17000 लोगों के दर्द पर चुप क्यों है मीडिया, अदालत के आदेश के बावजूद भूखों मरने के हालात

नई दिल्ली:  चीफ सेक्रेटरी से चखचख हुई तो देश में चर्चा खड़ी हो गई. पुलिस रातों रात विधायकों को पकड़ लाई. लेकिन उसी दिल्ली में एक गंभीर मामला आया है. इस मामले पर सरकार पर संकट आ जाना चाहिए था लेकिन कहीं कोई सुगबुगाहट तक नहीं है.

शिक्षा पर ज़ोर देना उस पर बजट खर्च करना, गुरु की पूजा करना जैसे ज्ञान देने वाले नेताओं के राज में एक शिक्षक गरीबी से मर गया क्योंकि सरकार ने उसे वेतन नहीं दिया.

मरने वाले का नाम खेमचंद है और वो दिल्ली नगर निगम के प्राथमिक स्कूल में अध्यापक था. वेतन न मिलने पर उस का हार्टफेल हो गया.

मज़दूरों के लिए लड़ने वाली पार्टी सीपीएम ने इस मामले को उठाया है. सीपीएम ने अपने प्रेस रिलीज में दिल्ली नगर निगम में भ्रष्टाचार, प्रशासनिक विफलता और शिक्षा-स्वास्थ्य की जर्जर हालत का आरोप लगाया.

पार्टी के मुताबिक उत्तरी व पूर्वी दिल्ली नगर निगम में 17,000 अध्यापकों को कई महीनों से वेतन नहीं मिला है. महंगाई भत्ता, छुट्टी के भत्ते वर्षों से लंबित पडे हैं. देश की राजनीति में यह स्थिति चैंकाने वाली है.

खेमचंद के पीछे पूरा परिवार है उनके 5 बच्चे हैं और उन पर 9 लाख रूपये का कर्ज़ है. एक दलित परिवार जिनके पास जीने का और कोई अन्य साधन नहीं है, को अभी तक उनका बकाया पैसा नहीं मिला है. हालात ये हैं कि मौत के बाद भी बकाया के लिए चक्कर लगाकर परिवार परेशान है.

माकपा की पोलिट ब्यूरो सदस्य बृन्दा कारात, दिल्ली सी.पी.आई.(एम) के सचिव के. एम. तिवारी और दलित शोषण मुक्ति मंच के नत्थू प्रसाद ने कल दलित परिवार से मिलने गए और उन्हें भरपूर समर्थन व हर संभव मदद का दिलासा दिया. प्राथमिक अध्यापक संघ के नेता भी इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल थे.

सीपीएम ने मांग की है-

1) खेमचंद के परिवार को में से किसी एक सदस्य को नगर निगम के संबद्ध विभाग में नौकरी दी जाए.

2) उनके परिवार को सभी बकाया राशि का तुरंत भुगतान किया जाए.

3) दिल्ली उच्च न्यायालय के 5 जनवरी के फैसले के आधार पर नगर निगम के तहत काम कर रहे शिक्षकों एवं अन्य कर्मचारियों के लंबित वेतनों का तुरंत भुगतान किया जाए .