मोदी राज में तेज़ी से बढ़ा है करप्शन, ट्रांसपेरेन्सी इंटरनेशनल की रिपोर्ट

नई दिल्ली: न खाऊंगा न खाने दूंगा वाली सरकार है. करप्शन का वही हाल है जो गरीबी हटाओ के नारे देने वाली सरकार के राज में गरीबों का था. दुनिया के भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के मुताबिक भारत करप्शन लगातार बढ़ रहा है.

 

नोटबंदी से करप्शन खत्म करने के दावे के बीच. 2015 में करप्शन 76वे स्थान पर था और अब 81वें नंबर पर पहुंच गया है. हालांकि 2013-14 में भारत का स्कोर बेहतर हुआ था लेकिन मोदी सरकार आने के बाद से हालात लगातार बिगड़ रहे हैं. 2017 में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने 180 देशों में सर्वे किया है, जिसमें भारत का नंबर 81वां है. जबकि 2016 में 176 देशों के बीच यह सर्वे किया गया था और तब भारत का स्थान 79वां था.

 

2015 के 38 अंकों के मुकाबले भारत को इस बार भी 40 अंक मिले हैं, जो पिछले कई वर्षों से इसी स्थान पर बना हुआ है. वहीं पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत के मुकाबले थोड़ा कम भ्रष्टाचारी है. पाकिस्तान ने भ्रष्टाचार इंडेक्स में 100 में से 32 अंक प्राप्त किए हैं वहीं बांग्लादेश को 28 अंक मिले हैं. जबकि चीन भ्रष्टाचार के मामले में भारत से 1 अंक ज्यादा प्राप्त किया है. और उसकी रैंकिग 41 है.

 

करप्शन परसेप्शंस इंडेक्स जर्मनी स्थित संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल हर साल यह रिपोर्ट जारी करती है. संस्था के मुताबिक, यह एक जटिल इंडेक्स है जिसमें अलग अलग संस्थानों के जरिये जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर भ्रष्टाचार का अनुमान लगाया जाता है.

 

इसमें 0 से 100 तक आंकड़ा जारी किया जाता है जिसमें 0 का मतलब सबसे अधिक भ्रष्टाचार जबकि 100 का मतलब साफ-सुथरा होना था. और इस बार भी भारत के लोगों ने भ्रष्टाचार के मामले में इसे 40 अंक दिए.

 

वैसे बहुत घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि कुछ ऐसे देश भी हैं जहां भारत से अधिक भ्रष्टाचार है. इसमें न्यूजीलैंड और सिंगापुर ने 100 में 89 और 84 अंक प्राप्त किया और भ्रष्टाचारी देशों की सूचि में अव्वल रहे. जबकि सोमालिया को दुनिया का सबसे भ्रष्ट देश बताया गया है.

 

रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के अधिकतर देश इस इंडेक्स में 50 से कम अंक मिले हैं जबकि दुनिया का औसत अंक 43 था.  टीआई ने कहा है 2017 में इंडेक्स से पता चलता है कि दुनिया के कई देशों में आज भी भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरी हैं.

 

वहीं एशिया प्रशांत क्षेत्रों के कई देशों में पत्रकारों, समाजसेवकों, विपक्ष दल के नेताओं और कानून से जुड़े लोगों तक को धमकाया गया है.यहां तक की उनकी हत्या तक कर दी गई है.