गरीब हो या अमीर सबको मिलेगी मुफ्त सेलरी,  वामपंथी स्कीम ला रहे हैं मोदी

नई दिल्ली: मोदी सरकार नोटबंदी के बाद देशभर के लोगों को बड़ा तोहफा दे सकती है.  इसके तहत देश के हर नागरिक को हर महीने आमदनी के तौर पर एक तयशुदा रकम मिलेगी.  सूत्रों के मुताबिक, आर्थिक सर्वे और आम बजट में इसका ऐलान हो सकता है.  यह भी कहा जा रहा है कि अगर सबके लिए नहीं तो सरकार कम-से-कम उन जरूरतमंदों के लिए यह स्कीम लागू करेगी, जिनके पास कमाई का जरिया नहीं है.  हर अकाउंट में 500 रुपये डाल कर योजना की शुरुआत हो सकती है.  इससे देश भर के करीब 20 करोड़ जरूरतमंदों को फायदा मिल सकता है.

यह प्रस्ताव लंदन यूनिवर्सिटी के प्रफेसर गाय स्टैंडिंग ने तैयार किया है.  जिनीवा से बातचीत में उन्होंने दावा किया कि मोदी सरकार से जुड़े एक जिम्मेदार शख्स ने कन्फर्म किया है कि बजट में इसका ऐलान मुमकिन है.  प्रफेसर गाय ने संकेत दिया कि सरकार इसे फेज वाइज लागू कर सकती है.  उन्होंने कहा कि सरकार ने मध्य प्रदेश की एक पंचायत में पायलट प्रॉजेक्ट के तौर पर ऐसी स्कीम पर काम किया था, जहां बेहद साकारत्मक नतीजे आए थे.  मैंने अपने प्रपोजल में अमीर-गरीब सबके लिए निश्चित आमदनी की बात कही है.  प्रफेयर गाय पूरी दुनिया में यूनिवर्सल बेसिक इनकम की पुरजोर वकालत करते रहे हैं.  वैसे सरकारी सूत्रों ने बजट में इस स्कीम के बारे में कुछ भी बताने से इनकार कर दिया, लेकिन प्रफेसर गाय ने इस मसले पर विस्तार से बात की.  पढ़िए इस बातचीत के अहम अंश…

मुझे पिछले दिनों सरकार के टॉप अधिकारियों की ओर से बताया गया कि वो बजट सर्वे में मेरी रिपोर्ट को शामिल कर रहे हैं.  उन्होंने बताया कि मोदी सरकार इसकी घोषणा करेगी.  यह नरेंद्र मोदी का बहुत बोल्ड डिसीजन होगा और देश के इतिहास में गेमचेंजर हेागा.

फिर भी कोई ठोस संकेत तो मिला होगा.  आपकी इस मुद्दे पर पीएम मोदी से बात हुई?
आपको बता दूं कि यूनिर्वसल बेसिक इनकम स्कीम पर पेश रिसर्च को इकनॉमिक सर्वे रिपोर्ट में शामिल किया गया है और नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविन्द पनगढ़िया ने मुझसे इस बारे में बात की थी और जानकारी दी.

इस स्कीम के तहत किसे फायदा मिले, किसे नहीं मिले, यह कैसे तय होगा?
योजना तभी सफल होगी जब अमीर-गरीब का भेद किए बिना हर नागरिक को खास इनकम हर महीने मिले.  इसमें भेद किया तो फिर स्कीम अपने मूल रूप में नहीं रहेगी. करप्शन बढ़ेगा. हां, एक बार सभी को पैसे देने के बाद जो गरीबी के दायरे से बाहर आएं उनसे सब्सिडी वापस लें या दूसरे तरीके से राशि वापसी का सिस्टम बनाएं. सभी को आधार नंबर से जोड़कर यह लाभ मिलेगा.

ऐसी स्कीम के लिए बहुत बड़े फंड की जरूरत होती है. क्या सरकार के पास फंड है?
मैंने अपनी रिपोर्ट में फंड के बारे में भी स्थिति स्पष्ट कर दी है. मेरे हिसाब से अगर स्कीम को पूरे देश में लागू किया जाता है तो जीडीपी का 3 से 4 फीसदी खर्च आएगा, जबकि अभी कुल जीडीपी का 4 से 5 फीसदी सरकार सब्सिडी में खर्च कर रही है. हां, इस स्कीम को लागू करने के बाद सरकार को चरणबद्ध तरीके से सब्सिडी समाप्त करने की दिशा मे भी कदम उठाना पड़ेगा. यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम और सब्सिडी दोनों साथ-साथ नहीं चल सकतीं. इसके अलावा इस स्कीम के लिए सरकार माइनिंग और बड़े प्रॉजेक्ट पर अलग से सरचार्ज निकालकर राशि जुटा सकती है. मुझे नहीं लगता है कि कहीं से फंड की कमी होगी.

अभी मोदी सरकार ने नोटबंदी का फैसला लिया था. क्या यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम और नोटबंदी के बीच कुछ संबंध है?
नहीं. जहां तक मेरे प्रॉजेक्ट का सवाल है, दोनों का आपस में कोई संबंध नहीं है. लेकिन नोटबंदी बहुत साहसिक फैसला है. नोटबंदी के बाद जो राशि आएगी उसका उपयोग सरकार इसमें कर सकती है, बस इतना संबंध है. हां, नोटबंदी के फैसले के बाद इतना जरूर संकेत मिला कि मोदी और बड़े जोखिम भरे फैसले कर सकते हैं.

ऐसे फैसले का राजनीतिक असर कैसा होगा? क्या मोदी इस स्कीम को लागू करने का राजनीतिक जोखिम ले सकते हैं?
नागरिकों के कल्याण और देश के आर्थिक विकास के लिए जरूरी स्कीम को राजनीति की नजरों से देखने की जरूरत नहीं है. लेकिन मोदी अगर इसे लागू करते हैं तो उन्हें राजनीतिक रूप से भी बहुत बड़ा लाभ होगा. नोटबंदी के बाद वह गरीबों के हितैषी माने जा रहे हैं और यह स्कीम भारत जैसे देश जहां सबसे बड़ी ऐसी आबादी है जिसका हर महीने की कोई निश्चित आय नहीं है, उनके लिए यह जादू होगा.

आपने भारत में जो पायलट प्रॉजेक्ट किया उसके क्या नतीजे रहे?
हमने इंदौर के 8 गांवों की 6,000 आबादी के बीच 2010 से 2016 के बीच इस स्कीम का प्रयोग किया. इसमें पुरुष-महिला को 500 और बच्चे को हर महीने 150 रुपये दिए गए. इन पांच सालों में इनमें अधिकतर ने इस स्कीम का लाभ मिलने के बाद अपनी आय बढ़ा दी. दिल्ली में लगभग दो सौ लोगों के बीच प्रयोग सफल रहा. इनकी केस स्टडी को सरकार ने देखने-समझने के बाद ही आगे बढ़ने का मन बनाया.

आलोचकों का मानना है कि ऐसी स्कीम से लोगों को कुछ न करने की अधिक प्रेरणा देगी?
यह गलत धारणा है. दरअसल मध्य वर्ग पूर्वग्रह ऐसी सोच के पीछे है. मध्य प्रदेश सहित विश्व के तमाम दूसरे इलाकों में हमने जब पायलट प्रॉजेक्ट पर काम किया तो पाया कि दरअसल इस स्कीम के बाद तो उनमें कुछ करने की अधिक प्रेरणा जगी. जब महीने की एक निश्चित इनकम के बारे में गरीबों को गारंटी मिली तो खुद को अपग्रेड करने और उससे अधिक कमाने की प्रेरणा अधिक मिली.

आलोचक यूनिर्वसल बेसिक इनकम स्कीम को लेफ्ट आधारित पॉपुलिस्ट स्कीम के तौर पर भी देखते हैं. ऐसे में आर्थिक सुधार के हिमायती माने जाने वाली मोदी सरकार ऐसी स्कीम पर आगे बढ़ने को कैसे तैयार हो गई?
यह गलत सोच है कि यह स्कीम लेफ्ट केंद्रित है. वैसे भी, मुझे न कांग्रेस, न ही मोदी की नीतियों को अलग करके देखने की जरूरत है. कांग्रेस के शासन के दौरान भी इस स्कीम के बारे में सरकार ने मुझसे संपर्क किया था. लेकिन तब सरकार इसे लागू करने की हिम्मत नहीं कर सकी. Ctsy NBT