महिला हाकी बनाम पुरुष हॉकी, किसने चक दिय इंडिया

उस दिन आपकी खुशी और जश्न में बाधा नहीं डालना चाहता था इसलिए चुप रहा. सुनने में यह बात भले ही अजीब सी लगेगी लेकिन यही हकीकत है. ऐसा कहने की वजह लेख में आगे बताऊंगा लेकिन फिलहाल इस बात को समझना जरूरी है कि तकनीकी तौर पर भारतीय महिला टीम ने पहली बार ओलंपिक के सेमीफाइनल में प्रवेश किया. ढंग की प्रतिद्वंदिता, विपक्षी टीमों से कड़ा संघर्ष, अपनी व्यक्तिगत मुसीबतों और भारतीय खेल सिस्टम में मौजूद परिस्थितियों से लड़ते हुए…….. तो कुल मिलाकर इसे बड़ी उपलब्धि समझें…और यह भी कोई छोटी उपलब्धि नहीं है. आगे आज के मैच में भारत की संभावनाओं और ओलंपिक हॉकी के अब तक के सफर का एक तटस्थ, निष्पक्ष और संतुलित सफरनामा आर्टिकल के रूप में…..



सच बात तो यह है कि विश्व कप फुटबॉल, 2014 के बाद यह पहली ऐसी खेल घटना है, जिसने मेरी दिलचस्पी इतने बड़े पैमाने पर जगाई कि मेरे अंदर ‘’खेल के सोए हुए कीड़े’’ को जगा कर इस विषय पर खोजबीन करने और लिखने पर मजबूर कर दिया….
ओलंपिक में महिला हॉकी की शुरुआत और भारतीय टीम के ओलंपिक में अब तक के प्रदर्शन के बारे में कम लोग ही जानते हैं. दरअसल 1980 के जिस ओलंपिक सेमीफाइनल में भारतीय महिला टीम खेली थी, ओलंपिक इतिहास का आधा-अधूरा ओलंपिक है और उसमें किसी भी देश द्वारा हासिल की गई उपलब्धियों को इसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए. 1980 का ओलंपिक रशिया में हुआ था और दुनिया के अधिकांश देशों ने उसका बहिष्कार किया था. 1980 ओलंपिक में ही महिला हॉकी प्रतियोगिता को पहली बार ओलंपिक खेलों में शामिल किया गया था…
उस ओलंपिक में कुल जमा 6 टीमें थी. जब आप 1980 की स्वर्ण विजेता टीम का नाम सुनेंगे तो शायद चौक जाएंगे. वो थी,जिंबाब्वे…जिसे कि….. बिल्ली के भाग से छींका फूटा…. जैसी अद्भुत उपलब्धि के तौर पर लेना चाहिए…


….. और इस बात पर हैरानी होनी चाहिए कि प्रतिद्वंद्विता के अभाव में भारतीय पुरुष टीम की तरह महिला टीम उस साल स्वर्ण पदक नहीं जीत पाई… ( यही वजह है कि आपको पुरुष टीम को लेकर भी 2 आंकड़े दिखाई दिए होंगे. किसी ने लिखा 41 साल बाद भारतीय टीम सेमीफाइनल में पहुंची तो किसी ने लिखा 49 साल बाद…. तकनीकी तौर पर 41 साल भी सही है लेकिन ढंग की प्रतिस्पर्धा के हिसाब से देखा जाए तो पुरुष हॉकी में भी 1972 का ओलंपिक स्वर्ण पदक ही मायने रखता है).


इतिहास के पन्नों पर देखा जाए तो रूस में आयोजित ओलंपिक की तीन खास बातें.
1980 में भारतीय महिला हॉकी टीम ने पहली बार सेमी फाइनल में प्रवेश किया था. रशिया में होने वाले इन ओलंपिक खेलों का, खेल खेलने वाले देशों ने बड़े पैमाने पर बहिष्कार किया था. 1980 की महिला हॉकी स्पर्धा में सिर्फ छह टीमें थी. उनमें से दो सेमीफाइनल में नहीं पहुंच सकती थी पर चार टीमों ने तो सेमीफाइनल में पहुंचना ही था.


लेकिन भारतीय टीम जीत नहीं सकी, यह हैरानी की बात है और उससे भी आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि उस साल ओलंपिक स्वर्ण पदक जिंबाब्वे ने जीता था. सोच कर देखिए, एक ऐसा करिश्मा, जो शायद ही दोहराया जा सके…. क्योंकि यूरोप, एशिया और लैटिन अमेरिका के खिलाडी ज्यादातर टीम खेलों में अपना वर्चस्व बनाए रखे हुए हैं.1980 में भाग लेने वाले 6 देशों के नाम भी जान ही लीजिए…. भारत, जिंबाब्वे, रूस ,चेकोस्लोवाकिया, ऑस्ट्रिया और पोलैंड.


1984 में ओलंपिक में विश्व की सभी टीमों ने भाग लेना शुरू किया और उसके बाद से तीन देश प्रमुखता से हावी रहे. नीदरलैंड, जर्मनी और ब्रिटेन. इनके वर्चस्व को कड़ी चुनौती दी है अर्जेंटीना ने और आखिरी के 20 सालों में वो बहुत तेजी से उभरी है. सच तो यह है कि 2000 से लेकर 2016 तक के 5 में से 4 ओलंपिक सेमीफाइनल खेली है.


इस दृष्टि से देखेंगे तो आज अर्जेंटीना के खिलाफ मैच बहुत मुश्किल रहने वाला है क्योंकि 2016 में सेमीफाइनल तक भी ना पहुंच पाने की शर्म को मिटाने के लिए अर्जेंटीना की टीम अपना पूरा जोर लगाएगी. 2000 के सिडनी और 2012 के लंदन ओलंपिक के बाद अर्जेंटीना की टीम 2021 (2020 ही पढ़ें) ओलंपिक में तीसरी बार फाइनल में प्रवेश की कोशिश करेगी.


गौरतलब है कि सुबह खेले गए पहले सेमीफाइनल में नीदरलैंड की टीम ने ब्रिटेन की टीम को 5-1 से हराया है. 1980 के बहिष्कृत ओलंपिक को छोड़ दिया जाए तो 1984 से लेकर अब तक नीदरलैंड सबसे सफल टीम रही है और उसने 10 में से 8 बार सेमीफाइनल में जगह बनाई है. फाइनल में वो पांच बार पहुंची है और तीन स्वर्ण पदक जीते हैं. अब तक के 10 ओलंपिक खेलों में उसने तीन स्वर्ण, दो रजत और तीन कांस्य पदक जीते हैं. इसमें इस बार का आंकड़ा शामिल नहीं है.


उसके अलावा ऑस्ट्रेलिया की टीम भी लगातार अच्छा प्रदर्शन करती रही है और इन दोनों टीमों ने अब तक10 में से छह स्वर्ण पदक जीते हैं. बाकी के 4 पदक जिंबाब्वे, ब्रिटेन स्पेन और जर्मनी ने जीते हैं.


फाइनल निष्कर्ष में दो बातें…
संसाधनों की कमी और सुविधाओं के अभाव में हमेशा उपेक्षित रही महिला हॉकी टीम की सेमीफाइनल तक में पहुंचने की उपलब्धि भी कम नहीं आंकिए. परिस्थितियों के मद्देनजर अब तक का सफर ही ऐतिहासिक है और उसके मायने को सही परिप्रेक्ष्य में समझना जरूरी है. अगर आज अर्जेंटीना के खिलाफ जीत हासिल कर ली तो इसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ टीम को दिया जाना चाहिए.
…… और अगर उन्होंने फाइनल में पहुंच कर नीदरलैंड जैसी टीम को परास्त करने का करिश्मा कर दिखाया तो इसे 1983 की क्रिकेट वर्ल्ड कप उपलब्धि से ज्यादा ही आंका जाना चाहिए!
दरअसल महिला हॉकी टीम की अब तक की उपलब्धि और भारतीय खेल प्रेमियों का उस पर गर्व करना कहीं ना कहीं एक ऐसी स्मृति से जुड़ा है, जिसका हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है लेकिन जिसने हमारे दिलोदिमाग पर गहरा असर डाला है…. और वह स्मृति अभी तक मिटी नहीं है…


The credit must also go to the film ‘’Chak De India’’ and the immemorable coach KABIR KHAN!


यही वह मनोवैज्ञानिक कारण है कि आप महिला हॉकी टीम से अपनापा स्थापित कर पाए हैं और उस अपनेपन के खुमार में उस फिल्म को अब तक हकीकत होते देख रहे हैं और इस बात को लेकर एक्साइटेड है कि क्या फिल्मी कहानी हकीकत बन पाएगी….
That is the binding force between sports lovers and the team and everyone would be hoping against hope that,,,,
चक दे, ओ चक दे इंडिया चक दे, ओ चक दे इंडिया
गन्नों के मीठे में, खद्दर में, झींटें में ढूँढो तो मिल जावे, पत्ता वो ईंटों में रंग ऐसा आज निखरे, और खुलके आज बिखरे मन जाए ऐसी होली, रग-रग में दिल के बोली टस है ना मस है जी, ज़िद है तो ज़िद है जी
चक दे, ओ चक दे इंडिया चक दे, ओ चक दे इंडिया

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