छत्तीसगढ़ के जंगलों की निर्भयाओं की आवाज़ उठाने वाली अफसर को निकाल दिया

नई दिल्ली: गरीब और आदिवासियों पर जुल्म की जब इंतेहा होती है तो कुछ लोग ज़रूर निकलकर सामने आते हैं और सरकारी सितम को नंगा कर देते हैं. दिल्ली में निर्भया से रेप पर तो फांसी है लेकिन रोज़ हज़ारों मासूम बच्चियों से जब खुद सरकारी कारिंदे दरिंदगी करते हैं तो किसी को खबर तक नहीं होती लेकिन कुछ लोग है जो दुनिया को बेखबर नहीं रहने देना चाहते चाहे उन्हें कोई भी कुर्बानी देनी पड़े. ऐसी ही एक अच्छे दिल की अफसर को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है.

बस्तर के जंगलों में आदिवासियों के शोषण को फेसबुक पर उजागर करने वाली सहायक जेलर वर्षा डोंगरे को नौकरी से हटा दिया गया है. खबरों के मुताबिक वर्षा डोंगरे को रायपुर की सेंट्रल जेल में डिप्टी-जेलर के ओहदे से निलंबित कर दिया गया है. उन्होंने सुकमा नक्सली हमले के बाद एक फेसबुक पोस्ट लिखा था. पोस्ट में आरोप लगाया गया था कि छत्तीसगढ़ में नक्सली समस्या के पीछे आदिवासियों की जमीन पूंजीपतियों को सौंपने की भ्रष्ट साजिश है. डोंगरे के मुताबिक इसके लिए भोले-भाले आदिवासियों पर बेइंतहा जुल्म ढाए जा रहे हैं. हालांकि डोंगरे के निलंबन की वजह इस फेसबुक पोस्ट को नहीं बताया गया है.

क्या था पोस्ट में?
सुकमा हमले के बाद वर्षा डोंगरे ने लिखा था, ‘ घटना में दोनों तरफ मरने वाले अपने देशवासी हैं. भारतीय हैं. इसलिए कोई भी मरे तकलीफ हम सबको होती है. लेकिन पूँजीवादी व्यवस्था को आदिवासी क्षेत्रों में जबरदस्ती लागू करवाना. उनकी जल जंगल जमीन से बेदखल करने के लिए गांव का गांव जलवा देना, आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार, आदिवासी महिलाएं नक्सली हैं या नहीं, इसका प्रमाण पत्र देने के लिए उनका स्तन निचोड़कर दूध निकालकर देखा जाता है. पोस्ट के मुताबिक, ‘टाइगर प्रोजेक्ट के नाम पर आदिवासियों को जल, जंगल, जमीन से बेदखल करने की रणनीति बनती है, जबकि संविधान अनुसार 5 वीं अनुसूची में शामिल होने के कारण सरकार को कोई हक नहीं बनता आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन को हड़पने का.
आखिर ये सबकुछ क्यों हो रहा है. नक्सलवाद खत्म करने के लिए लगता नहीं. मैंने स्वयं बस्तर में 14 से 16 वर्ष की मुड़िया माड़िया आदिवासी बच्चियों को देखा था, जिनको थाने में महिला पुलिस को बाहर कर पूरा नग्न कर प्रताड़ित किया गया था. उनके दोनों हाथों की कलाईयों और स्तनों पर करेंट लगाया गया था, जिसके निशान मैंने स्वयं देखे. मैं भीतर तक सिहर उठी थी कि इन छोटी-छोटी आदिवासी बच्चियों पर थर्ड डिग्री टार्चर किस लिए?’
पहले भी लिया सरकार से लोहा
ये पहला मौका नहीं है जब वर्षा डोंगरे ने सरकार को सीधी चुनौती दी है. साल 2003 में छत्तीसगढ़ लोकसेवा आयोग की परीक्षा में कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. कई सालों तक चली सुनवाई के बाद डोंगरे की जीत हुई और उन्हें डिप्टी-जेलर बनाया गया था.