घोड़ी चढ़कर बारात ले जाने पर केजरीवाल की रोक, कहा- दूल्हे की इसी में भलाई है

नई दिल्ली : घोड़ों में जानलेवा ग्लेंडर्स संक्रमण मिलने की पुष्टि होने के बाद दिल्ली सरकार ने इनके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है, जिसके चलते सबसे ज्यादा असर घोड़ी वालों पर पड़ा है. संभावना जताई जा रही है कि इसके कारण अबकी बार दिल्ली में शादियों का सीजन काफी प्रभावित हो सकता है.

घोड़ी वालों के अनुसार, शादियों का सीजन जनवरी में शुरू होने वाला है. ऐसे में प्रतिबंध लगने से दूल्हे घोड़ी नहीं चढ़ सकेंगे. बहरहाल, दिल्ली में घोड़ी वालों ने सरकार से मांग की है कि शादियों में उन्हें इस आदेश पर छूट दी जाए.

राजा गार्डन स्थित संजय गांधी पशुपालन केंद्र ने कुछ समय पहले घोड़ों के करीब 13 सैंपल जांच के लिए भेजे थे, जिसके बाद हिसार स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीआई) ने सात सैंपल में ग्लेंडर्स संक्रमण पाए जाने की पुष्टि की है.

जानकारों का कहना है कि यह संक्रमण जानलेवा होता है. पशुओं के अलावा इंसानों में भी यह तेजी से फैलता है. गौर करने वाली बात यह है कि इस संक्रमण का कोई उपचार भी नहीं है. यही वजह है कि दिल्ली सरकार की विकास आयुक्त मनीषा सक्सेना ने घोड़ों के इस्तेमाल पर रोक लगाने की अधिसूचना जारी कर दी है.

15 जनवरी के बाद हर दिन शादी

पुरानी दिल्ली में घोड़ी वाले शमशेर बताते हैं कि 15 जनवरी के बाद से हर दिन दिल्ली में शादियां हैं. उनके पास अभी से पूरा महीना व्यस्त है. ऐसे में घोड़े-घोड़ियों पर रोक ने उन्हें मुश्किल में ला दिया है. शमशेर का कहना है कि सभी बुकिंग में वे एडवांस भी ले चुके हैं. उधर, त्रिलोकपुरी स्थित घोड़ी वाले आदिब और श्रवण का कहना है कि वे अपनी घोड़ियों की जांच समय पर करवाते हैं. ऐसे में उन पर प्रतिबंध लगना पेट पर लात मारने जैसा है.

पूरे देश में लगे प्रतिबंध : पेटा

पेटा के सीईओ डॉ. मनीलाल वलियते का कहना है कि ग्लेंडर्स संक्रमण बहुत ही खतरनाक है. इसका एक भी सैंपल पॉजिटिव मिलने का मतलब बड़ा खतरा है. इंसानों और पशुओं दोनों को ही ये मौत के दरवाजे तक ले जाता है. इससे काफी दर्द भी होता है. इससे बचने के लिए घोड़ों को यूथेनसिया देना होगा. दिल्ली की तरह पूरे देश में सरकार को एहतियात के तौर पर घोड़ा-घोड़ी के हर तरह के इस्तेमाल पर रोक लगा देनी चाहिए.

क्या है ग्लैंडर

ग्लैंडर बरखेलडेरिया मेलिआई जीवाणु जनित रोग है.
घोड़ों के बाद मनुष्यों, स्तनधारी पशुओं में पहुंचता है.
नोटिफाईएबल है,जेनोटिक रोगों की श्रेणी रखा गया.
संक्रमण, नाक, मुंह के म्यूकोसल सरफेस और सांस से होता है.
मैलिन नाम के टेस्ट से बीमारी को कन्फर्म किया जाता है.
घोड़े, खच्चर, गधों के शरीर की गांठों में इंफेक्शन और पस बन जाती है.
जानवर उठ नहीं पाता, शरीर में सूजन आ जाती है.
बीमारी से पीडि़त होने पर मौत निश्चित.

संक्रमण का दायरा
पीडि़त पशु के पास के पशुओं में सौ प्रतिशत.
6 से 10 किमी. तक के दायरे में 50 प्रतिशत.
30 किमी. तक 20 प्रतिशत फैलने की संभावना.

मनुष्यों में लक्षण
मांस पेशियों में दर्द.
छाती में दर्द.
शरीर में अकडऩ.
तेज सिरदर्द.
नाक से पानी बहता है .