दिल्ली में किसका राज, केजरीवाल या एलजी, थोड़ी देर में सुप्रीम कोर्ट का फैसला


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केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में आखिर किसका शासन चलेगा केंद्र का या राज्य में चुनी हुई सरकार का, इस पर आज सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा.

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ इस मसले पर आज साढ़े दस बजे अपना फैसला सुनाएगी. पांच जजों की संविधान पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के साथ जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं.

SC ने संवैधानिक पीठ को भेजा केस

दिल्ली में किसकी हुकूमत चलेगी, इस संबंध में कुल 11 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं. पिछले साल फरवरी में अधिकारों को लेकर दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल मामले को सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक पीठ को भेज दिया था.

दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों को लेकर मतभेद जगजाहिर है. राज्य सरकार बार-बार उपराज्यपाल पर फाइलों को लटकाने का आरोप लगाती रहती है.

सुप्रीम कोर्ट की नसीहत

पिछले साल सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट का साथ मिला जब जस्ट‍िस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि जनता द्वारा चुनी हुई सरकार के फैसलों को एलजी की ओर से टेक्निकल ग्राउंड पर रोकना सही नहीं है. साथ ही कोर्ट ने दिल्ली सरकार को अपनी हदों में भी रहने को कहा था.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी टिप्पणी की कि पब्ल‍िक ऑर्डर, पुलिस और जमीन ये विषय दिल्ली सरकार के पास नहीं हैं. इन पर केंद्र का अधिकार है. इससे पहले चीफ जस्ट‍िस दीपक मिश्रा ने कहा कि दिल्ली में कामकाज के लिए अधिकतर नियम कायदे और कानून तो पहले ही बने हुए हैं. सरकार तो बस उन्हें लागू करती है. जहां नियम नहीं है, वहां दिल्ली सरकार नियम बना सकती है, लेकिन केंद्र यानी राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद.

इससे पहले दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने राज्य सरकार के कार्यपालक अधिकारों की जानकारी देते हुए कहा था कि दिल्ली सरकार को संविधान के अनुच्छेद 239A के तहत दिल्ली के लिए कानून बनाने का अधिकार है. एलजी की मदद और सलाह के लिए मंत्रिमंडल होता है. मंत्रिमंडल की सलाह उपराज्यपाल को माननी होती है.

हाईकोर्ट ने LG को बताया बॉस

इससे पहले दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के बीच अधिकारों की लड़ाई पर फैसला सुनाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट 4 अगस्त, 2016 को दिए अपने फैसले में यह कह चुका है कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख हैं. दिल्ली सरकार एलजी की मर्जी के बिना कानून नहीं बना सकती.

एलजी दिल्ली सरकार के फैसले को मानने के लिए किसी भी तरह से बाध्य नहीं हैं. वह अपने विवेक के आधार पर फैसला ले सकते हैं जबकि दिल्ली सरकार को कोई भी नोटिफिकेशन जारी करने से पहले एलजी की सहमति लेनी ही होगी.

हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, पांच जजों की संविधान पीठ ने लंबी सुनवाई के बाद 6 दिसंबर 2017 को अपना फैसला सुरक्षित रखा था.

LG से सरकार का छत्तीस का आंकड़ा

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के सत्ता में आने के बाद राज्य सरकार और उपराज्यपाल के बीच लगातार जंग छिड़ती रही है. केजरीवाल का पहले उपराज्यपाल नजीब जंग और फिर अनिल बैजल के साथ संघर्ष हमेशा चर्चा का विषय रहा है.

पिछले दिनों उपराज्यपाल के साथ संघर्ष के कारण मुख्यमंत्री केजरीवाल अपने कुछ मंत्रियों के साथ एलजी ऑफिस में कई दिनों तक धरने पर बैठ गए थे. आम आदमी पार्टी ‘एलजी साहब दिल्ली छोड़ो’ का नारा पूरी दिल्ली में छेड़ दिया है.

वहीं दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने को लेकर सत्तारुढ़ आम आदमी पार्टी ने अपने नए आंदोलन का आगाज कर दिया है. केजरीवाल 2019 के चुनावों में दिल्ली को पूर्ण राज्य का अधिकार दिलाने के मुद्दे को प्रमुख मुद्दा बनाने की कोशिश में हैं. दिल्ली सरकार की मांग है कि केंद्र सरकार नई दिल्ली और एनडीएमसी इलाके को अपने अधीन रखकर बाकी दिल्ली को आजाद कर दे.

क्या हैं केजरीवाल सरकार के वो 10 तर्क:

  1. चपरासी से लेकर अधिकारियों की नियुक्ति ट्रांसफर-पोस्टिंग और उनके खिलाफ कार्यवाही करने का अधिकार नहीं रह गया इसलिए सरकारी मुलाजिम चुनी हुई सरकार के आदेश नहीं मानते.
  2. सेवा विभाग उप राज्यपाल के अधीन किए जाने की वजह से गेस्ट टीचर्स को परमानेंट करने और नए शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाई.
  3. सेवा विभाग सरकार के अधीन ना होने से कई नए बनाए गए मोहल्ला क्लीनिक के संचालन के लिए डॉक्टर पैरामेडिकल और नर्सिंग स्टाफ की नियुक्ति नहीं हो पाई.
  4. एंटी करप्शन ब्रांच को उपराज्यपाल के अधीन किए जाने के बाद से सरकार भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर पा रही जिससे सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ा. सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम को धक्का लगा.
  5. नीतिगत फैसलों पर अमल करने का आखरी अधिकार उपराज्यपाल के अधीन होने के चलते चुनी हुई सरकार कई योजनाएं लागू नहीं कर पाई.
  6. CCTV योजना, नए मोहल्ला क्लीनिक बनाए जाने की योजना, सेवाओं की होम डिलीवरी की योजना, राशन की होम डिलीवरी की योजना जैसी कई स्कीम लंबे वक्त के लिए बाधित रहीं.
  7. हर फाइल को मंजूरी के लिए उपराज्यपाल को भेजना जरूरी और उपराज्यपाल फाइलों पर लंबे समय तक बैठे रहे.
  8. सरकार द्वारा नियुक्त किए गए सलाहकारों और विशेषज्ञों की नियुक्ति को उपराज्यपाल ने खारिज किया जिससे सरकार के काम पर प्रभाव पड़ा.
  9. कैबिनेट की सलाह उपराज्यपाल पर बाध्य ना होने से उन्होंने सरकार के नीतिगत फैसले को पलट दिया या खारिज कर दिया.
  10. केंद्र सरकार द्वारा शक्ति विहीन और उस पर हाईकोर्ट के आदेशों के बाद चुनी हुई सरकार का दिल्ली में सरकार चलाना मुश्किल हो गया. चुनी हुई सरकार महज़ सलाहकार की भूमिका में रह गई.

क्यों शुरू हुई दिल्ली की चुनी हुई सरकार और उपराज्यपाल के बीच जंग?

  1. अप्रैल 2015 में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार नई नवेली चुनकर आई हुई थी. सरकार करप्शन के मामलों पर बेहद सख्त और तेज़ी से कार्रवाई कर रही थी अपनी एन्टी करप्शन ब्रांच के ज़रिए. तभी एक दिन एन्टी करप्शन ब्रांच ने दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल को रिश्वत कर मामले में गिरफ़्तार कर लिया.
  2. इसपर दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार में खूब खींचतान हुई. केंद्र सरकार भी उस जवान के बचाव में आई. दिल्ली पुलिस के जवान के केस को ACB से दिल्ली पुलिस को देने की मांग हुई लेकिन दिल्ली सरकार नहीं मानी. यहीं से दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के रिश्तों में खटास आनी शुरू हो गई.
  3. इसके बाद मई 2015 में तत्कालीन दिल्ली के मुख्य सचिव के के शर्मा के छुट्टी पर जाने की वजह से दिल्ली सरकार को कुछ दिनों के लिए एक कार्यवाहक मुख्य सचिव को नियुक्त करना था. सर्विसेज विभाग के मंत्री मनीष सिसोदिया ने IAS अफ़सर परिमल राय का नाम सुझाया लेकिन एलजी ने पॉवर सचिव शकुंतला गैमलिन को कार्यवाहक मुख्य सचिव नियुक्त कर दिया.
  4. दिल्ली सरकार ने तभी से उपराज्यपाल के खिलाफ हमला शुरू किया और उपमुख्यमंत्री ने उसे चुनी हुई सरकार का तख्तापलट की साज़िश तक करार दे दिया.
  5. चुनी हुई सरकार की मर्जी के बिना शकुंतला गैमलिन की नियुक्ति पर मुहर लगाने वाले तत्कालीन सर्विसेस के सचिव अनिंदो मजूमदार को दिल्ली सरकार ने पद से हटाया और उनके कमरे पर ताला भी जड दिया.
  6. केंद्र सरकार ने मई 2015 में एक नोटिफिकेशन जारी करके ऐलान किया कि अब दिल्ली में सरकार का मतलब उपराज्यपाल हैं और सर्विसेज विभाग चुनी हुई सरकार के अधिकार में नहीं बल्कि उपराज्यपाल के अधीन होगा.
  7. इसी आदेश में केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार की एन्टी करप्शन ब्रांच को उपराज्यपाल के हवाले कर दिया और उसे किसी भी केंद्र सरकार के तहत आने वाले अधिकारी या कर्मचारी पर कार्रवाई ना करने का आदेश दिया.
  8. उपराज्यपाल ने सर्विसेज विभाग के जरिए आईपीएस मुकेश मीणा को एसीबी का प्रमुख नियुक्त कर दिया और दिल्ली सरकार का एसीबी पर से पूरा नियंत्रण खत्म हो गया.
  9. दिल्ली सरकार के हाथ से सभी बड़े अधिकार निकल गए जिसके विरोध में वो दिल्ली हाई कोर्ट चली गई और वहीं से दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल की कानूनी लड़ाई शुरू हो गयी. जानकारी आजतक से साभार

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