त्रिपुरा में बीजेपी के बिप्लब देब को सीएम बनाने में अड़चन, अमित शाह का नया सिरदर्द

अगरतला : त्रिपुरा में बीजेपी चुनाव तो जीत गई है लेकिन उसकी मुसीबतें अभी भी जारी हैं. अभी 24 घंटे ही हुए हैं कि प्रदेश में उसकी सहयोगी पार्टी इंडीजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) ने बीजेपी के सामने एक शर्त रख दी है. शर्त है आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की. इससे पहले ये माना जा रहा था कि भाजपा की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष बिप्लब देब ही राज्य के मुख्यमंत्री बनेंगे.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, भाजपा के सहयोगी दल आईपीएफटी की एक बैठक रविवार को अगरतला प्रेस क्लब में हुई थी. इस बैठक की जानकारी भाजपा को नहीं दी गई थी. इसमें आईपीएफटी के अध्यक्ष एनसी देबबर्मा ने भाजपा से किसी आदिवासी नेता को राज्य का अगला मुख्यमंत्री बनाने की मांग की है.

उन्होंने कहा, ‘आदिवासी मतदाताओं के समर्थन के बिना भाजपा-आईपीएएफटी गठबंधन को इतने बड़े पैमाने पर राज्य विधानसभा चुनाव में जीत नहीं मिल सकती थी. हम अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों के चलते चुनाव जीते हैं इसलिए आदिवासी मतदाताओं की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट से जीते हुए किसी उम्मीदवार को ही सदन का नेता चुना जाना चाहिए और जो सदन का नेता होगा वही अगले मुख्यमंत्री के तौर पर भी शपथ लेगा.’

बिप्लब देब के बारे में सवाल पूछने पर देबबर्मा ने कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया. हालांकि भाजपा के प्रदेश प्रभारी सुनील देवधर का कहना है, ‘हमने इस प्रेस कांफ्रेंस को नहीं सुना है. उन्होंने अपनी राय दी होगी. आईपीएफटी के नेताओं से हमारी मुलाकात सोमवार को होगी, जिस दौरान सभी मसलों पर बातचीत की जाएगी.’

दूसरी ओर माकपा और कांग्रेस नेताओं का कहना है कि वे आईपीएफटी की इस मांग पर हैरान नहीं है. कांग्रेस उपाध्यक्ष तापस डे ने कहा, ‘चुनाव प्रचार भाजपा और आईपीएफटी ने जो भी कहा वो विरोधाभासी था. पूरे चुनाव के दौरान आईपीएफटी यह कहती रही कि वे अलग राज्य के लिए चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं भाजपा का कहना था कि वे आईपीएफटी की इस मांग का समर्थन नहीं करते. यह एक अस्थिर गठबंधन होगा.’

माकपा सांसद और आदिवासी नेता जितेंद्र चौधरी का कहना है कि गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चलेगा. उन्होंने कहा, ‘यही होता है जब आप शॉर्ट-टर्म चुनावी फायदे के लिए एक अलगाववादी राजनीतिक दल से गठबंधन करते हैं. आईपीएफटी अपने इस रवैये पर टिका है इसका कारण है कि उन्हें इस बारे में पीएमओ से आश्वासन मिला है. त्रिपुरा में कभी अलग राज्य नहीं बन सकता. आदिवासी युवाओं को यह पता लग जाएगा कि इनके वादे कितने खोखले हैं.’