‘तैमूर’ सिर्फ एक नाम नहीं एक इतिहास है, जानिये कौन था तैमूर लंग और कैसे एक विकलांग बना विश्व विजेता

सैफ अली खान और करीना कपूर के बेटे का नाम तैमूर रखा गया तो एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया. सोशल मीडिया पर जैसे बवाल मच गया. यहां तक कि नाम के विवाद में नेता भी कूद पड़े.

लेकिन बहुत कम लोग तैमूर के बारे में ज्यादा जानकारी रखते हैं. तैमूर पर विवाद के तौर में ये जानना बेहद ज़रूरी है कि वो है कौन. तैमूर ऐसा योद्धा था जिसने 35 साल तक लगातार हर युद्ध जीता.

उस दौर में जब युद्ध ताकत से लड़े जाते थे बमों या तोपों से नहीं, तैमूर सबसे बड़ा विजेता बना. वो एक हादसे में विकलांग हो गया था और उसके शरीर का एक तरफ का हिस्सा ठीक से काम नही करता था. तैमूर के चरित्र में सीखने की हज़ारों बातें हैं.

वो ऐसा विजेता था जो अपने जीवन में कभी कोई युद्ध नहीं हारा. ये सही बात है कि तलवार से युद्ध लड़ने वाले दूसरे योद्धाओं की तरह वो अहिंसक बिल्कुल नहीं था, वो क्रूर था और इतिहास में एक खूनी योद्धा के तौर पर मशहूर हुआ. 14वीं शताब्दी में उसने युद्ध के मैदान में कई देशों को जीता.

कहते हैं कि तैमूरलंग को अपने दुश्मनों के सिर काटकर जमा करने का शौक था.

‘तैमूरलंग: इस्लाम की तलवार, विश्व विजेता’ के लेखक जस्टिन मारोज्जी के मुताबिक वह जमाना ऐसा था कि यु्द्ध बाहुबल से लड़ा जाता था, बम और बंदूकों के सहारे नहीं. ऐसे में तैमूरलंग की उपलब्धि किसी को भी अचरज में डाल सकती है.

अगर इतिहास के महान योद्धाओं और विजेताओं के बारे में सोचें तो चंगेज़ ख़ान और सिकंदर महान के नाम याद आते हैं. लेकिन अगर आप मध्य एशियाई और मुस्लिम देशों के बारे में थोड़ा बहुत भी जानते होंगे तो ये सूची तैमूरलंग के बिना पूरी नहीं होगी.

तैमूरलंग का जन्म समरकंद में 1336 में हुआ था. ये इलाका अब उजबेकिस्तान के नाम से मशहूर है. कई मायनों में तैमूरलंग सिकंदर महान और चंगेज़ ख़ान से कहीं ज्यादा चमकदार शख्सियत के मालिक थे.

मामूली चोर था तैमूरलंग

सिकंदर की तरह तैमूरलंग राजपरिवार में पैदा नहीं हुआ था, बल्कि उनका जन्म एक आम परिवार में हुआ था. तैमूरलंग एक मामूली चोर था, जो मध्य एशिया के मैदानों और पहाड़ियों से भेड़ों की चोरी किया करता थे.

चंगेज़ ख़ान की तरह तैमूरलंग के पास कोई सिपाही भी नहीं था. लेकिन उसने आम झगड़ालू लोगों की मदद से एक बेहतरीन सेना बना ली जो किसी अचरज से कम नहीं था.

जब तैमूरलंग 1402 में सुल्तान बायाजिद प्रथम के खिलाफ युद्ध मैदान में उतरा, तब उनके पास भारी भरकम सेना थी जिसमें अर्मेनिया से अफगानिस्तान और समरकंद से लेकर सर्बिया तक के सैनिक शामिल थे.

वह एक योद्धा था, जो एक किसान से एशिया के सिंहासन पर काबिज हुआ. उसकी विकलांगता ने उसके रवैये और हौसले को प्रभावित नहीं किया. उसने अपनी दुर्बलताओं पर भी विजय प्राप्त कर ली थी.

एडवर्ड गिब्बन, 18वीं सदी के इतिहासकार

तैमूरलंग अपने जीवन में इन मुश्किलों से पार पाने में कामयाब रहा लेकिन सबसे हैरानी वाली बात यह है कि वे विकलांग था. आपको भले यकीन नहीं हो लेकिन हकीकत यही है कि उनके शरीर का दायां हिस्सा पूरी तरह से दुरुस्त नहीं था.

हादसे में हुए विकलांग

जन्म के समय उनका नाम तैमूर रखा गया था. तैमूर का मतलब लोहा होता है. आगे चलकर लोग उन्हें फारसी में मजाक मजाक में तैमूर-ए-लंग (लंगड़ा तैमूर) कहने लगे.

इस मजाक की शुरुआत भी तब हुई जब युवावस्था में उनके शरीर का दाहिना हिस्सा बुरी तरह घायल हो गया था. इसके बाद यही नाम बिगड़ते बिगड़ते तैमूरलंग हो गया.

लेकिन तैमूरलंग के सफ़र में उनकी शारीरिक विकलांगता आड़े नहीं आई, जबकि वह जमाना ऐसा था जब राजनीतिक सत्ता हासिल करने के लिए शारीरिक सौष्ठव भी जरूरी था.

युवा तैमूरलंग के बारे में कहा जाता है कि वह महज एक हाथ से तलवार पकड़ सकते था. ऐसे में ये समझ से बाहर है कि तैमूरलंग ने खुद को हाथ से हाथ की लड़ाई और घुड़सवारी और तीरंदाज़ी के लायक कैसे बनाया होगा.

इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि तैमूरलंग बुरी तरह घायल होने के बाद विकलांग हो गया था. हालांकि इस बात पर अनिश्चितता जरूर है कि उनके साथ क्या हादसा हुआ था.

वैसे अनुमान यह है कि यह हादसा 1363 के करीब हुआ था. तब तैमूरलंग भाड़े के मजदूर के तौर पर खुर्शान में पड़ने वाले खानों में काम कर रहा था, दक्षिण पश्चिम अफगानिस्तान में स्थित इस हिस्से को आजकल मौत का रेगिस्तान कहा जाता है.

एक अन्य स्रोत- लगभग शत्रुता वाला भाव रखने वाले 15वीं शताब्दी के सीरियाई इतिहासकार इब्ने अरब शाह के मुताबिक एक भेड़ चराने वाले चरवाहा ने भेड़ चुराते हुए तैमूरलंग को अपने तीर से घायल कर दिया था. चरवाहे का एक तीर तैमूर के कंधे पर लगा था और दूसरा तीर कूल्हे पर.

सीरियाई इतिहासकार ने तिरस्कारपूर्ण अंदाज में लिखा है, “पूरी तरह से घायल होने से तैमूरलंग की गरीबी बढ़ गई. उसकी दुष्टता भी बढ़ी और रोष भी बढ़ता गया.”

स्पेनिश राजदूत क्लेविजो ने 1404 में समरकंद का दौरा किया था. उन्होंने लिखा है कि सिस्तान के घुड़सवारों का सामना करते हुए तैमूरलंग घायल हुआ था.

उनके मुताबिक, “दुश्मनों ने तैमूरलंग को घोड़े से गिरा दिया और उनके दाहिने पैर को जख्मी कर दिया, इसके चलते वह जीवन भर लंगड़ाते रहे, बाद में उनका दाहिना हाथ भी जख्मी हो गया. उन्होंने अपने हाथ की दो उंगलियां गंवाई थी.”

सोवियत पुरातत्वविदों का एक दल जिसका नेतृत्व मिखाइल गेरिसिमोव कर रहे थे, ने 1941 में समरकंद स्थित तैमूरलंग के खूबसूरत मक़बरे को खुदवाया था और पाया कि वो लंगड़ा था लेकिन 5 फुट 7 इंच का उनका शरीर कसा हुआ था.

उनका दाहिना पैर, जहां जांघ की हड्डी और घुटने मिलते हैं, वह जख्मी था. इसके चलते उसका दाहिना पैर बाएं पैर के मुकाबले छोटा था. यही वजह है कि उसका नाम ‘लंगड़ा’ तैमूर पड़ गया था.

विकलांगता नहीं बनी बाधा

चलते समय उन्हें अपने दाहिने पांव को घसीटना पड़ता था. इसके अलावा उनका बायां कंधा दाएं कंधे के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा ऊंचा था. उनके दाहिने हाथ और कोहनी भी बाद में ज़ख्मी हो गए.

पूरी तरह से घायल होने से तैमूरलंग की गरीबी बढ़ गई. उसकी दुष्टता भी बढ़ी और रोष भी बढ़ता गया.

इब्ने अरब शाह, 15वीं सदी के सीरियाई इतिहासकार

बावजूद इसके 14वीं शताब्दी के उनके दुश्मन जिनमें तुर्की, बगदाद और सीरिया के शासक शामिल थे, उनका मजाक उड़ाते थे लेकिन युद्ध में तैमूरलंग को हरा पाना मजाक उड़ाने जितना आसान कभी नहीं रहा.

तैमूरलंग के कट्टर आलोचक रहे अरबशाह ने भी माना है कि तैमूरलंग में ताकत और साहस कूट कूट कर भरा हुआ था और उन्हें देखकर दूसरों में भय और आदेश पालन का भाव मन में आता था.

कभी नहीं हारा तैमूरलंग

18वीं शताब्दी के इतिहासकार एडवर्ड गिब्बन ने भी तैमूरलंग की काफी प्रशंसा की है. गिब्बन के मुताबिक तैमूरलंग की सैन्य काबलियत को कभी स्वीकार नहीं किया गया.

गिब्बन ने लिखा है, “जिन देशों पर उन्होंने अपनी विजय पताका फहराई, वहां भी जाने अनजाने में तैमूरलंग के जन्म, उनके चरित्र, व्यक्तित्व और यहां तक कि उनके नाम तैमूरलंग के बारे में भी झूठी कहानियां प्रचारित हुईं.”

गिब्बन ने आगे लिखा है, “ लेकिन वास्तविकता में वह एक योद्धा था, जो एक किसान से एशिया के सिंहासन पर काबिज हुआ. विकलांगता ने उनके रवैये और हौसले को प्रभावित नहीं किया. उन्होंने अपनी दुर्बलताओं पर भी विजय प्राप्त कर ली थी.”

जब तैमूरलंग का 1405 में निधन हुआ था, तब चीन के राजा मिंग के ख़िलाफ युद्ध के लिए वे रास्ते में थे. तब तक वे 35 साल तक युद्ध के मैदान में लगातार जीत हासिल करते रहे.

अपनी शारीरिक दुर्बलताओं से पार पा कर विश्व विजेता बनने का ऐसा दूसरा उदाहरण नजर नहीं आता. courtsay ,inputs from bbc.com