ये तस्वीर रायटर्स ने जारी की हैं. इनमें दावा किया जा रहा है कि ये उस मदरसे की या कहें कि जैश के टेररिस्ट ट्रेनिंग कैंप की हैं जो भारत ने बम धमाके में उड़ा दिया. आज ये तस्वीरें इसलिए और आ रही हैं क्योंकि रायटर्स अपनी उस खबर को पूख्ता तरीके से सच साबित करना चाहता है जिसमें कहा गया था कि वहां कोई नहीं मरा कुछ पेड़ गिरे हैं. मज़ाक में कहा गया कि वहां सिर्फ एक कौआ मरा था.
भारत की तरफ से एक अच्छा खासा एयरस्ट्राइक हुआ. घुसकर बम गिराए ये ही साहस का काम था. दूसरे देश में घुसकर बम बरसाना कोई छोटी बात थोड़े ही है. अगर स्ट्राइक न होता तो पाकिस्तान क्यों यहां आता. कौए के लिए तो आता नहीं. (हालांकि इसका दुष्प्रभाव ये हुआ कि एक दूसरे के घर में घुसने का रिवाज शुरू हो गया, भारत भी हमारे यहां विमान लेकर घुस गया) फिर भी इस बहादुरी की तारीफ हुई. एयरफोर्स को सभी ने बधाइयां दीं. काम भी मामूली नहीं था दुश्मन के इलाके में घुसकर बम गिराया गया था
लेकिन राजनीतिक कारोबारियों को चैन नहीं पड़ा. इसके बाद कुछ लोग शुरू हो गए. आर्मी के कपड़े पहनने लगे और अटैक को लेकर कुछ बेहद स्पेशिफिक जानकारियां चुनाव के बाज़ार में बेचनी शुरू कर दी गईं मसलन कौन कौन मारा गया , कितने लोग मारे गए. जागरूक लोगों ने पूछ कि ये जानकारी कहां से मिली. कहां से पता चला कि 250 थे या तीन सौ. इतना होते ही सोशल मीडिया सेल टूट पड़ी. कहा जाने लगा कि सबूत मांग रहे हो. सुरक्षा बलों पर सवाल उठा रहे हो. अब तक मार्केट में ये झूठ इतना गहरे दोहरा दिया है कि ज्यादातर लोग मानने लगे हैं कि कोई सबूत तो मांग ही रहा है. सबूत मांगने वालों की निंदा आलोचना होने लगी. लेकिन सबूत मांगने की तो बात नहीं हुई लेकिन सबूत देने का सिलसिला शुरू हो गया. रायटर्स ने ये सेटेलाइट इमेज इसी कड़ी का हिस्सा है.
दर असल ऐसे माहौल में सरकार का फर्ज बनता था कि बताती की सही जानकारी क्या है. लेकिन जानकारी देने के बजाय विपक्ष पर हमले का इसे हथियार बनाकर फिर राजनीति शुरू हुई.
यहां जानकारियां मानना गुनाह के तौर पर पेश किया जा रहा था और उधर दुश्मन मौके पर ले जाकर इंटरनेशनल मीडिया को वो जगह दिखा रहा था. जहां बम गिरा था. बीबीसी और रायटर्स जैसी संस्थाओं ने रिपोर्ट किया कि वहां कोई नहीं मरा. इससे विवाद और बढ़ा. सरकार का बयान और ज्यादा ज़रूरी था.
इस बीच वायुसेना प्रमुख बीएस धनौवा ने साफ किया था कि उन्हें नहीं पता वहां कितने लोग थे और कितने मरे. उन्होंने कहा कि जहां बम गिराने को कहा गया था एयरफोर्स ने वहां बम गिरा दिया. जाहिर बात है स्ट्राइक निशाने पर की गई. इससे ये संदेश गया कि एयरफोर्स ने सही ऑपरेशन किया. जहां कहा गया हमने बम गिरा दिया. इसके बाद सवाल उठा कि अगर बम निशाने पर गिरा तो फिर क्या टारगेट गलत था. अफरातफरी में एक संस्था को आगे किया गया. उसका नाम ले दिया गया कि उसने टारगेट बताया था. संस्था का नाम था एनटीआरओ.
इस विवाद के बीच एक बेहद चुपचाप काम करने वाले या कहें कि सीक्रेट संगठन को सामने उतार दिया गया था. एनटीआरओ सीधे अजित डोभाल को रिपोर्ट करता है और रॉ और आईबी की तरह ही करीब करीब भूमिगत संगठन है. 2004 में शुरू हुआ एनटीआरओ तब से आजतक कभी खबर में नहीं आया था. लेकिन सरकार के नज़दीकी लोगों ने एनटीआरओ के हवाले से कहा कि उसने तीन सौ मोबाइल फोन एक जगह होने की खबर मिली थी और उसी ने बताया कि वहां तीन सौ लोग थे. यहां बता दें कि बालाकोट में 2 लाख 73 हज़ार आबादी है.
इस तस्वीर के सामने आने के बाद फिर से बहस होना लाजमी है. अब सवाल पूछा जा रहा है कि एयरफोर्स को गलत पता क्यों दिया? एयर फोर्स को जंगल और पेड़ ( अगर रिपोर्ट्स सही हैं) में 300 मोबाइल होने की गलत खबर कैसे दी गई. क्या अजित डोभाल का संस्थान चूक कर गया या इसके पीछे कोई शरारत थी.
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