चीनी विशेषज्ञों की राय, भारत और चीन के बीच हो सकता है युद्ध

नई दिल्ली: सिक्किम सेक्टर में सीमा विवाद लगातार गंभीर होने लगा है. पहले चीन के विदेश मंत्री ने भारत के रक्षा मंत्री अरुण जेटली को जवाब दिया कि अगर आप 62 वाले भारत नहीं हैं तो हम भी 62वाले चीन नहीं है. अब चीनी विशेषज्ञ कह रहे हैं कि सीमा विवाद हल न हुआ तो युद्ध भी हो सकता है. विशेषज्ञों ने कहा कि उनका देश पूरी प्रतिबद्धता से अपनी संप्रभुता की रक्षा करेगा, फिर चाहे युद्ध की नौबत क्यों न आ पड़े.

चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने चीनी विशेषज्ञों के हवाले से यह बात कही. डोकलाम क्षेत्र में तीन हफ्तों से दोनों देशों के बीच गतिरोध है. शंघाई म्युनिसिपल सेन्टर फॉर इंटरनेशनल स्टडीज में प्रोफेसर वांग देहुआ ने कहा कि भारत 1962 से ही चीन को अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी मानता आ रहा है, क्योंकि दोनों देशों में कई समानताएं हैं. दोनों ही बहुत बड़ी जनसंख्या वाले विकासशील देश हैं.

ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, यदि भारत और चीन के बीच हालिया विवाद उचित ढंग से नहीं सुलझाया गया तो जंग के हालात पैदा हो सकते हैं. अखबार का कहना है कि 1962 में चीन और भारत की जंग हुई थी, क्योंकि भारत चीन की सीमा में घुस आया था. इसके परिणामस्वरूप चीन के 722 और भारत के 4,383 सैनिक मारे गए थे. वहीं शंघाई संस्थान के निदेशक जाओ गांचेंग ने कहा कि दोनों पक्षों को संघर्ष या युद्ध की जगह विकास पर ध्यान देना चाहिए. दोनों के बीच संघर्ष अन्य देशों को फायदा उठाने का अवसर दे सकता है, जैसे अमेरिका को. उन्होंने भारत को चीन के प्रति द्वेषपूर्ण रवैया छोड़ने की सलाह भी दी.

भारत की तैयारियों से घबराहट
चीनी विशेषज्ञों ने भारतीय रक्षा मंत्रालय द्वारा सीमा पर सैनिकों और हथियारों के 12 महीने खुले रहने वाली रेल लाइन बिछाने के लिए चीन-भारत सीमा पर किए जा रहे सर्वेक्षणों पर भी आपत्ति जताई. जाओ ने कहा कि भारत चीन के साथ बराबरी करने की कोशिश कर रहा है.

चीनी मीडिया में कुछ हास्यास्पद दावे भी सामने आए हैं. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि सिक्किम क्षेत्र में एक सड़क बनाने को लेकर मोदी की अमेरिका की यात्रा से पहले भारत की आपत्ति का मकसद वाशिंगटन को यह दिखाना है कि चीन को रोकने के लिए वे एक हैं. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि मोदी ने ट्रंप के साथ बैठक से पहले दो कदम उठाए. पहला, उन्होंने अमेरिका के साथ हथियार सौदा किया. हथियार सौदे से अमेरिका को भारत से भारी मौद्रिक लाभ ही नहीं होगा बल्कि इससे चीन पर नजर रखने के लिए भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत की स्थिति मजबूत होगी. दूसरे कदम का मकसद अमेरिका को यह दर्शाना है कि चीन के उदय को रोकने के लिए भारत कृतसंकल्प है.