आंखों में आंसू और गुस्सा ला रहा है ये फेसबुक पोस्ट, सुपर वायरल

नई दिल्ली : जाने माने पत्रकार गिरिजेश वशिष्ठ का ये फेसबुक पेज रोंगटे खड़े कर देने वाला है वायरल हो रहा है…

पोस्ट तस्वीर में दिख रही इस औरत की माली हालत देखकर आपका मन करेगा कि उसके लिए कुछ करें. आप हो सकता है उसे एक घर देना चाहें. हो सकता है आप उसके लिए भोजन का इंतज़ाम करना चाहें हो सकता है आप उसके एक बच्चे को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी ले लें. कुछ नहीं तो आप एक ठीक ठाक सा काम ही दे देना चाहेंगे.

झारखंड के सिमडेगा कीइस औरत के एक बच्चे की मौत हो चुकी है. वो मां से भात मांगता रहा. भूख से तड़पता रहा आखिर दम तोड़ दिया. मां के पास दो वक्त के खाने का इंतज़ाम नहीं था. दिल्ली की सरकार की ज़िद थी कि जिसके पास आधार कार्ड न हो उसका राशन पानी बंद कर दो. दुकान वाले ने कर दिया. लेकिन भूख किसी कार्ड को नहीं जानती. वो जान ले लेती है. इस गरीब की बेटी की भी जान ले ली.

गरीब औरत पर कोई कितना रहम करता. कब तक मांगने पर खाना देता रहता. गांव समाज दुत्कार देता. लेकिन जिसपर उसका हक था उसने उसका खाना छीन लिया. गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाली इस औरत को क्या पता कि आधार कार्ड क्या होता है. उसे क्या पता कि देश के सदर की ज़िद का नाम आधार कार्ड है. सरकार की उस अदा का उसे अंदाज़ा ही नहीं था जिसमें वो सब्सिडी का पैसा बचाने के लिए जबरदस्ती कर रही है और उस पैसे से कॉर्पोरेट के टैक्स में कटौती कर सकते.

उसे न तो दिल्ली पता था न देश की राजनीति. उसे ये भी नहीं पता था कि सुप्रीम कोर्ट ने आधार को मूलभूत सुविधाओं से लिंक करने पर रोक लगाई है. पता होता तो वो शायद राशन वाले से पूछती कि भाई मुझे भात क्यों नहीं दे रहे . सुप्रीम कोर्ट का आदेश नहीं पता क्या ? शायद वो ऐसा करने से अपनी बच्ची की जान बचा पाती. उसके लिए गरीबी की रेखा के नीचे रहने वालों को मिलने वाला राशन मिल पाता.

जो भी हो इस औरत की मौत दिल्ली की क्रूर सरकार के माथे पर लिखी है. आखिर सुप्रीम कोर्ट की रोक थी तो राशन वाले ने किस हक से आधार कार्ड के बगैर राशन देने से मना कर दिया.

जिसके मन में राजनीतिक प्रतिबद्धता और और भक्ति भरी हुई है वो इस पर फिर अपनी असंवेदनशीलता दिखाने लगेंगे. वो ये लाइन पढ़े

संतोषी की मां कोयली देवी ने बताया कि 28 सितंबर की दोपहर संतोषी ने पेट दर्द होने की शिकायत की. गांव के वैद्य ने कहा कि इसको भूख लगी है. खाना खिला दो, ठीक हो जाएगी. मेरे घर में चावल का एक दाना नहीं था.इधर संतोषी भी भात-भात कहकर रोने लगी थी. उसका हाथ-पैर अकड़ने लगा. शाम हुई तो मैंने घर में रखी चायपत्ती और नमक मिलाकर चाय बनायी. संतोषी को पिलाने की कोशिश की. लेकिन, वह भूख से छटपटा रही थी. देखते ही देखते उसने दम तोड़ दिया.

भूख से मरने वाली संतोषी की आर्थिक स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्कूल के मिड-डे मील से उसके दोपहर के खाने का इंतजाम होता था. मगर दुर्गा पूजा की छुट्टियां होने की वजह से स्कूल बंद था और इस वजह से उसे कई दिन भूखा रहना पड़ा. जिसकी वजह से उसकी जान चली गई.

अगर इस पर भी आपको गुसा नहीं आता तो आप एक बार अपने सबसे प्यारे बच्चे का चेहरा दिमाग में लाएं और फिर सोचें. क्या सरकार हत्यारी नहीं है?