जानिए क्या है वीवीपैट में खास और इसमें क्या है मोदी सरकार का अड़ंगा

नई दिल्ली: ज़रा सोचिए अगर वोटर वेरीफ़ाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल यानी वीवीपैट (VVPAT) मशीन नहीं होती तो आज भिंड में इतनी बड़ी गड़बड़ी का पता ही नहीं चल पाता. सोचिए आज की तरह की कितनी ही मशीनें अबतक चुनाव में इस्तेमाल हुई होंगी लेकिन किसी को पकड़ने का कोई इंतजाम अबतक था ही नहीं.

आज जब ये खबर सामने आ रही थी तो इस बात की तस्दीक हो रही थी की लाल कृष्ण आडवाणी ने सुप्रीम कोर्ट जाकर वाकई लोकतंत्र के लिए ठोस आवाज उठाई थी लेकिन आडवाणी के उत्तराधिकारी इस मशीन की राह में अड़ंगे क्यों अड़ा रहे हैं. जी हां सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद मोदी सरकार वीवीपैट में अड़ंगे लगा रही है और ये आरोप किसी और का नहीं खुद चुनाव आयोग का है. सबसे पहले आपको बताते हैं वीवीपैट मशीन क्या है.

इस मशीन के तहत वोटर डालने के तुरंत बाद काग़ज़ की एक पर्ची बनती है. इस पर जिस उम्मीदवार को वोट दिया गया है, उनका नाम और चुनाव चिह्न छपा होता है. सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था इसलिए बनाई  कि तरह का विवाद होने पर ईवीएम में पड़े वोट के साथ पर्ची का मिलान करके पता किया जा सके कि कहीं गड़बड़ी तो नहीं. ईवीएम में लगे शीशे के एक स्क्रीन पर यह पर्ची सात सेकंड तक दिखती है. भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड ने यह मशीन 2013 में डिज़ायन की.

चुनाव आयोग ने वीवीपैट मशीन को लेकर बेहद सख्त नियम भी बनाए हैं. आयोग का नियम है कि गलत दावा तो छह महीने की जेल और जुर्मानासलीना सिंह ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति यह दावा करता है कि उसने जिसे वोट किया है, पर्ची उस उम्मीदवार के चुनाव चिह्न की नहीं निकली है तो उसे एक घोषणा पत्र भरकर देना होगा।

इसके बाद इसकी जांच की जाएगी और यदि दावा गलत पाया जाता है तो मतदाता को छह महीने की जेल या एक हजार रुपए जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है।

सबसे पहले इसका इस्तेमाल नागालैंड के चुनाव में 2013 में हुआ. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट मशीन बनाने और इसके लिए पैसे मुहैया कराने के आदेश केंद्र सरकार को दिए.

चुनाव आयोग ने जून 2014 में तय किया किया अगले चुनाव यानी साल 2019 के चुनाव में सभी मतदान केंद्रों पर वीवीपैट का इस्तेमाल किया जाएगा.

मोदी कैसे लगा रहे हैं अड़ंगा ?

चुनाव आयोग ने चिट्ठी लिख कर वीवीपैट के लिए केंद्र सरकार से 3174 करोड़ रुपए मांगे. लेकिन मोदी सरकार सिर्फ 3174 करोड़ रुपये की रकम देने में भी आनाकानी कर रही है. ये वही मोदी सरकार है जिस पर 10 लाख करोड़ रुपये का नुकसान जीएसटी बिल लटकाने के कारण करने का आरोप लग रहा है. इस सरकार पर उद्योगपतियों को भई लाखों करोड़ रुपये का कर्ज माफ करने का आरोप है. सवाल ये हैं कि वीवीपैट के लिए मोदी सरकार पैसे क्यों नहीं देना चाहती?  इसे केंद्र सरकार से ज़रूरी पैसे अब तक नहीं मिले हैं.