Exclusive: क्या महेश शाह को नोटबंदी का पहले से ही अंदाज़ा था ? क्या उसने बीजेपी नेताओं का धन सफेद किया ? उठ रहे हैं और भी सवाल?

क्या महेश शाह अंदर का आदमी था ?
क्या बीजेपी के नेताओं का कालाधन सफेद करने के लिए किया गया महेश शाह का इस्तेमाल?
क्या महेश शाह को नोटबंदी की खबर पहले से ही थी ? क्या बड़े कॉर्पोरेट्स से था महेशशाह का रिश्ता ?
क्या महेश शाह लगातार बीजेपी के नेताओं के संपर्क में था? सरकारी काम काज खत्म होने का वक्त दफ्तर बंद होने के साथ ही खत्म हो जाता है लेकिन महेश शाह के लिए आधी रात को इनकम टैक्स के आला अफसरों ने दफ्तर खोला. इसके पीछे क्या वजह थी?
जी हां ये सारे सवाल एक साथ खड़े हो गए हैं खास तौर पर हार्दिक पटेल के ट्वीट के बाद. हार्दिक पटेल ने कहा है कि बीजेपी के दफ्तर के सीसीटीवी फुटेज को सेफ किया जाए. उन्होंने कहा है कि ये फुटेज महेश शाह के बीजेपी के रिश्तों का सबूत है. हार्दिक का कहना है कि महेश शाह अक्सर बीजेपी नेताओं से मिलता रहता था.
अचरज की बात ये है कि महेश शाह ने कालाधन न होते हुए भी क्यों हज़ारों करोड़ का काला धन सफेद कराने की दरख्वास्त दी रकम सफेद कराई तो क्यों? किसके लिए कराई.
जाहिर बात है कि सिर्फ पागलपन के लिए तो कोई ऐसा नही करता. एक थ्योरी ये आ रही है कि उसने एडवांस में ही नोटबंदी से दो महीने पहले दूसरों का कालाधन सफेद कराने का इंतजाम कर लिया था. अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि अपनी आय की घोषणा करने वाले महेश शाह को नोटबंदी का पहले से अंदाज़ा था. या फिर उन लोगों ने जिन्हें नोटबंदी का अंदाज़ा था इन दोनों को अपने काले धन को सफेद करने में इस्तेमाल किया. जाहिर बात है नोटबंदी के बाद ये लोग अपनी एक घोषणा से किसी का भी कालाधन सफेद करने की शक्ति से संपन्न हो गए थे. फर्ज कीजिए किसी के पास अगर 100 करोड़ के पुराने नोट हैं तो महेश शाह के लिए बाएं हाथ का खेल है कि वो एक चैक देकर किसी से भी य़े रकम लेले और शान से इस रकम को सफेद करते हुए एक चैक उस शख्स को दे दे. एक बात यो भी कही जा रही है कि नोट बंदी से पहले भी तो लोग अपना धन महेश शाह से सफेद करा सकते थे इसका नोटंबदी से क्या लेना देना. ये बात भी सही हो सकती है लेकिन जब सरकार ने योजना में धन की घोषणा करने वालों के नाम गुप्त रखने का वादा किया था तो फिर कोई महेश शाह जैसे शख्स को बीच में लाना क्यों चाहेगा?
अंदाज़ा तो यहां तक लगाया जा रहा है कि गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ बदनाम नेताओं का धन सफेद करने के लिए इन दोनों का इस्तेमाल किया जाना था. बाद में ये काम नहीं हो पाया.
काम न हो पाने की दो वजहों को अहम माना जा रहा है ….
1. आखिरी समय में इतनी बड़ी रकम की घोषणा करने के कारण इनका नाम आयकर अधिकारियों के सर्किल में तेज़ी से फैल गया था जिसके कारण खेल खराब होने का खतरा खड़ा हो गया.
2. जिन लोगों को इनसे अपना धन सफेद कराना था उनका डिमॉनिटाइजेशन से पहले की कहीं इंतज़ाम हो गया. इस योजना के तहत 30 सितंबर तक सरकार को 45 प्रतिशत टैक्स देकर अघोषित आय घोषित की जा सकती थी. इसके तहत अघोषित आय पर टैक्स चुकाने के बाद आय की स्वैच्छिक करने वाले पर आयकर विभाग की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं होनी थी. गुजरात के कारोबारी महेश शाह ने योजना के आखिरी दिन 13 हजार करोड़ रुपये अघोषित आय की जानकारी आयकर विभाग को दी थी. शाह को टैक्स की 975 करोड़ रुपये की पहली किश्त 30 नवंबर तक चुकानी थी.
फिलहाल महेश शाह को हिरासत मे ले लिया गया है. उससे पूछताछ भी हो रही है. महेश शाह खुद कह चुका है कि वो दूसरों के पैसे सफेद कर रहा था. लेकिन सवाल ये उठता है कि वो लोग कौन हैं. क्या वो बीजेपी के इतने अंदर के नेता हैं जो नोटबंदी की बात पहले से जानते थे या कोई और लोग. लेकिन सबकुछ बिना जांच के साफ नहीं हो सकता. जांच के बाद ही पता चलेगा असली खेल क्या है. जांच उस लेवल पर होनी चाहिए जिस लेवल पर कोई असर न डाल सके.