बड़ी-बड़ी बातें करने वाले योगी के सिर पर है हज़ारों मौतों का कर्ज, गोरखपुर को दे पाएंगे जवाब?

नई दिल्ली: योगी आदित्यनाथ ने सीएम के तौर पर किसी भी फिल्मी हीरो से ज्यादा धमाकेदार एंट्री की है. वो कभी थूकने वालों को सबक सिखा रहे हैं तो कभी मीट की दुकानों पर ताले जड़वाने की जुगत में लग जाते हैं. लेकिन यूपी के इस एक्शन हीरो के सामने सबसे बड़ी चुनौती है एनसेफेलाइटिस नाम की बीमारी की गोरखपुर के लोग कहते हैं कि चालीस साल से ये बीमारी इस इलाके में आती है और करीब सौ से ज्यादा बच्चों की जान ले लेती है. आजतक योगी ने ऐसा कुछ नहीं किया कि ये बीमारी दूर हो जाती जबकि वो गोरखपुर के सांसद थे. योगी की पार्टी के स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने हालांकि इससे निपटने के लिए इरादे जताए थे तो मोदी ने उन्हें हटा दिया.

इस बीमारी में बच्चों के हाथ-पैर ऐंठने लगते हैं और आखिर उनकी दर्दनाक मौत हो जाती हैनौ साल का सनी भी उसी एंसेफ़ेलाइटिस नामक बीमारी का शिकार हो गया था जिसने क़रीब चार दशक से इस इलाक़े में क़हर ढा रखा है. पूर्वांचल के कई ज़िलों में मई जून से लेकर अक्टूबर नवंबर तक इस बीमारी का प्रकोप रहता है और हर साल सैकड़ों बच्चों की इससे मौत हो जाती है या फिर इसकी चपेट में आकर तमाम बच्चे विकलांग हो जाते हैं.

डॉक्टरों का कहना है कि  “अकेले गोरखपुर ज़िले में हर साल पांच -छह सौ बच्चों की मौत होती है आंकड़े भई सिर्फ़ सरकारी मेडिकल कॉलेज के अस्पताल के हैं. यदि प्रभावित 10-12 ज़िलों को मिला दिया जाए तो कम से कम पांच हज़ार बच्चे हर साल इस बीमारी से मरते हैं.”

पूर्वांचल में महामारी का रूप ले चुकी ये बीमारी गोरखपुर, महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, कुशीनगर, देवरिया, मऊ समेत क़रीब दर्जन भर ज़िलों में हर साल सैकड़ों बच्चों को निगल जाती है.

बीमारी बेहद खतरनाक है और करीब तीस फीसदी बच्चे इसका शिकार हो जाते हैं. यानी सौ में से तीस लोगों को ये बीमारी मौत दे जाती है. बीमारी ज़्यादातर बच्चों को प्रभावित करती है और इस बीमारी में मौत से बच गए बच्चे आजीवन विकलांगता तक के शिकार हो जाते हैं.

बुखार के रूप में शुरू होने वाली इस बीमारी के वायरस का मुख्य कारण मच्छरों को माना जाता है और डॉक्टरों के मुताबिक अब तक इसका कारगर इलाज संभव नहीं हो पाया है, सिर्फ़ बचाव और रोकथाम ही एकमात्र रास्ता है. सचिवालय में थूकने से रोकने से तो गंदगी दूर होने से रही. अगर युद्धस्तर पर इस इलाके में फॉगिग और सफाई अभियान चलाया जाए तो आसानी से बच्चों को बचाया जा सकता हैलेकिन योगी और उनके चेलों ने इसके लिए कभी कुछ नहीं किया.

हैदरगंज के लोग कहते हैं कि पिछले दस साल से यहां पर किसी भी दवा का छिड़काव नहीं किया गया. न तो नालियों, सड़कों की कोई सफ़ाई होती है और न ही मच्छरों की रोकथाम के लिए कुछ किया जाता है. गांव वालों के मुताबिक जितना संभव होता है, लोग ख़ुद ही अपने-अपने घरों में सफ़ाई की व्यवस्था रखते हैं

गांव में जागरूकता के तमाम संदेश भी पढ़ने को मिलते हैं. साफ़-सफ़ाई के लिए ये संदेश सरकारी विभागों की ओर से जारी किए जाते हैं. लोगों से ख़ुद सफ़ाई रखने की अपील की जाती है और सरकारी स्तर पर दवाइयां छिड़काई जाती हैं. लेकिन साफ़ सफ़ाई की स्थिति पूरे इलाक़े में काफी दयनीय है.

गांव वालों का कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर स्वच्छता अभियान चलने के दावों के बावजूद क़रीब चार हज़ार की उनकी आबादी में एक भी शौचालय सरकारी स्तर पर नहीं बना है.

कुछ लोगों ने ख़ुद ही बनवाए हैं और बाक़ी खुले में शौच जाते हैं. यही नहीं, बच्चों के बीमार होने पर भी लोग इधर उधर भटकते हैं जबकि गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में इस बीमारी के लिए ख़ासतौर पर व्यवस्था रहती है.

उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद अब यहां के लोगों की उम्मीद और भी बढ़ गई है कि शायद इसके ख़ात्मे के लिए कोई नई और गंभीर पहल हो.

एक स्थानीय महिला का कहना है- , “भाषण में तो योगी जी बहुत कुछ वादा कर गए थे लेकिन इस बीमारी के लिए अगर कुछ कर देते हैं तो हम लोग बहुत एहसानमंद होंगे.”