आप Latest Lohri Greetings दे रहे हैं, पर इसका पूरा सच तो जान लें

नई दिल्ली :  आपको लोहड़ी मुबारक आज हम आपको बताएंगे कि लोहड़ी का भगवान शिव से क्या कनेक्शन है और इसके पीछे क्या क्या कहानियां हैं लेकिन पहले ये लोहड़ी के गीत जान लें.

पहला गीत- ‘सुंदर मुंदरिये होय, तेरा कौन बेचारा होय. दुल्ला भट्टी वाला होय, दुल्ले धी बिआई होय. सेर शक्कर पाई होय, कुड़ी दे बोझे पाई होय, कुड़ी दा लाल हताका होय. कुड़ी दा सालु पाटा होय, सालू कौन समेटे होय.’

दूसरा गीत- ‘देह माई लोहड़ी, जीवे तेरी जोड़ी, तेरे कोठे ऊपर मोर, रब्ब पुत्तर देवे होर, साल नूं फेर आवां.

शिव और सती की कहानी से प्रेरित है

ऐसी भी मान्‍यता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि में दहन की याद में ही लोहड़ी की अग्नि जलाई जाती है. इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को मां  के घर से इस त्योहार पर वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फल आदि भेजा जाता है. ऐसा यज्ञ के समय अपने जामाता शिव का भाग न निकालने का दक्ष प्रजापति के प्रायश्चित्त के रूप में किया जाता है.

इसके अलावा लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की एक कहानी से भी जोड़ा जाता हैं. दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था. उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था. उस समय लड़कियों को गुलामी के लिए बल पूर्वक अमीर लोगों को बेच जाता था. दुल्ला ने एक योजना के तहत लड़कियों को मुक्त करवाया और उनकी शादी भी हिन्दू लडको से करनवाने की सभी व्यवस्था भी करवाई.

कब मनाते हैं 

लोहड़ी का पर्व मकर संक्रान्ति की पूर्वसंध्या पर मनाया जाता है. इस अवसर पर रात में खुले स्थान में परिवार और आस पड़ोस के लोगों के साथ मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर पूजा की जाती है. लोहड़ी पौष के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद माघ संक्रांति से पहली रात को होती है. लोहड़ी मुख्यत: पंजाब का पर्व है.

ऐसा लगता है कि इसके प्रत्‍येक शब्द को लोहड़ी की पूजा के समय प्रयोग होने वाली वस्तुओं से लिया गया है, जैसे ल लकड़ी से ओह गोहा मतलब सूखे उपले और ड़ी रेवड़ी से लेकर बन गया लोहड़ी. ऐसा माना जाता है कि श्वतुर्यज्ञ का अनुष्ठान मकर संक्रांति पर होता था, संभवत: लोहड़ी उसी का अवशेष है. पूस-माघ की कड़कड़ाती सर्दी से बचने के लिए आग सहायक होती है और यही व्यावहारिक आवश्यकता ‘लोहड़ी’ को मौसमी पर्व का स्थान देती है.

ऐसे होती है पूजा

इस दिन पूजा करने के लिए लकड़ियों के नीचे गोबर से बनी लोहड़ी की प्रतिमा रखी जाती है. जिसमें गटनि प्रज्‍जवलित करके भरपूर फसल और समृद्धि के लिए उसकी पूजा होती है. इस आग की सभी परिक्रमा करते हैं जिसके दौरान लोग तिल, मक्‍का और गेहूं जैसे अनाज डालते हैं. लोहड़ी पर पूजा के बाद गजक, गुड़, मूंगफली, फुलियां, पॉपकॉर्न का प्रसाद चढ़ाया जाता हैं, फिर इस समय रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाए भी जाते हैं. इस दिन मक्की की रोटी और सरसों का साग, गन्ने के रस और चावल से बनी खीर बनाने की और पतंग उड़ाने की भी परम्परा है.