नोटबंदी की मुसीबत और बड़ी हुई, कहीं हाहाकार न मच जाए, जनता के बाद अब बैंक खतरे में ?

नई दिल्ली : कहा जाता है कि डूबते बैंकों को बचाने के लिए पीएम मोदी ने नोटबंदी का रास्ता चना. ये बैंक उद्योंगपतियों के कर्ज डूबजाने से कंगाल होने के करीब पहुंचने लगे थै लेकिन नोटबंदी का फैसला बैंकों पर और भारी पड़ रहा है. मोदी ने नोटबंदी करके लोगों को घरों में पड़े पैसे बैंकों में पहुचा तो दिए लेकिन अब समस्या यह है कि इन्हें ठिकाने किस तरह से लगाया जाए. हालात खराब होने के कारण कोई लोन ले नहीं रहा और जमा पैसे पर ब्याज लगातार देना पड़ रहा है. अगर ब्याज़ दर कम हुई तो महंगाई बेतहाशा बढ जाएगी इसे काबू करना असंभव होगा.

शुक्रवार को वित्त मंत्रालय ने भारतीय रिजर्व बैंक और बैंकों के साथ एक अहम बैठक की. कई विकल्पों पर चर्चा किया गया जिसमें बैंकों को अतिरिक्त डिपोजिट सुविधा (स्टैंडिंग डिपोजिट फैसलिटी- एसडीएफ) देना भी था. कई बैंकों ने इस सुविधा से सहमति भी जताई लेकिन अधिकांश बैंकों को इसके कई प्रावधानों से आपत्ति है. एक सीमा से ज्यादा रकम बैंक रिजर्व बैंक में जमा करते हैं. अब रिजर्व बैंक भी अपना पल्ला झाड़ना चाहता है वो नयी स्कीम ला रहा है . इससेबैंक और टेंशन में हैं.

मौजूदा नियम के मुताबिक बैंकों को एक सीमा तक ही राशि अपने पास रखने की छूट होती है. बाकी पैसे उन्हें आरबीआइ में जमा करानी होते हैं. लेकिन एसडीएफ के तहत बैंक अब इस सीमा से ज्यादा राशि भी अपने पास रख सकेंगे. लेकिन इस राशि पर ब्याज की दर क्या होगी यह अभी तय करना होगा. आरबीआइ का मानना है कि अगर बैंकों के पास पड़ी अतिरिक्त राशि को खपाने की व्यवस्था नहीं हुई तो आने वाले दिनों में उसके लिए ब्याज दरों को कम करना मुश्किल हो जाएगा.

आरबीआइ ब्याज दरों को घटा कर उद्योग जगत को मदद देना चाहता है लेकिन बैंकों का कहना है कि उनके लिए मौजूदा हालात में कर्ज की दरों को घटाना मुश्किल है. अगर ब्याज़ दर कम हुई तो महंगाई बेतहाशा बढञ जाएगी इसे काबू करना असंभछव होगा वैसे आरबीआइ की तरफ से नोटबंदी के बाद जमा राशि को लेकर कोई आंकड़े तो नहीं दिए हैं लेकिन माना जाता है कि बैंकों के पास 14 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा राशि आ चुकी है. राशि जमा होने का सिलसिला अभी तक जारी है.