राम रहीम और नेताओं में क्या कोई अंतर है ? दिमाग हिला देने वाला लेख

आज के नेताओं और राम रहीम में क्या अंतर है? ये एक बड़ा सवाल है और इस सवाल का जवाब तार्किक रूप से खोजना ही चाहिए. राम रहीम बेहद उदार दिखता था और बड़ी बड़ी बातें करता था. नेता भी करते हैं. कभी टीवी पर तो कभी रेडियो में तो कभी अखबार में. राम रहीम के तीन करोड़ समर्थक हैं नेताओं के भी इससे ज्यादा है.नेता भी धर्म के नाम पर मजा मारते हैं राम रहीम भी. राम रहीम के लिए वो जान देने को तैयार हैं इनके वाले जान लेने को तैयार हैं . नेता और राम रहीम दोनों का काम एक दूसरे के बगैर नहीं चलता.

राम रहीम इस मामले में थोड़ा बेहतर ही है. नेता समाज कल्याण की बाते करते हैं और चुनाव के वक्त थोड़ा बहुत बांट भी देते हैं लेकिन राम रहीम तो अक्सर कुछ न कुछ कल्याण का काम करता ही रहता था. लड़कियों की शादी कराना, रोजगार देना. अच्छी और करीब करीब मुफ्त शिक्षा देना ( ये नेता नहीं दे पा रहे). जिनके अपने कॉलेज स्कूल हैं वो लूटने में लगे हैं.

राम रहीम अपनी इमेज बनाने पर करोड़ों फूंकता था. वो फिल्में भी बनाता था. हमारे नेता अखबारों में जनता के पैसे से विज्ञापन छापते हैं. और इमेज बनाने के लिए महंगी महंगी विदेशी एजेंसियां रखते हैं. इसके विपरीत राम रहीम का निजी जीवन बेहद घटिया था. वो दिखाता जैसा था निजी जीवन में इसका उल्टा था. नेता लोगों के निजी जीवन का वही हाल है. उसके निजी जीवन पर आप चैनल पर शो दिखा सकते हैं लेकिन इनके निजी निजी जीवन पर सोशल मीडिया में भी टिप्पणी नहीं कर सकते. जो लोग नई दिल्ली में नेताओं को करीब से जानते हैं सबको उनकी निजी हरकतों की जानकारी है. राम रहीम जेल में गया. उसके भक्तो को लाठियां गोलियां मिलीं. इनके भक्तों को पद मिलते हैं. जनता के पैसे से मौज मिलती है. नेताओं के बच्चों की शादी और शाही जन्मदिन की खबरें आप देखते रहते हैं.

राम रहीम के भी ऐसे ही होते थे. नतीजा ये निकलता है कि जितने देश केसंसाधनों पर कुंडली जमाए बैठे लोग हैं चाहे वो नेता हो, धन्नासेठ हों, स्वामी हों, बाबा हों या अफसर शाह ये सभी एक जैसे मक्कार हैं. दिखाते कुछ और हैं और करते कुछ और . ये परजीवी हैं. जोंक की तरह हैं. सबने कुछ लाख या कुछ करोड़ भक्तों को पाला हुआ है जो उनके लिए मरने या मारने पर उतारू रहते हैं. बाबा तो उल्लू बनाकर आपकी कमाई ऐेंठते हैं नेता सीधे टैक्स लगाकर छीन लेता है. नये नये टैक्स का अविस्कार करते हैं. दोनों ही आपके दिए पैसे लेकर मज़ा मारते हैं.

इसलिए सावधान भक्त मत बनना जोंक जब खून चूसती है पता तक नहीं चलता. ध्यान तक नहीं जाता. जीवविज्ञान कहता है कि परजीवी जब खून पीते हैं तो आपकी चेतना को सुन्न कर देते हैं. आपको इनके दंश के चुभने का एससास भी नहीं होता. जब खून निकल चुका होता है. परजीवी का काम हो जाता है तब तकलीफ का एहसास होता है. इसलिए सावधान. ये ताकत आपसे ही लेते हैं उसे आप पर ही आजमाते हैं. जितना हो सकें जोंक को दूर ही रखें. अगर चिपक गई है तो नमक डालते रहें. अगली बार बताएंगे केि धन्नासेठ और राम रहीम में क्या समानता है.