यकाल समाप्त होने से पहले कम से कम एक बार हमला होगा, जिसके सफल होने की आशंका है. उसने बाद में साफ तौर से कहा, निकट भविष्य में उनकी हत्या होने का बड़ा खतरा है. इसके पांच साल बाद गांधी की 21 मई 1991 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में हत्या कर दी गई थी.

राजीव मारे गए तो क्या होगा?

इस रिपोर्ट में इस बात का विश्लेषण और विचार विमर्श किया गया है कि राजीव गांधी के नहीं होने पर अगर नेतृत्व में अचानक बदलाव होता है, तो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक स्थिति में क्या परिदृश्य सामने आने की संभावना है और इसका अमेरिका, तत्कालीन सोवियत संघ और क्षेत्र के साथ भारत के संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है.

हत्या के बाद दंगे तो नहीं फैलेंगे?

अमेरिकी खुफिया एजेंसी इस रिपोर्ट में उस समय विभिन्न अतिवादी समूहों से राजीव की जान को खतरे का भी जिक्र किया गया है और उनकी हत्या की आशंका जताई गई है. इसमें कहा गया है, अगर कोई सिख या कश्मीरी मुस्लिम गांधी की हत्या करता है, तो भारत के राष्ट्रपति द्वारा उत्तरी भारत में सेना एवं अद्धसैन्य बलों की तैनाती समेत मजबूत सुरक्षा कदम उठाए जाने के बावजूद व्यापक स्तर पर साम्प्रदायिक हिंसा फैल सकती है.

नरसिंह राव और वीपी सिंह का भी जिक्र

दिलचस्प बात यह है कि इस रिपोर्ट में पीवी नरसिंह राव और वीपी सिंह का भी जिक्र किया गया है, जो राजीव के अचानक जाने के बाद अंतरिम रूप से कार्यभार संभाल सकते हैं या संभवित उम्मीदवार हो सकते हैं. राव ने 1991 में प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला था. ‘हत्या का खतरा: खतरे में स्थिरता’ शीर्षक वाले खंड में बताया गया है कि संभवत: अतिवादी सिखों या असंतुष्ट कश्मीरी मुस्लिमों द्वारा आगामी कई वर्षों में राजीव की हत्या करने की आशंका है. इनके अलावा कोई कट्टर हिंदू भी उन्हें निशाना बना सकता है.

आपको बता दें कि राजीव गांधई की हत्या के बाद नरसिंह राव को ही गद्दी मिली वो भी अमेरिकी विचारधारा पर चलकर भारत में पूंजीवाद का दौर लाए. उन्होंने ही मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री बनाया जिन्होंने भारत की आर्थिक और राजनीतिक दशा बदल दी.

रिपोर्ट में LTTE के जिक्र वाला हिस्सा गायब

रिपोर्ट के इस खंड का एक महत्वपूर्ण हिस्सा चूंकि हटा दिया गया है, इसलिए यह साफ नहीं हो सका है कि विश्लेषण में श्रीलंका के तमिल कट्टरपंथियों का जिक्र किया गया था या नहीं. एक अन्य खण्ड में हालांकि उग्रवादी श्रीलंकाई तमिलों और सिंहली वर्चस्व वाली कोलंबो की सरकार के बीच के विवाद के समाधान को लेकर राजीव की मध्यस्तता से जुड़ी कोशिशों के बारे में विस्तृत और गहराई में बात की गई है.

राजीव गांधी की हत्या की आशंका के अलावा रिपोर्ट में वर्ष 1989 से पहले भारत के राजनीतिक पटल से उनके अचानक हटने की स्थिति में संभावित तौर पर पैदा होने वाले विभिन्न राजनीतिक परिदृश्यों का भी विश्लेषण किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है, हालांकि हम मानते हैं कि निकट भविष्य में हत्या के कारण राजीव का कार्यकाल समाप्त हो सकता है, लेकिन कई अन्य बातें भी वर्ष 1989 से पहले उनके अचानक राजनीतिक पटल से हटने का कारक बन सकती हैं.

इस्तीफा देकर नहीं जाने वाले थे राजीव

इस रिपोर्ट में साथ ही कहा गया है कि स्वाभाविक तरीके से या दुर्घटना में राजीव की मौत हो सकती है. इसके अलावा भी कई अन्य कारक बताए गए हैं. अमेरिकी एजेंसी की रिपोर्ट में उनके नाराज होकर इस्तीफा देने के फैसले की किसी भी संभावना से इनकार किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है, हम इसका कोई संकेत नहीं देख रहे हैं और यकीन मानिये ऐसा उनके स्वभाव के विपरीत होगा. उसमें साथ ही कहा गया है, हमें आशंका है कि राजीव अनुमान लगा रहे होंगे (जैसा कि हम लगा रहे हैं) कि सार्वजनिक पद छोड़ने पर भी वह और उनके परिजन कट्टरपंथी हिंसा के निशाने पर रहेंगे.

राजीव के जाने का अमेरिका से रिश्तों पर असर का अंदेशा

सीआईए की रिपोर्ट के अमेरिका पर प्रभाव शीर्षक खंड में कहा गया है, हमारा मानना है कि राजीव की मौत से अमेरिकी हितों को बहुत अधिक झटका लगेगा. रिपोर्ट में साथ ही कहा गया है, हमारा मानना है कि राजीव की हत्या के बाद घरेलू राजनीति में परिवर्तन के कारण भारत-अमेरिका संबंध भी प्रभावित होंगे. रिपोर्ट में कट्टरपंथियों से निपटने, दूसरे देशों के साथ संबंधों (श्रीलंका के तमिल मुद्दे समेत), चुनिंदा विदेशी प्रौद्योगिकियों के अधिग्रहण को बढ़ावा देने समेत कई मुद्दों पर राजीव की नीतियों और उनके परिणाम का आकलन किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है, हालांकि प्रधानमंत्री राजीव गांधी की नीतियों का अगले कुछ वर्षों के दौरान जमकर विरोध होगा, लेकिन हमारा मानना है कि मौत को छोड़कर दिसंबर 1989 के वर्तमान कार्यकाल तक भारतीय राजनीति में उनका दबदबा कायम रहेगा.

सीआईए की रिपोर्ट में राजीव के अचानक भारतीय राजनीतिक परिदृश्य से हटने की स्थिति में एक राष्ट्रीय सरकार के स्थान लेने की संभावना के बारे में कहा गया है. रिपोर्ट में ऐसी किसी भी परिस्थिति में हालांकि सैन्य शासन की संभावना से इनकार किया गया है. info courtsey-aajtak