इस खबर को पढ़ने और तस्वीरों को देखने के बाद आप उबल पड़ेंगे

अगर आप में गरीबों पर अत्याचार देखकर भावनाएं नहीं उमड़तीं तो इस खबर को मत पढ़िए.

लखनऊ : पुरुष सरकारी लठैतों के हाथों पिटतीं , उत्पीड़न सहतीं और सरकार के दरवाज़े से नफरत के साथ खदेड़ी जा रहीं ये औरतें बेहद गरीब हैं और चाहती हैं कि सरकार उन्हें घर चलाने के लिए 15 हज़ार रुपये महीने दिया करे. क्योंकि जितना वेतन मिलता है उससे काम नहीं चलता.

ये महिलाएं मुफ्त का वेतन नहीं माग रहीं बल्कि सरकार के लिए काम करती हैं. इनका काम है गरीब लोग जब काम पर जाते हैं तो उनके बच्चों को संभालें. उन्हें खिलाएं पिलाएं. उनकी देखरेख करें. उन्हें माता पिता की कमी महसूस न होने दे. जब ये बच्चे को संभालती हैं तभी मजदूर राष्ट्र निर्माण के काम के लिए निकल पाते हैं.

लेकिन लाखों बच्चों की चाची, मां, ताई, दीदी और न जाने क्या क्या कहलाने वाली ये महिलाएं मार खा रही है. पिट रही हैं. पीटने वाला भी कोई और नहीं बल्कि वो है जिसे इन्हें इज्जत देनी चाहिए . इनका खयाल रखना चाहिए और इनकी देखरेख की जिम्मेदारी लेनी चाहिए.

लेकिन इस हाकिम को इन औरतों की परवाह नहीं है. पिछले 32 घंटे से ये गरीब और निम्न मध्यम वर्ग की औरते इसलिए हज़रतगंज में जमी हुई थीं क्योंकि सरकार में आने के लिए यूपी के सीएम ने उन्हें बहुत उम्मीदें जगाई थी. इनको भरोसा था कि दो तीन हज़ार रुपये महीने ज़रूर बढ़ जाएंगे वो अपनी बच्चियों के लिए शायद थोड़ा खाना और जुटा सकें. कुछ पैसे जोड़ सकें. या एक ट्यूशन लगा पाए. लेकिन मुख्य सेवक सरकार बनते ही मुख्य उत्पीड़क बन गए हैं. वो 125 करोड़ की शाहखर्ची से दिवाली मना रहे हैं. गरीबों के लिए उनके पास लाठियां हैं.

यूपी की राजधानी लखनऊ के हजरतगंज इलाके में बीते 32 घंटे से डटी आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों को हटाने के लिए मंगलवार दोपहर में पुलिस ने लाठियां बरसाई, थप्पड़ मारे , बाल खींचे. उन्हें दौड़ने पर मजबूर किया और जैसे ही दोड़ीं उन्हें डंडों से पीटा. ये थोड़ी आमदनी बढ़ जाने की उम्मीद में आई थीं और ये बी चाहती थीं कि सरकार उन्हें अपना कर्मचारी मान ले. जिस सरकार के लिए काम करती हैं वो कह दे कि हां ये हमारी कर्मचारी है. सरकार दलाल रखती है.

सरकार विज्ञापन पर पैसे खर्च करती है. सरकार दिवालियां मनाती हैं सरकार मूर्तियों पर करोड़ों खर्चने को तैयार है लेकिन अपने कर्मचारियों का कर्मचारी कहने में ऐतराज़ क्यों?

पुलिस की मारपीट इतनी निर्दयी और बेरहम थी कि पूरे इलाके में अफरा तफरी मच गई. पुलिस की लाठी से बचने के लिए लोग इधर उधर भागने लगी. सरकार ने इतना ही नहीं किया इनकी नेता और प्रदेश अध्यक्ष को भी 12 लोगों के साथ जेल में डाल दिया.

गिरफ्तार सभी आंगनबाड़ी नेताओं पर 106 और 116 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है. अपने नेताओं की गिरफ़्तारी और मांगों को न माने जाने से नाराज इन लोगों ने नारेबाजी कर विरोध दर्ज कराया. मुख्यत: ये लोग अपना मानदेय बढ़ाए जाने के लिए विगत 36 दिनों से प्रदेश भर में धरने पर बैठे हैं. इन लोगों का कहना है कि अब बग़ैर लिखित आदेश के कुछ भी नहीं मानेंगे.

उत्तग़र प्रदेश में करीब 1 लाख 88 हज़ार आंगनवाड़ी केन्द्रों पर काम करने वाली साढ़े तीन लाख से अधिक कार्यकर्त्रियाँ और सहायिकाएँ अपनी बेहद जायज़ माँगों को लेकर पिछले कई वर्ष से संघर्ष कर रही हैं लेकिन हर सरकार से उन्हें केवल झूठे आश्वाजसन और दमन के सिवा कुछ नहीं मिला है. भाजपा के शासन में आने के बाद से आंगनवाड़ी कार्यकर्त्रियाँ तीन बार प्रदेश की राजधानी में दस्तछक दे चुकी हैं. लेकिन फिलहाल चुनाव नहीं हैं इसलिए इन्हें नेताओं के प्यार भरे व्यवहार की जगह उनकी बेरहमी मिल रही है.