छह साल में 4 गुना वेतन बढ़ा चुके हैं देश के सांसद, क्या छोड़ना चाहेंगे अपनी कमाई ?

जयपुर: जब-जब सांसदों के वेतन में बढ़ोतरी की जाती है, कहा जाता है महंगाई बढ़ गई है. चीज़ों के दाम बढ़े हैं. अगर इसे ही महंगाई बढ़ने का इंडीकेटर माना जाएतो पिछले छह साल में देश में चार गुना महंगाई बढ़ चुकी है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो देश में महंगाई के नाम पर 6 साल में चार गुना वेतन बढ़ा चुके हैं.

सांसदों के वेतन में बढ़ोत्तरी के विरोध में अक्सर मुखर रहने वाले भाजपा सांसद वरुण गांधी ने इस मामले पर खुलकर अपनी बात कही है. उन्होने कहा कि सांसदों के वेतन में पिछले छह साल में चार गुना इजाफा हुआ है जबकि पहले की तुलना में संसद की कार्यवाही की अवधि घट गयी है. अध्यक्ष को लिखे पत्र में उन्होंने लिखा कि 16वीं लोकसभा में सांसदों की औसत संपत्ति 14.60 करोड़ रुपये है. राज्यसभा में 96 फीसद सदस्य करोड़पति हैं. उनकी औसत संपत्ति 20.12 करोड़ रुपये है. वर्तमान स्थिति में प्रति सांसद मासिक रूप से सरकार 2.7 लाख रुपये खर्च करती है.

जयपुर में एक निजी कॉलेज के कार्यक्रम में सम्मिलित हुए भाजपा सांसद वरुण गांधी ने सवाल उठाया कि क्या कोई आदमी अपने मन से अपनी तनख़्वाह बढ़ा सकता है या ख़ुद ही इसे तय कर सकता है, अगर नहीं तो सांसद और विधायक अपनी तनख़्वाह कैसे तय कर सकते हैं?

उन्होंने आगे संसद की कार्रवाई के घटते दिन के बावजूद सांसदों  के बढ़ते वेतन पर की तुलना 1952 की पहली संसद और वर्तमान संसद करते हुए कहा, ‘पिछले छह सालों में संसद सदस्यों की पगार चार गुना बढ़ गई है. 1952 से 1972 के बीच संसद साल में 150 दिन चला करती थी जबकि अब यह सिर्फ 50 दिन ही चलती है.’

वरुण ने महिला आरक्षण के मुद्दे पर कहा कि नेताओं की पत्नियों, बेटियों, बहनों को संसद में लाने की बजाय सामान्य महिलाओं, चिकित्सकों, गरीब महिलाओं, अध्यापकों और वकीलों को आगे बढ़ाए जाने की आवश्यकता है.

गौरतलब है कि वरुण गांधी पहले भी सासंदों के बढ़ते वेतन पर अपना विरोध दर्ज करा चुके हैं.

बीते माह ही उन्होंने लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन को पत्र लिखकर अपील की थी कि वे आर्थिक रूप से सम्पन्न सांसदों द्वारा 16वीं लोकसभा के बचे कार्यकाल में अपना वेतन छोड़ने के लिए आंदोलन शुरू करें.

उन्होंने तब कहा था, ‘भारत में आर्थिक असमानता प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. भारत में एक प्रतिशत अमीर लोग देश की कुल संपदा के 60 प्रतिशत के मालिक हैं. 1930 में 21 प्रतिशत लोगों के पास इतनी संपदा थी. भारत में 84 अरबपतियों के पास देश की 70 प्रतिशत संपदा है. यह खाई हमारे लोकतंत्र के लिए हानिकारक है. हमें जन प्रतिनिधि के तौर पर देश की सामाजिक, आर्थिक हकीकत के प्रति सक्रिय होना चाहिए.’

उन्होंने अपने पत्र में लिखा था,  ‘स्पीकर महोदया से मेरा निवेदन है कि आर्थिक रूप से सम्पन्न सांसदों द्वारा 16वीं लोकसभा के बचे कार्यकाल में अपना वेतन छोड़ने के लिए आंदोलन शुरू करें… ऐसी स्वैच्छिक पहल से हम निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की संवेदनशीलता को लेकर देशभर में एक सकारात्मक संदेश जाएगा.’

भाजपा सांसद ने कहा था कि 16वीं लोकसभा के बचे हुए कार्यकाल में हमारे वेतन को जस का तस रखने का फैसला भी इस दिशा में एक स्वागतयोग्य क़दम हो सकता है. ऐसे क़दम से कुछ लोगों को असुविधा होगी लेकिन इससे समग्र रूप से प्रतिष्ठान के प्रति लोगों का भरोसा पैदा होगा.

वरुण ने बढ़े वेतन के विपरीत सांसदों के प्रदर्शन में आई गिरावट को भी अपनी बात के समर्थन में पेश करते हुए कहा था, ‘क्या हम वाकई भारी बढ़ोत्तरी के लायक हैं? सदन की बैठकें कम हो गई हैं. बीते पंद्रह वर्षों में बिना चर्चा के ही चालीस फीसद विधेयक पारित हुए हैं. भारत में असमानता का अंतर बढ़ता जा रहा है.’