“मैं मोदी के साथ एक फ्रेम में खड़े होने की कल्पना भी नहीं कर सकता”

टाइम्स ऑफ इंडिया के पत्रकार अक्षय मुकुल ने पत्रकारिता के क्षेत्र में दिया जाने वाला प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका पुरस्कार प्रधानमंत्री के हाथों लेने से इनकार कर दिया है. दो नवंबर को राजधानी दिल्ली में इन पुरस्कारों का वितरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों हुआ. लेकिन पत्रकार अक्षय मुकुल ने मोदी के हाथों पुरस्कार लेने में असमर्थता जताते हुए किसी अन्य व्यक्ति को अपनी तरफ से पुरस्कार ग्रहण करने के लिए भेजा. उन्होंने पुरस्कार समारोह में हिस्सा नहीं लिया.

वेबसाइट कैच से बातचीत में अक्षय मुकुल ने बताया, ‘मैं रामनाथ गोयनका पुरस्कार पाकर बेहद सम्मानित महसूस कर रहा हूं. मुझे इसकी बेहद खुशी है, लेकिन यह पुरस्कार मैं नरेंद्र मोदी के हाथों नहीं ले सकता. इसलिए मैंने किसी अन्य को इसे ग्रहण करने के लिए भेजा है.’

हार्पर कॉलिन्स इंडिया के पब्लिशर और प्रधान संपादक कृशन चोपड़ा ने उनकी तरफ से पुरस्कार ग्रहण किया. अक्षय मुकुल को रामनाथ गोयनका पुरस्कार उनकी पुस्तक “गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया” के लिए दिया गया था. इस पुस्तक को और भी कई पुरस्कार मिल चुके हैं.

समाचार पत्रिका कारवां से बातचीत में मुकुल ने बताया, ‘मोदी और मैं एक साथ एक फ्रेम में मौजूद होने के विचार के साथ मैं जीवन नहीं बिता सकता.’

वेबसाइट कैच से बातचीत में वो इस बात पर लगातार जोर देते रहे कि उन्हें यह पुरस्कार पाकर बेहद सम्मान महसूस हो रहा है. और पुरस्कार को लेकर उनके मन में किसी तरह का असम्मान नहीं है. बस उन्हें पुरस्कार प्रदान करने वाली शख्सियत से परहेज है.

गौरतलब है कि रामनाथ गोयनका पुरस्कार पत्रकारिता के क्षेत्र में दिया जाने वाला देश का बेहद प्रतिष्ठित पुरस्कार है. अक्सर इस पुरस्कार समारोह की अध्यक्षता प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति या देश के मुख्य न्यायाधीश करते हैं. यह पुरस्कार इंडियन एक्सप्रेस समूह द्वारा इसके संस्थापक रामनाथ गोयनका की स्मृति में दिया जाता है.

गोयनका पुरस्कारों की घोषणा के साथ ही जब इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने की बात समाने आई तब कुछ लोग इसका बहिष्कार करने की मुहिम चला रहे थे. माना जा रहा है कि अक्षय मुकुल ने इस अभियान को सैद्धांतिक आधार बनाकर ही प्रधानमंत्री से पुरस्कार न लेने का फैसला किया.

अपुष्ट खबरें हैं कि इंडियन एक्सप्रेस समूह के प्रबंधन द्वारा प्रधानमंत्री को पुरस्कार समारोह की अध्यक्षता के लिए बुलाने के फैसले से एक्सप्रेस के वरिष्ठ संपादकों में नाराजगी और असहजता थी.

अक्षय मुकुल टाइम्स ऑफ इंडिया में मानव संसाधन विकास मंत्रालय जैसी महत्वपूर्ण बीट कवर करते हैं. यह वही मंत्रालय है जसमें कुछ समय पहले तक स्मृति ईरानी मंत्री हुआ करती थीं.

केंद्र सरकार से नाराजगी का एक बेहतरीन उदाहरण हैदराबाद विश्वविद्यालय में सामने आया था. यहां के शोध छात्र वेलपुला सुंकन्ना ने कुलपति अप्पाराव पोडिले से अपनी डॉक्टरेट की डिग्री लेने से मना कर दिया था. सुंकन्ना, पीएचडी छात्र रोहित वेमुला एवं अन्य को पिछले साल विश्वविद्यालय के छात्रावास से निकाल दिया गया था.

दीक्षांत समारोह के दौरान जब सुंकन्ना का नाम पुकारा गया, तब वह मंच पर गया, लेकिन पोडिले से प्रमाणपत्र लेने से मना कर दिया. तब प्रति कुलपति विपिन श्रीवास्तव आगे आए और सुंकन्ना को पीएचडी की डिग्री दी. सुंकन्ना और वेमुला उन पांच छात्रों में शामिल थे, जिन्हें ‘अनुशासनात्मक’ आधार पर पिछले साल विश्वविद्यालय के छात्रावास से निकाल दिया गया था. बाद में उनका यह निलंबन रद्द कर दिया गया.

वेमुला के साथी शोध छात्र ने हैदराबाद विश्वविद्यालय के VC अप्पाराव के हाथ से डिग्री लेने से मना किया

केंद्र सरकार से नाराजगी का एक बेहतरीन उदाहरण हैदराबाद विश्वविद्यालय में सामने आया था. यहां के शोध छात्र वेलपुला सुंकन्ना ने कुलपति अप्पाराव पोडिले से अपनी डॉक्टरेट की डिग्री लेने से मना कर दिया था. सुंकन्ना, पीएचडी छात्र रोहित वेमुला एवं अन्य को पिछले साल विश्वविद्यालय के छात्रावास से निकाल दिया गया था.

दीक्षांत समारोह के दौरान जब सुंकन्ना का नाम पुकारा गया, तब वह मंच पर गया, लेकिन पोडिले से प्रमाणपत्र लेने से मना कर दिया. तब प्रति कुलपति विपिन श्रीवास्तव आगे आए और सुंकन्ना को पीएचडी की डिग्री दी. सुंकन्ना और वेमुला उन पांच छात्रों में शामिल थे, जिन्हें ‘अनुशासनात्मक’ आधार पर पिछले साल विश्वविद्यालय के छात्रावास से निकाल दिया गया था. बाद में उनका यह निलंबन रद्द कर दिया गया.