टैक्स बढ़ने पर जश्न कैसा, जीएसटी पर पत्रकार गिरिजेश का कड़वा लेख

कुछ लोग लगातार अरुण जेटली के उस तर्क को अलग अलग तरीके से बढ़ा रहे हैं कि जैसे नोट बंदी के बाद सबकुछ ठीक हो गया वैसे ही जीएसटी के बाद भी हो जाएगा. साथ में ये भी पूछना नहीं भूलते कि नोटबंदी से कोई तबाही आई क्या? इन मित्रों को ये समझना जरूरी है कि नोटबंदी के बाद सबकुछ सामान्य इसलिए हुआ कि नोटबंदी करने के बाद सरकार ने अपनी नीति उलट दी. कैश लैस से वापस कैश आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना शुरू कर दिया. डरी हुुई सरकार ने तेज़ी से बाज़ार में कैश ठूंसा. लोगों को कैशलेस लेनदेन करने के लिए हतोत्साहित किया. बैंकों पेटीएम और ऑनलाइन लेनदेन पर अनाप-शनाप शुल्क लगाए गए ताकि लोग कैश का ही इस्तेमाल करें.

व्यापारियों के लिए कार्ड पेमेन्ट लेना मुश्किल और महंगा बना दिया गया. नोटबंदी से होने वाली तबाही इस यू टर्न से ही कम हुई है. जहां तक सवाल जीएसटी का है इससे कोई तबाही नहीं होगी. ये हो सकता है कि सरकार के पास लगान ज्यादा आने लगे. लेकिन अर्थव्यवस्था डिमांड सप्लाई से चलती है. कीमत ज्यादा होगी तो खरीदारी कम होगी. टैक्स ज्यादा होगा तो लोग टैक्स का तोड़ निकालेंगे. हो सकता है शुरुआत में टैक्स थोड़ा बढ़ जाए लेकिन कुछ साल बाद सरकार को टैक्स रेट कम करने पड़ेंगे. लेकिन व्यापारी चोरी सीख चुका होगा इससे कुछ भी हाथ नहीं लगेगा. बेहतर होता कि टैक्स रेट कम रखा जाता.

एक और तर्क बार बार पेश किया जा रहा है कहा जा रहा है कि इससे करदाताओं की संख्या बढ़ेगी. ये सबसे बड़ा झूठ है. अप्रत्यक्ष कर उपभोक्ताओं पर लगता है . वो इच्छा से हो या अनिच्छा से देना ही पड़ता है. उपभोक्ता किसी टैक्स के लगाने से बढे़ंगे नहीं. साबुन खऱीदने वाला आज भी खरीदेगा. पेस्ट खरीदने वाला आज भी खरीदेगा. कोई एक ऐसा आदमी ढूढ के ला दे जो अबतक सेल्स टेैक्स या वैट नहीं देता था अब देने लगेगा. सिर्फ उस पहले से कर दे रहे शख्स के ऊपर बोझ बढ़ा दिया गया है. ज्यादा लोगों को टैक्स की जद में लाने में नाकाम होने के बाद इस सरकार ने जो पहले से टैक्स दे रहे थे उन पर बोझ बढ़ा दिया. आयकर की चोरी करने वाले अब भी आज़ाद रहेंगे. अब भी ईमानदार करदाता पिसेगा.

कुल मिलाकर सारी बातें बकवास हैं. सरकार ज्यादा से ज्यादा पैसे खींच लेना चाहती है ताकि नये नये प्रोजेक्ट शुरू हों. नयी नहीं डील हों. नयी नयी खरीदारी हैं. हथियारों की खरीद हो और इस सब में मोटा कमीशन खींचा जा सके. अमीर इसलिए खुश हैं क्योंकि उन्हें ही ये ठेके और सप्लाई के ऑर्डर मिलेंगे. हम लगातार देख रहे हैं कि किस तरह सरकार जनता का दोहन करने में लगी है. रेलवे के किराए अंधाधुंध बढ़ा दिए .टिकट कैंसेलेशन से ही अरबों की कमाई की गई. हाईवे पर हर 50 किलोमीटर पर वैध वसूली टोल के रूप में हो रही है. अब इस वसूली को भी 5 रुपये किलोमीटर की दर से किया जाने वाला है. पेट्रोल पर सरकार ने 4 बार एक्साइज बढाई उसे जीएसटी में भी नहीं रखा.

एक बात याद रखें. सरकार की कोई पार्टी नहीं होती. सरकार का कोई धर्म नहीं होता. सरकार की कोई जात नहीं होती. सरकार का एक ही चरित्र होता है और वो होता है अवशोषण. सोख लेना उसका गुणधर्म है. सरकार जनता का शिकार करती है और उसके आसपास के तबाकी जैसे सियार मांस में हिस्सा लेते हैं. जनता शिकार होती है. ये दुनिया में हर जगह लागू होता है और हर काल में लागू रहा है. लोगों का काम है लोकतंत्र से मिली ताकत का इस्तेमाल करके शोर करें. ताकि शेर शिकार करने में थोड़ा संयम बरते. जो लोग सरकार के सुर में सुर मिलाते हैं वो अक्सर उसके इस चरित्र को भूल जाते हैं. सरकार की तारीफ करने के लिए उसका अपना नेटवर्क है. जनता से वसूले हुए पैसे से वो जनता के खिलाफ ही प्रचार करती है. तबाकी शिकारों को ढूंढ ढूंढ कर लाता है. मूर्ख बनकर सरकार का पिछलग्गू बनना ठीक नहीं. सरकार वो सितार है जिसके कान उमेठते रहो तो सही सुर निकालता है. ध्यान न दो तो गुर्राने लगता है. इसे होश में रखना चाहिए.