जीन्स पहनने से होती है सीजेरियन डिलीवरी!

नई दिल्ली: विज्ञान कितना भी तरक्की कर जाए लेकिन अंधविश्वास और के मारे पुरातनपंथी अपने लिए कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं. जब लोग विज्ञान की बातें करने लगते हैं तो ये लोग विज्ञान को ही तोड़ मरोड़ कर अपनी बातों को सही साबित करने के रास्ते निकाल लेते हैं.

एक जैन मुनी हैं निर्भय सागर जी महाराज. 1963 में जन्मे इन महाराज ने सागर के डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय से गणित में एमएससी किया. 28 जुलाई 1988 में उन्होंने दीक्षा ली और इनका नाम निर्भयसागर महाराज हो गया. अब तक वे कई किताबें लिख चुके हैं वहीं 45 जेलों में प्रवचन देकर एक लाख से अधिक कैदियों से अपराध, शराब और मांस का त्याग कराने का दावा करते हैं. विज्ञान की मनगढ़ंत व्याख्या करके वो अपने भक्तों को ये समझाने में कामयाब हैं कि वो वैज्ञानिक संत हैं.

बाबा जी ने जींस का विरोध करने के पुरातनपंथी विचार को विज्ञान का जामा पहनाने के लिए एक नये तर्क का सहारा लिया है. बाबाजी कहते हैं कि लड़कियों के जींस पहनने से गर्भाशय के पास ग्लायकोजिन जमा हो जाता है. इससे सीजेरियन डिलेवरी के केस बढ़ रहे हैं. बाबा के मुताबिक भारतीय जलवायु के अनुसार यहां सूती व ढीले वस्त्र पहनना चाहिए.

प्रेम विवाह के खिलाफ बाबा का अलग तर्क है. वो कहते हैं कि प्रेम विवाह से प्रेम नहीं नफरत फैलती है. वो कहते हैं कि जो अंतरजातीय विवाह बिना मां-बाप की आज्ञा से होता है, वह नहीं होना चाहिए. जब कोई लड़की ऐसा करती है तो इससे जातिवाद का तनाव बढ़ता है. यानी बाबा कहते हैं कि कि प्रेम विवाह से जातिवाद बढ़ता है कम नहीं होता. बाबा कहते हैं कि प्रेम विवाह करने से तलाक होते हैं, आत्महत्याएं होती हैं.

प्रेम विवाह के लिए बाबा 24 साल की उम्र की तजबीज करते हैं लेकिन अरेंज मैरिज 18 साल में करने इन्हें एतराज नहीं है. बाबा कहते हैं कि  परिपक्व नहीं होने से भारतीय संविधान में एक सुधार हो जाए कि अपनी मर्जी से विवाह करने की आयु 24 वर्ष हो. सभी समाज के लोग मिलकर इस पर पहल करें तो समाज के लिए काफी अच्छा होगा.

बाबा अपने भाषण में ज्यादातर एडल्ट टाइप के मसले डिस्कस करते हैं ताकि लोग चटखारे लेकर सुनें. वो प्यार की बात करते हैं शादी की बात करते हैं. गर्भधारण की बत करते हैं

दूसरे धार्मिक नेताओं की तरह निर्भयसागर महाराज को भी परिवार नियोजन पसंद नहीं है वो कहते हैं कि परिवार नियोजन महापाप है, दो बेटे-दो बेटियां तो होना चाहिए. बाबा बहुविवाह को भी मान्यता देते हैं. कहते हैं कि जैन धर्म बहु विवाह को मानता है लेकिन भारतीय संविधान के पालन के लिए समाज ऐसा नहीं करता. हम संविधान को महत्व देते हैं .