मायावती की मुसबत सिर्फ चुनाव हारने तक ही सीमित नहीं

नई दिल्ली: यूपी चुनाव में खराब प्रदर्शन का असर BSP चीफ मायावती के राज्यसभा के अगले कार्यकाल पर भी पड़ेगा. अप्रैल 2018 के बाद उनके लिए राज्यसभा का रास्ता लगभग बंद होने जा रहा है. दरअसल, अगले वर्ष उनकी राज्यसभा सदस्यता समाप्त हो रही है. ऐसे में उन्हें दोबारा निर्वाचित होने के लिए 37 विधायकों की जरूरत होगी, लेकिन यूपी चुनाव में उनकी पार्टी को सिर्फ 19 सीटें ही मिली हैं. वहीं, विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी के प्रदर्शन ने उनके लिए राज्यसभा के साथ ही विधान परिषद का रास्ता भी बंद कर दिया है. विधान परिषद सदस्य चुने जाने के लिए उन्हें कम से कम 29 विधायकों का समर्थन चाहिए होगा.
दो अप्रैल 2018 को मायावती सहित यूपी के 10 राज्यसभा सदस्यों की सदस्यता खत्म होगी. इनमें मायावती के साथ कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी,समाजवादी पार्टी नेता जया बच्चन, किरणमय नंदा, नरेश अग्रवाल और बीजेपी नेता विनय कटियार शामिल हैं. जबकि, 18 मई 2018 को यूपी विधान परिषद की 13 सीटें खाली हो रही हैं. इनमेंसमाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और राजेंद्र चौधरी प्रमुख नाम हैं.
राज्यसभा की राह आसान नहीं
2017 विधानसभा के जो चुनाव परिणाम आए हैं. उसमें 325 सीटें बीजेपी और उनके सहयोगी दलों को मिली हैं, जबकिसमाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन को 54 सीटें और BSP को 19 सीटें मिली हैं. इस हिसाब से 2018 के राज्यसभा चुनावों का आकलन करें तो 2 अप्रैल को राज्यसभा की 10 सीटें खाली होगीं और चुनावी अंकगणित के मुताबिक राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए कम से कम 37 विधायकों का वोट जरूरी होगा.
इस हिसाब से बीजेपी अपने 8 नेताओं को तो आसानी से राज्यसभा भेज देगी. नवें नेता को राज्यसभा भेजने के लिए बीजेपी को 8 और विधायकों का जुगाड़ करना होगा. इसी तरहसमाजवादी पार्टी सिर्फ एक नेता को राज्यसभा भेजने की स्थिति में होगी और इसके बादसमाजवादी पार्टी के पास 10 वोट अतिरिक्त होंगे. अगरसमाजवादी पार्टी की सहयोगी कांग्रेस के वोट भी जोड़ लें तो इसके पास एक राज्यसभा सीट जीतने के बाद 17 वोट बचेंगे. BSP के पास मात्र 19 विधायक हैं और इन विधायकों के बल पर उनका कोई भी नेता राज्यसभा नहीं पहुंच पाएगा.