चरमपंथ से निपटने के कांग्रेसी रास्ते पर लौटेंगे मोदी? मलेशिया के पीएम से मांगी सलाह

नई दिल्ली: भले ही RSS, मोदी के समर्थक और बीजेपी ये मानती हो कि कट्टरपंथियों को बंदूक की भाषा से काबू किया जा सकता है लेकिन इस तरीके पर मोदी को खुद भरोसा नहीं है. उन्हें समझ नहीं आता कि मलेशिया ने कट्टरपंथ को कैसे काबू किया.
मोदी ने हाल में मलेशिया के प्रधानमंत्री नजीब रजाक से हुई मुलाकात में उनसे कट्टरपंथ को काबू कने का सीक्रेट पूछा. खुद रजाक ने अपने ब्लॉग में इसका खुलासा किया है.
उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके साथ बातचीत में मलेशिया के कट्टरपंथ खत्म करने के कार्यक्रम के बारे में खास तौर से जानना चाहते थे. बता दें कि रजाक 30 मार्च से 4 अप्रैल तक भारत की यात्रा पर थे.
रजाक ने अपने ब्लॉग में लिखा कि इस बारे में अपने ज्ञान और अनुभव को बांटकर उन्हें खुशी होगी. दोनों देशों के संयुक्त बयान में भी इस बात का जिक्र किया गया कि कट्टरपंथ के फैलाव को रोकने के लिए तुरंत उपाय किए जाने की जरूरत है.
दोनों देशों ने संकल्प जताया है कि सुरक्षा संस्थानों, खुफिया एजेंसियों और कानून का पालन कराने वाली एजेंसियों के बीच तालमेल से सहयोग बढ़ाने के ठोस कदम उठाए जाएंगे.
भारत और मलेशिया दोनों आतंकवाद और चरमपंथ से प्रभावित रहे हैं. मलेशिया में कट्टरपंथ मिटाने के प्रयासों को काफी सफल माना जाता है. इसके विपरीत मोदी की विचारधारा मानती है कि पैलेट गन और दमन आतंकवाद और कट्टरवाद को काबू करने का सबसे अच्छा रास्ता है.
मोदी के इस बयान को इस मामले में संघ की विचारधारा की पराजय के तौर पर भी देखा जा रहा है.
कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों से मिली सराहना के बाद मलेशिया ने इस मसले पर इंटरनैशनल कॉन्फ्रेंस का भी आयोजन किया है. फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वां ओलांद ने हाल में मलेशिया की यात्रा की थी.
बताया जा रहा है कि इस यात्रा के दौरान मलेशिया ने फ्रांस को एक मॉड्यूल सौंपा, जिसे कट्टरपंथ मिटाने और आतंकवादियों के पुनर्वास में 95 फीसदी सफल माना जाता है.
वहां कट्टरपंथ फैलाने के दोषियों को जेल में दूसरे कैदियों से अलग रखा जाता है, ताकि वे दूसरों को प्रभावित न कर सकें. सरकार कट्टरपंथ की ओर आकर्षित होने वालों को मुख्यधारा में लाने के लिए कठिन प्रयास करती है.
इसमें मलेशिया के इस्लामिक मामलों के विभाग, मनोवैज्ञानिक, एनजीओ आदि मिलकर काम करते हैं.