वापस हो सकता है हाईवे पर शराब बंदी का फैसला, पढ़िए BBC का विश्लेषण

हो सकता कि हाईवे पर शराब की बिक्सुरी का फैसला वापस हो जाए. क्या फर्क पड़ेगा और कैसे सरकारें हिलेंगी. कैसे बदल जाएगी पूरी व्यवस्था. कहीं सरकारे इस फैसले को वापस लाने के लिए कानून तो नहीं ले आएंगी. जानने के लिए देखिए बीबीसी का ये विश्लेषण-

क्या आपको पता है भारत के लगभग सभी राज्यों की आय का दूसरा या तीसरा सबसे बड़ा ज़रिया शराब की बिक्री है?

मिसाल के तौर पर कर्नाटक में सालाना 15,200 करोड़ रुपए की आय शराब की बिक्री से होती है जो राज्य की कुल आय का करीब 14% है.

या उत्तर प्रदेश को देखिए, जहाँ ये आय करीब 18,000 करोड़ रुपए सालाना है और महाराष्ट्र में शराब की बिक्री से होने वाली सालाना राजस्व 20,000 करोड़ के करीब है.

इस तरह के तमाम आंकड़े तब से गिरने की कगार पर हैं जब से सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय और स्टेट हाइवे के 500 मीटर तक दायरे से शराब की दुकानें, रेस्त्रां और होटलों के बार को बंद करने का आदेश दिया है.

यह निर्णय सड़क सुरक्षा को सुनिश्चत करने के लिहाज़ से अहम बताया गया है और तमाम सरकारों, संगठनों वगैरह ने इसकी तारीफ़ की है.

वजह साफ़ है, भारत में सड़क दुर्घटनाओं और ख़ासतौर से राष्ट्रीय और स्टेट हाइवे पर होने वाली दुर्घटनाओं में ख़तारनाफ इज़ाफ़ा देखा गया है.

लेकिन दूसरी तरफ कोर्ट के इस नए आदेश से भारत की हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री और राज्य प्रशासनों में ‘हड़कंप’ भी मच गया है.

विश्लेषकों का अनुमान है कि इस आदेश से दसियों हज़ार ऐसे रेस्त्रां, मोटेल और होटल प्रभावित होंगे जो न सिर्फ़ हाइवे पर बल्कि उससे थोड़ा हट कर भी बने थे और राज्यो के कर में बड़े भागीदार थे.

नैशनल रेस्त्रां एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के सचिव राहुल सिंह ने बीबीसी हिंदी को बताया कि ‘अभी तक के नुकसान का अनुमान एक लाख करोड़ रुपए का बताया जा रहा है’.

उन्होंने कहा, “तीन साल पहले से चल रहे इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने पिछली दिसंबर फ़ैसला दिया था कि राष्ट्रीय और स्टेट हाइवे पर जो शराब के ठेके होते हैं, लोग उनसे लेकर शराब पीते हैं और गाडी चलाते हैं जिनसे हादसे होते हैं. बिलकुल सही. लेकिन इस नए ऑर्डर में अब हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री- जो कि एक सर्विस सैक्टर है- उसे शामिल कर लिया गया है. राज्यों की आय के अलावा कारोबार और दस लाख लोगो की नौकरियाँ दांव पर हैं”.

नीति आयोग के प्रमुख अमिताभ कांत ने भी इस फैसले के चलते एक ट्वीट में करीब दस लाख नौकरियों के ऊपर मंडराने वाले खतरे का ज़िक्र किया है.

जानकारों का कहना है कि पिछले 25 वर्षों के भीतर साल 2016 में शराब की बिक्री में पहली बार 0.4% की गिरावट दिखी गई थी और कुछ राज्यों में शराबबंदी के चलते इसके और गिरने की संभावना भी है.

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को सेहत और स्वास्थ्य के लिहाज़ से बेहतरीन बताया जा रहा है.

लेकिन प्रारंभिक अनुमानों के अनुसार राज्यों की कुल कर आय में इस फ़ैसले से क़रीब 50,000 करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है.

महँगी शराबों और भारत में शराब की चुनिंदा मैगज़ीनों में से एक ‘स्पिरिट्ज़’ के संपादक बिशन कुमार के मुताबिक़ फैसले के दो पहलू हैं.

उन्होंने कहा, “कोर्ट का फ़ैसला राईट टू लाइफ़ पर आधारित है जो सर्वोपरि होता है और उसके आगे सभी चीज़ें छोटी हो जाती हैं. दूसरी तरफ़ सैकड़ों करोड़ रुपए के निवेश, राज्यों से मिले लाइसेंसों और हज़ारों करोड़ की आय से समाज-कल्याण की स्कीमो में जाने वाले सरकारी धन पर भी गौर करना चाहिए था”.