क्या GST का पैसा हथियारों पर खर्च करना सही है ? 

नई दिल्‍ली : मोदी सरकार की प्राथमिकताएँ समझिए. आज की दो घटनाएं इस पर नज़र डालने के लिए खाफी हैं. किसानों की आत्महत्याएं जारी है. दिल्ली के जंतर मंतर पर अपना मूत्र पी चुके और सडक पर सानकर चावल खा चुके किसान आज पीएमओ गए थे प्रदर्शन करने उनपर सरकार ने लाठियां चलाई हैं. किसान कर्ज माफी की मांग कर रहे हैं. अगर किसानों का कर्ज पूरी तरह माफ कर दिया जाए तो करीब 80 हज़ार करोड़ से काम हो जाएगा. दूसरी तरफ लेकिन पड़ोसी देशों से सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए संबंध खराब करने का नतीजा है कि सेना के साजो सामान पर सीधे छब्बीस लाख 84 हज़ार करोड़ खऱ्च करना पडेगा. यानी चीन और पाकिस्तान से संबंध खराब बनाकर रखने की कीमत किसानों की कर्जमाफी से  33 गुना है.

ये आंकड़ा कहीं और से नहीं आया बल्कि खुद सशस्त्र बलों ने इसकी सिफारिश की है. टाइम्‍स ऑफ इंडिया के अनुसार, रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि 10 और 11 जुलाई को यूनिफाइड कमांडर्स कॉन्फ्रेंस में पांच साल की (2017-2022) 13वीं संयुक्त रक्षा योजना पेश की गई, जो 26,83,924 करोड़ रुपये की है. इसमें डीआरडीओ सहित सभी हितधारकों को शामिल किया गया है.

आप कल्पना कर सकते हैं कि कैसे जीएसटी बगैरह के नामपर लोगों के सिर पर कर्ज का बोझ लादा जा रहा है और सरकार की प्राथमिकताएं सिर्फ युद्ध सामग्री की खरीद है. सामाजिक कार्यक्ता विवेकानंद सिंह कहते हैं कि रक्षा उपकरणों में दलाली की बात किसी से छिपी नहीं है. यही वजह है कि ऐसी खरीद सरकार की प्राथमिकताओं में रहती है.

कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए केंद्रीय रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने भरोसा दिया कि आधुनिकीकरण पर निवेश को प्राथमिकता दी जाएगी. मौजूदा समय में भारत का रक्षा बजट 2.74 लाख करोड़ रुपये है, जोकि जीडीपी का 1.56 फीसदी है. यह 1962 में चीन के खिलाफ युद्ध के बाद से न्यूनतम आंकड़ा है. सेना चाहती है कि रक्षा बजट को बढ़ाकर जीडीपी के 2 फीसदी तक किया जाए. हम यहां शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च किए जाने वाले धन का आंकड़ा नहीं बताएंगे क्यों कि इससे आपको और दुख पहुंचेगा. इतना जान लीजिए ये आंकड़ा दिल दुखाने वाला है.