नोट के साथ कहीं मोदी भी न डूब जाएं. जब-जब ऐसे कदम उठाए गए देश भी डूबे और नेता भी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सप्ताह अचानक 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट को चलन से बाहर कर दिया. ब्लैक मनी पर शिकंजा कसने का दावा करते हुए उठाए गए कदम के बाद से देशभर में बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी कतारें लगी हैं. लोग परेशान हैं और कई लोगों की इसके चलते मौत भी हो चुकी है. एटीएम के बाहर तनाव है और चेतावनी दी गई है कि इसके कारण समाज में तनाव भी बढ़ सकता है. मोदी सरकार का ये कदम आत्मघाती भी हो सकता है. दुनिया का इतिहास गवाह है कि जब जब करंसी से छेड़छाड़ की तब-तब सरकार को मुंह की खानी पड़ी . देश के देश तबाह हो गए. 1971 में ब्रिटिश पाउंड्स का दशमिकीकरण और 2002 में यूरो कैश सिर्फ दो ऐसे उदाहरण हैं जिनमें बिना तकलीफ के नोटबंदी हो गई, लेकिन कई देशों में यह प्रयास सफल नहीं रहा. नीचे देखिए उदाहरण…

सोवियत संघ

मोदी की तरह ब्लैक मनी पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से मिखाइल गोर्वाचेव ने जनवरी 1991 में 100 और 50 रूबल नोट को बंद कर दिया. यह रिफॉर्म महंगाई को रोकने में असफल रहा. सरकार ने अधिकांश लोगों के बीच विश्वास खो दिया. राजनीति के साथ इकॉनमी की चुनौतियों को मिखाइल संभाल नहीं सके. आने वाले समय में सोवियत रूस का विघटन हो गया.

नॉर्थ कोरिया

2010 में तत्कालीन तानाशाह किम जोंग-II ने कालाबाजारी को खत्म करने और इकनॉमी पर नियंत्रण बढ़ाने के लिए पुराने करंसी के फेस वैल्यू से दो जीरो कम कर दिए, लेकिन यह फैसला देश पर भारी पड़ा. देश में अन्न की भारी कमी हो गई. कीमतों में वृद्धि की वजह से देश में अव्यवस्था फैल गई.

जायर

तानाशाह मोबूटू सीसी सीको ने 1990 के दौर में बैंक नोट रिफॉर्म की कोशिश की, लेकिन उन्हें भी इकॉनमी में कई बाधाओं का सामना करना पड़ा. महंगाई बहुत तेजी से बढ़ी और डॉलर के मुकाबले एक्सचेंज रेट ध्वस्त हो गया. 1997 में गृहयुद्ध के बाद सीसी सीको को हटना पड़ा.

म्यांमार

1987 में म्यामांर की सैन्य सरकार ने सर्कुलेशन में मौजूद करीब 80 फीसदी करंसी को अमान्य करार दे दिया. यह ब्लैक मनी को नियंत्रित करने के लिए किया गया था. इसके बाद देश में पहले छात्र सड़कों पर उतरे और फिर देश में सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए. इन्हें नियंत्रित करने के लिए सरकारी दमन में हजारों लोग मारे गए.

घाना

1982 में इस देश ने भ्रष्टाचार और टैक्स चोरी को रोकने के लिए 50 सेडी से छुटकारा पा लिया, लेकिन इससे लोगों का विश्वास बैंकिंग सिस्टम से उठ गया. लोग इसे विदेशी मुद्रा या फिर भौतिक संपत्ति में बदलने लगे. करंसी की कालाबाजारी बढ़ गई. गांवों में रहने वाले लोगों को बैंक तक पहुंचने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ा. डेडलाइन बीतने के बाद बड़ी संख्या में नोट बर्बाद हो गए.

नाइजीरिया

1984 में मुहम्मादू बुहारी की नेतृत्व वाली सरकार ने भ्रष्टाचार निरोधी प्रयासों के तहत नए नोट जारी किए. निर्धारित समय के भीतर पुराने नोटों को बदलने के लिए कहा गया, लेकिन महंगाई नियंत्रण से बाहर हो गई. बुहारी सत्ता से बाहर हो गए थे.