महंगाई तोड़ सकती है ढाई साल का रिकॉर्ड , तेल में लगी आग

नई दिल्ली: महंगाई को काबू रखने के लिए अगर समय रहते उपाय नहीं हुए तो यह एक बार फिर सिर उठा सकती है. वैश्रि्वक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में जरा सी वृद्धि महंगाई की आग में घी का काम कर सकती है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जनवरी 2017 में सब्जियों और दालों सहित कई खाद्य वस्तुओं की कीमतें कम रहने के बावजूद पेट्रोल और डीजल के मूल्य में मामूली वृद्धि के चलते थोक महंगाई में जबर्दस्त उछाल आया है. हाल यह है कि थोक महंगाई दर बढ़कर ढाई साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गयी है.

वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार जनवरी 2017 में थोक महंगाई दर 5.25 प्रतिशत रही जबकि पिछले साल दिसंबर में 3.39 प्रतिशत तथा जनवरी 2016 में -1.07 प्रतिशत थी. थोक महंगाई दर का यह स्तर जुलाई 2014 के बाद सर्वाधिक है. उस समय थोक महंगाई दर 5.41 प्रतिशत थी.

थोक महंगाई दर में ताजा उछाल की मुख्य वजह ईधन और विद्युत समूह की मुद्रास्फीति में उछाल है. जनवरी 2017 में कोकिंग कोल के भाव में 84 प्रतिशत, एविएशन टरबाइन फ्यूल में 10 प्रतिशत, फरनेस ऑयल में 8 प्रतिशत और डीजल व पेट्रोल के भाव में 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इस समूह का महंगाई की बास्केट में योगदान सिर्फ 14.91 प्रतिशत है.

वैसे पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत में वृद्धि पर सरकार की नजर है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट 2017-18 के अपने बजट भाषण में भी उल्लेख किया है कि भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के समक्ष आने वाले वित्त वर्ष में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें बड़ी चुनौती होगी. अंतरराष्ट्रीय बाजार मंे भी कच्चे तेल की कीमतों में धीरे-धीरे बढ़ोत्तरी हो रही है. भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें सरकार के नियंत्रण से मुक्त हैं, इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के भाव में वृद्धि का असर भारत में भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर सीधा पड़ता है.

बहरहाल संतोष की बात यह है कि खाद्य वस्तुओं की थोक महंगाई दर में गिरावट आयी है. जनवरी 2017 में अरहर के दाम 15 प्रतिशत, चने के 14 प्रतिशत, मसूर के 7 प्रतिशत, उड़द के 6 प्रतिशत, मूंग के 4 प्रतिशत, अंडे के 3 प्रतिशत, फलों और सब्जियों के दो प्रतिशत, चाय, बाजरा और गेहूं की कीमतें एक प्रतिशत कम रहने की वजह से खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर में कमी आयी. हालांकि ज्वार, चिकन और फिश जैसी कुछ चीजों के दाम में बढ़ोत्तरी हुई है.

वैसे एक तथ्य यह भी है कि जनवरी महीने में जहां थोक महंगाई दर बढ़कर ढाई साल के उच्चतम स्तर पर पहुंची है वहीं खुदरा महंगाई घटकर पांच साल के न्यूनतम स्तर पर आ गयी है. जहां तक मौद्रिक नीति का सवाल है तो इसके लिए खुदरा महंगाई को ही संज्ञान में लिया जाता है जबकि थोक महंगाई दर में वृद्धि सरकार के लिए व्यापक स्तर पर मांग के मुकाबले आपूर्ति की स्थिति को दर्शाती है. सौजन्य जागरण