शशिकला का फ्यूचर खत्म, सुप्रीमकोर्ट ने दोषी माना, 4 साल की सज़ा, नहीं लड़ सकेंगी चुनाव

नई दिल्ली/चेन्नई : मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए ओ पनीरसेल्वम के साथ उलझीं अन्नाद्रमुक महासचिव शशिकला के राजनीतिक भविष्य को तय करने वाला उच्चतम न्यायालय का अहम फैसला मंगलवार को आ गया. आय से अधिक संपत्ति मामले में शशिकला का राजनीतिक भविष्य  मंगलवार को खत्म  हो गया और सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हेंफ 4 साल की सजा सुनाई है.  सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर बीजेपी प्रवक्ता नलिन कोहली ने कहा- सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान होना चाहिए. शांति बनाए रखें. कोई कानून को अपने हाथ में लेने की कोशिश ना करे. कानून सभी के लिए बराबर है.

शशिकला के अलावा सुधाकरन और इल्वरासी को 4 साल की कैद और 10-10 करोड़ का जुर्माना लगाया गया है. जयललिता के दिवंगत हो जाने के चलते उनका मामला खत्म कर दिया गया है.

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि उन्हें तुरंत अदालत  जाकर सरेंडर करना होगा. अब उनके  पास सिर्फ पुर्नविचार याचिका दायर करने का विकल्प है  लेकिन उसमें भी समय लगेगा.

अब शशिकला को 10 साल तक कोई राजनीतिक पद नहीं मिल पाएगा. अब शशिकला 6 साल तक चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगी.अब शशिकला को जेल जाना होगा. अब शशिकला के पास सरेंडर करने के अलावा कोई चारा नहीं है. अब शशिकला मुख्यमंत्री भी नहीं बन पाएंगी.

केस का इतिहास

27 सितंबर 2014 को बेंगलूरु की विशेष अदालत ने जयललिता को 4 साल की सजा सुनाई थी. इसके अलावा जयललिता पर 100 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया था.

इस केस में ही शशिकला और उनके दो रिश्तेदारों को भी चार साल की सजा सुनाई गई थी और 10-10 करोड़ का जुर्माना भी लगाया गया था. फैसले के बाद चारों को जेल भी भेजा गया था. जिसके बाद विशेष अदालत के बाद मामला कर्नाटक हाईकोर्ट पहुंचा था.

खिलाफ केस क्या है?

ये मामला करीब 21 साल पुराना साल 1996 का है, जब जयललिता के खिलाफ आय से 66 करोड़ रुपये की ज्यादा की संपत्ति का केस दर्ज हुआ था.

इस केस में जयललिता के साथ शशिकला और उनके दो रिश्तेदारों को भी आरोपी बनाया गया था. शशिकला के खिलाफ ये केस निचली अदालतों से होते हुए सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा है.

11 मई 2015 को हाईकोर्ट ने किया था बरी

11 मई 2015 को हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में चारों को बरी कर दिया था. हाईकोर्ट से जयललिता और शशिकला को बड़ी राहत तो मिली थी, लेकिन इसके बाद कर्नाटक की सरकार जयललिता की विरोधी पार्टी डीएमके और बीजेपी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने हाईकोर्ट के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय ने चुनौती दे दी. कर्नाटक सरकार इस मामले में इसलिए पड़ी, क्योंकि 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने केस को कर्नाटक हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया था.