एक VVIP पेड़ जिसके अर्दली भी हैं और सुरक्षा घेरा भी, जिस पर होते हैं लाखों खर्च

भोपाल :  मध्यप्रदेश सरकार एक पीपल पेड़ के रखरखाव में हर साल लगभग 12-15 लाख रुपये खर्च करती है . इसी राज्य में मामूल से कर्ज के लिए 51 किसान खुदकुशी कर चुके हैं. एनडीटीवी की खबर के मुताबिक

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल और विदिशा के बीच सलामतपुर की पहाड़ी पर ये पेड़ लगा है. महिलाओं के प्रति अपराधों के लिए बदनाम एमपी में जहां सुरक्षा व्यवस्था नहीं है वहां इस पेड़ की निगरानी में 24 घंटे चार गार्ड रहते हैं. इस अकेले पेड़ के लिए खास तौर पर पानी के टैंकर का इंतजाम है.

सौ एकड़ की पहाड़ी पर लोहे की लगभग 15 फीट ऊंची जाली के अंदर इस पेड़ को सुरक्षित रखा गया है. इसकी सुरक्षा-देखभाल के लिए चार होमगार्डों की तैनाती रहती है.

गार्ड कहते हैं कि ” सिंचाई के लिए यहां सांची नगरपालिका ने अलग से पानी के टैंकर का इंतजाम किया है. पेड़ को बीमारी से बचाने के लिए कृषि विभाग के अधिकारी हर हफ्ते दौरा करते हैं. इस पेड़ का एक पत्ता भी सूखे तो प्रशासन चौकन्ना हो जाता है. पेड़ तक पहुंचने के लिए भोपाल-विदिशा हाईवे से पहाड़ी तक पक्की सड़क भी बनाई गई है. इस पूरी देखरेख की ज़िम्मेदारी सीधे कलेक्टर को दी गई है.

इलाके के एसडीएम वरुण अवस्थी ने कहा सुरक्षा के लिए 1-4 गार्ड लगाए हैं. पानी की कमी न हो इसका ध्यान रखा जाता है. इस पूरी पहाड़ी को बौद्ध विश्वविद्यालय के लिए आवंटित किया गया है. पूरा क्षेत्र बौद्धिस्ट सर्किट के तौर पर विकसित किया जा रहा है.

पेड़ पर ध्यान देने के पीछे भी धर्म की राजनीति है. 21 सितंबर, 2012 को श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे ने इस बोधि वृक्ष को रोपा था. कहा जा रहा है कि गौतम बुद्ध ने बोधगया में इसी पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था. सम्राट अशोक इसी पेड़ की शाखा श्रीलंका ले गए थे. उसे अनुराधापुरम में लगाया था, उसी पेड़ की कलम को सांची बौद्ध विश्वविद्यालय की जमीन पर लगाया गया. पेड़ का भले ही पूरा खयाल रखा जाता है लेकिन  विश्वविद्यालय के नाम पर बोधि वृक्ष को रोपा गया, पांच साल बाद उसकी बाउंड्री तक टूट गई है. यूनिवर्सिटी को लगभग 20 लाख का किराया देकर निजी भवन में चलाया जा रहा है.

जब जीएसटी आया तो एक सवाल पूछा गया. सवाल था कि क्या गारंटी है कि इस पैसे का इस्तेमाल सरकार जनता के कामों में ही करेगी  ?  तब तो जवाब न में था. लेकिन अब इस पेड़ को आप उदाहरण मान सकते हैं. जीएसटी नाम की लूट है लूट सके तो लूट.