सुप्रीम कोर्ट ने दिया पद्मिनी मामले परे ये संख्त संदेश, बदल जाएगा अदालतों का रुख !

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देशभर की अदालतों से कहा कि कलाकारों की आजादी के मामले में ज्यादा उत्साही होने से बचें. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि एक विचारोत्तेजक फिल्म का यह अर्थ कत्तई नहीं होता कि वो बहुत ज्यादा शुद्ध हो चाहिए. बेंच ने कहा कि एक फिल्म की अभिव्यक्ति ऐसी होनी चाहिए कि वह दर्शक के चेतन और अवचेतन मन को प्रभावित करे. ऐसा कहते हुए बेंच एक तरह से उन हिंसक तत्वों को भी संदेश दिया है जो संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ पर बवाल कर रहे हैं. याचिकाकर्ता की मांग को खारिज करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि यह उल्लेखनीय है कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार पवित्र है और आमतौर पर इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए.

सर्वोच्च अदालत ने आम आदमी पार्टी (AAP) प्रमुख अरविंद केजरीवाल पर आधारित एक डॉक्युमेंट्री ‘एन इनसिग्निफिकेंट मैन’ की रिलीज पर प्रतिबंध लगाने की मांग खारिज करते हुए यह बात कही. अब यह फिल्म अपने तय समय से यानी आज (17 नवंबर) रिलीज होगी.

पिछले हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट ने ‘पद्मावती’ की रिलीज पर स्टे लगाने की याचिका को खारिज कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि यह मामला सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन और फिल्म सर्टिफिकेशन अपेलट ट्राइब्यूनल के अधिकार क्षेत्र का मामला है. गुरुवार को कोर्ट ने कहा कि अदालतों को सृजनात्मक कार्य करने वाले व्यक्ति को नाटक, किताब लिखने, दर्शन या अपने विचारों को फिल्म या रंगमंच से अभिव्यक्त करने से रोकने के फैसलों पर जितना हो सके निष्क्रियता बरतनी चाहिए.

बेंच ने डॉक्युमेंट्री से जुड़ी याचिका का निस्तारण करते हुए यह स्पष्ट किया कि ट्रायल कोर्ट मेरिट के आधार पर केस का फैसला करेगी. मामले में याचिकाकर्ता नचिकेता वल्हाकर है, जिन्होंने केजरीवाल पर स्याही फेंकी थी. उन्होंने  ने शीर्ष अदालत से डॉक्युमेंट्री फिल्म से स्याही फेंकने वाले घटनाक्रम हो हटाने की मांग की थी, जिसे अदालत ने अस्वीकार कर दिया. वर्ष 2013 में वल्हाकर ने जो केजरीवाल पर स्याही फेंकी थी, उसे फिल्म के प्रोमोशनल ट्रेलर में दिखाया गया है.

याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट से कहा कि कथित घटना की रिकॉर्डिंग में केजरीवाल को पीड़ित के तौर पर दिखाना उनके मुवक्किल के फेयर ट्रायल के अधिकार के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि फिल्म बनाने वाले को या तो वह फुटेज डिलीट कर देना चाहिए या बोल्ड में यह डिस्क्लेमर चलाना चाहिए कि कथित मामला अदालत के लंबित है. याचिकाकर्ता की मांग को खारिज करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि यह उल्लेखनीय है कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार पवित्र है और आमतौर पर इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि इस तरह के मामले में आदेश देने में अदालत का रवैया अत्यधिक निष्क्रिय होना चाहिए, क्योंकि बोलने व अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि सृर्जनात्मक कार्य से जुड़े लोगों को नाटक, एकांकी दर्शन पर पुस्तक अथवा किसी प्रकार के विचारों को लिखने व अभिव्यक्ति करने की आजादी होनी चाहिए जिसे फिल्म या रंगमंच पर प्रस्तुत किया जा सके. अदालत ने कहा कि फिल्म या नाटक या उपन्यास या किताब सृजन की कला है और कलाकार को अपने तरीके से खुद को अभिव्यक्त करने की आजादी होती है जिस पर कानून रोक नहीं लगाता है.